सहीफ़ए सज्जादिया ईश्वरीय शिक्षाओं से भरा हुआ मूल्यवान ख़ज़ाना है। यद्यपि मार्गदर्शन करने वाली शिक्षाओं का यह समूह ईश्वर की प्रार्थना व वंदना पर आधारित है किन्तु यह अपने आप में प्रशिक्षण की एक व्यापक व्यवस्था समोए हुए है........
शाबान का शुभ महीना आ पहुंचा कि जिसकी पांचवी तारीख़ की शोभा में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिन से चार चांद लग गए। ऐसी महान हस्ती जिसने अपने महान पिता हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के पश्चात इस्लामी इतिहास के बहुत ही संवेदनशील चरण में इमामत अर्थात ईश्वर की ओर से जनता के मार्गदर्शन का दायित्व संभाला। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने जनता के मार्गदर्शन के ईश्वरीय दायित्व के 34 वर्षीय उपलब्धि भरे काल में बहुत सी मूल्यवान शिक्षाएं यादगार के रूप में हमारे लिए छोड़ीं हैं कि जिनका एक भाग सहीफ़ए सज्जादिया नामक मूल्यवान किताब के रूप में मौजूद है। सहीफ़ए सज्जादिया ईश्वरीय शिक्षाओं से भरा हुआ मूल्यवान ख़ज़ाना है। यद्यपि मार्गदर्शन करने वाली शिक्षाओं का यह समूह ईश्वर की प्रार्थना व वंदना पर आधारित है किन्तु यह अपने आप में प्रशिक्षण की एक व्यापक व्यवस्था समोए हुए है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने प्रार्थना की भाषा में आस्था, नैतिकता और सामाजिक मामलों से संबंधित सर्वश्रेष्ठ पाठ पेश किए हैं। ऐसे मामले जिनका हर काल के मनुष्य को सामना करना पड़ता है। श्रोताओ इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म की हार्दिक बधाईयों के साथ आपकी सेवा में सहीफ़ए सज्जादिया के प्रशिक्षण संबंधी कुछ मूल्यवान आयामों का उल्लेख करने जा रहे हैं। मनुष्य में आत्मिक परिपूर्णताओं तक पहुंचने की क्षमता मौजूद है किन्तु इन परिपूर्णताओं की प्राप्ति सही प्रशिक्षण पर निर्भर है। वास्तव में प्रशिक्षण की सर्वश्रेष्ठ शैली को हर समय व काल के पूरिपूर्ण मनुष्यों के कथन व आचरण में ढूंढा जा सकता है। ऐसे मनुष्य जो हर समय व काल के लिए आदर्श हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सलल्ल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम और उनके पवित्र परिजनों के कथन व आचरण पर चिंतन से हम इस तथ्य से अवगत होते हैं कि इन महापुरुषों की मौजूद शिक्षाएं एक सुखद जीवन का चार्ट पेश करती हैं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम एकेश्वरवाद के ध्रुव पर मनुष्य के प्रशिक्षण पर बल देते हैं और इसी आधार पर वंदना, ईश्वर की पहचान, उस पर ईमान और उससे भय पर भरोसा करते हैं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम पूरी सहीफ़ए सज्जादिया में ईश्वर की प्रसन्नता और उसके सामिप्य को मनुष्य का अंतिम लक्ष्य बताते हैं और लोगों का प्रार्थना व वंदना की भाषा में अनन्य वास्तविकता की ओर मार्गदर्शन करते हैं। मनुष्य के प्रशिक्षण के लिए सहीफ़ए सज्जाद में प्रयुक्त भाषा, तर्कसंगत व भावात्मक भाषा के रूप में मनुष्य के मन में मीठी व सुखद पहचान जागृत करती है और उसे वास्तविकता समझने के लिए तय्यार करती है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम विभिन्न दुआओं व प्रार्थनाओं में हमे यह समझाना चाहते हैं कि मनुष्य के जीवन के सभी चरणों का आधार ईश्वर होना चाहिए अर्थात मनुष्य को यह समझना चाहिए कि ईश्वर हर क्षण उसके पास है। सहीफ़ए सज्जादिया में इस तथ्य की ओर इशारा किया गया है कि ईश्वर के साथ मनुष्य का संबंध उसकी पहचान से स्थापित होता है। सहीफ़ए सज्जादिया में वर्णित प्रशिक्षण की पहली विशेषता प्रवृत्ति से मनुष्य का सामंजस्य है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम मनुष्य की जन्मजात आवश्यकताओं की पूर्ण पहचान के साथ उनसे मनुष्य के प्रशिक्षण के साधन के रूप में सहायता लेते हैं। मनुष्य की इसी जन्मजात प्रवृत्ति में ईश्वर की खोज और उसकी ओर ध्यान लगाना भी है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने इस प्रवृति व रुझान को प्रार्थना व वंदना की पृष्ठिभूमि के रूप में उपयोग किया है और मनुष्य के मन को ईश्वरीय कृपा का पात्र बनने के लिए तय्यार करते हैं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम जैसा कि सहीफ़ए सज्जाद की पहली प्रार्थना में ईश्वर की बहुत ही सुंदर शब्दों में प्रशंसा करते हुए कहते हैः वह ईश्वर कि जिसे न तो दृष्टि देख सकती है और न ही सोच उस तक पहुंच सकती है। अपनी शक्ति से पूरी सृष्टि की रचना की और उसे बिना किसी पूर्व उदाहरण व नमूने के अपने इरादे व इच्छा से पैदा किया। सांसारिक जीवन में ईश्वर का सामिप्य परम उद्देश्य के रूप में इतना महत्व रखता है कि इसे इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम मनुष्य के मन शांति कुंजी बताते हैं। जैसा कि सहीफ़ए सज्जादिया की 47 वीं प्रार्थना में हम पढ़ते हैः हे ईश्वर अपने निकट मेरे लिए एक ऐसे शांन्ति स्थल की व्यवस्था कर दे कि जिसमें शांति मिल सके और एक ऐसे स्थान की व्यवस्था कर दे कि जिसमें रहूं और अपनी आंखों से वास्तविकता को देख सकूं।यह शांति उसी समय प्राप्त होगी जब मनुष्य इस संसार की अपनी समस्त चीज़ों को ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने का माध्यम बनाए। जैसा कि सहीफ़ए सज्जादिया की 30 वीं दुआ में हम पढ़ते हैः हे प्रभु! तूने जो कुछ सांसारिक धन संपत्ति दी है और जो चीज़ें मुझे इस संसार में दी हैं उसे तेरे पास पहुंचने और तेरा सामिप्य पाने तथा स्वर्ग तक पहुंचने का माध्यम बना दे। ईश्वर के सामिप्य का अर्थ उसके निकट होना है जो उससे दूरी का विलोम है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम सहीफ़ए सज्जादिया की बीसवीं प्रार्थना में ईश्वर से इन शब्दों में वंदना करते हैः हे प्रभु! मुझे ऐसा बना दे कि विपत्ती की स्थिति में तेरी सहायता से समस्याओं पर विजय प्राप्त करूं, आवश्यकता पड़ने पर तुझसे चाहूं और हाथ ख़ाली होने पर तेरे द्वार पर गिड़गिड़ाऊं। प्रार्थना का यह टुकड़ा इस बात को सिद्ध करता है कि मनुष्य की भीतरी शक्ति उसे ईश्वर की ओर ले जाती है और विपत्ती व आवश्यकता की स्थिति में उसी से सहायता चाहता है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम प्रशिक्षण के पहले आधारभूत सिद्धांतों में से एक ईश्वर की ओर मनुष्य के ध्यान लगाने की आवश्यकता के उल्लेख के पश्चात ईश्वरीय अनुकंपाओं का उल्लेख करते हैं। अनुकंपाओं के उल्लेख के साथ प्रवचन अधिक प्रभावी होता है। अनुकंपाओं का इसलिए उल्लेख किया जा रहा है क्योंकि मनुष्य कभी अधिक व्यस्तता व अज्ञानता के कारण कभी अपने अतीत तो कभी स्वयं को प्राप्त अनुकंपाओं को भुला बैठता है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की प्रशिक्षण शैली में अनुकंपाओं का उल्लेख ईश्वर की स्तुति के साथ होना चाहिए और फिर ईश्वरीय कृपा के रूप में तौबा अर्थात पश्चाताप और उसकी ओर वापसी पर बल देते हैं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन ईश्वर द्वारा मनुष्य के लिए तौबा का द्वार खुला रखने पर उसकी प्रशंसा करते हैं और उसे परिपूर्ण व सौभाग्यशाली व्यक्ति बताते हैं जो ईश्वर को याद रखता है। सहीफ़ए सज्जादिया में तौबा अर्थात पापों से प्रायश्चित को व्यवहार में परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में पेश किया गया है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की दृष्टि में प्रायश्चित का संबंध केवल पाप से नहीं है बल्कि ईश्वर की प्रसन्नता की परिधि से हर प्रकार की दूरी की स्थिति में प्रायश्चित की आवश्यकता है। जैसा कि सहीफ़ए सज्जादिया की 41 वीं प्रार्थना में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैः हे प्रभु! मन के विचार, दृष्टि, और बातें जो तेरी इच्छा या तेरी मित्रता की परिधि से बाहर हो तो तेरी ओर पलटता और प्रायश्चित करता हूँ। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम मनुष्य को ईश्वर की कृपा व क्षमा की ओर से आशावान बनाते हुए इसे मनुष्य के प्रशिक्षण के एक और महत्वपूर्ण सिद्धांत के रूप में उपयोग करते हैं। इस शैली के कारण मनुष्य शांत व संतुष्ट मन से कर्म के मैदान में उतर कर अपने व्यवहार में परिवर्तन लाता है। सहीफ़ए सज्जादिया में एक स्थान पर हम पढ़ते हैः तुझसे निरा
source : www.abna.ir