रमज़ान का महीना पवित्र कुरआन के नाज़िल होने का महीना है। रमज़ान का महीना पवित्र कुरआन से प्रेम करने और उसकी बसंत का महीना है। पवित्र कुरआन से वैचारिक और व्यवहारिक लाभ उठाने का महीना आ गया है। रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखने वाले उपासना और प्रार्थना करके स्वयं के भीतर महान ईश्वर के ग्रंथ को समझने की भूमिका तैयार करते हैं। रोज़ा रखने वाले रोज़े की बरकतों, नमाज़ों और दुआओं की छत्रयात्रा में पवित्र कुरआन के साथ अपने संबंधों को निकट करते हैं और अपनी जीवन शैली को पवित्र कुरआन की शिक्षाओं एवं मार्गदर्शनों के अनुसार बनाने का प्रयास करते हैं।
पवित्र रमज़ान महीने की दुआओं में कुरआन और उससे प्रेम का बहुत उल्लेख किया गया है और उसे मार्गदर्शक पुस्तक के रूप में याद किया गया है। रमज़ान महीने की दूसरे दिन की दुआ में पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से आया है” हे पालनहार! हमें अपनी किताब पढ़ने का सामर्थ्य प्रदान कर। इसी प्रकार रमज़ान महीने की २०वीं तारीख़ के बारे में आया है पालनहार! रमज़ान में हमें कुरआन की तिलावत करने का सामर्थ्य प्रदान कर।“
इस दुआ में पवित्र कुआन की तिलावत के साथ उसकी आयतों में सोच –विचार और अमल पर भी ध्यान दिया गया है। क्योंकि तिलावत शब्द का अर्थ उस पर अमल करना भी है। स्पष्ट है कि इस प्रकार का सामर्थ्य व कृपा पवित्र कुरआन से वास्तविक प्रेम के बिना संभव नहीं है। पवित्र कुरआन से वास्तविक प्रेम में तीन चीज़ें शामिल हैं उसकी तिलावत, उसकी आयतों में चिंतन- मनन और उसकी शिक्षाओं व आदेशों का पालन। इस आधार पर रमज़ान के पवित्र महीने में उससे और उसकी तिलावत से प्रेम करना चाहिये। इसी तरह उसकी आयतों में चिंतन- मनन करके उससे वैचारिक और व्यवहारिक लाभ उठाना चाहिये।
पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आले ही व सल्लम, और उनके पवित्र परिजन पवित्र कुरआन से अगाध प्रेम करते थे और पवित्र कुरआन की बरकतों से अत्यंत लाभ उठाते थे। ये हस्तियां केवल पवित्र कुरआन की तिलावत पर संतोष नहीं करती थीं बल्कि उसकी आयतों में चिंतन- मनन करती थीं। पवित्र कुरआन को धीरे- धीरे और सुन्दर ध्वनि में पढ़ते थे और उसकी आयतों के अर्थों पर ध्यान देकर उस पर अमल करते थे। उदाहरण के तौर पर पवित्र कुरआन में सैकड़ों बार “हे ईमान लाने वालो” आया है और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पवित्र कुरआन की तिलावत के दौरान जब भी इस आयत पर पहुंचते थे तो कहते थे हे ईश्वर हम तेरे आदेश को स्वीकार करते हैं”
रवायत में है कि हज़रत इमाम रज़ा पवित्र कुरआन से इस प्रकार प्रेम करते थे कि हर तीन दिन में एक बार पूरा क़रान पढ़कर खत्म कर देते और कहते थे अगर मैं चाहूं तो तीन दिन से पहले भी कुरआन की तिलावत को खत्म कर सकता हूं परंतु मैंने कभी भी उसकी आयत की तिलावत नहीं की मगर यह कि उसकी आयतों के बारे में चिंतन- मनन किया और मैंने इस बारे में सोचा कि यह आयत कहां और किस बारे में उतरी है। इस आधार पर हर तीन दिन में पूरा क़ुरआन पढ़ता हूं अन्यथा तीन दिन से कम में पूरे क़ुरआन की तिलावत करता।“
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फरमाया” हर चीज़ की एक बहार है और कुरआन की बहार रमज़ान का महीना है।“
रमज़ान का पवित्र महीना दिल के बाग़ों में कलियों के खिलने का महीना है। जब प्रेम करने वाला अपने प्रेमी के ध्यान का पात्र बन जाता है तो प्रेमी की बात सुनने से अधिक कोई दूसरी चीज़ अच्छी नहीं लगती है और पवित्र कुरआन वही दिल को सुकून व आराम देने वाला महान ईश्वर का संदेश है और वह दिलों को पवित्र प्रवृत्ति की ओर वापसी का निमंत्रण देता है।
इंसान रमज़ान के पवित्र महीने में हर प्रकार की बरकतों से भरे कुरआनी दस्तरखान पर महान ईश्वर का मेहमान होता है। पवित्र कुरआन की तिलावत की इस महीने में बहुत सिफारिश की गयी है। इस महीने में पवित्र कुरआन की तिलावत को बेहतरीन उपासना कहा गया है। पवित्र कुरआन की तिलावत की विशेषता व महत्व इतना अधिक है कि बहुत कम ही उपालनाओं का महत्व उतना अधिक है। क्योंकि चिंतन- मनन के साथ पवित्र कुरआन की तिलावत भले कार्यों का स्रोत है। पवित्र कुरआन में पैग़म्बरे इस्लाम को संबोधित करते हुए आया है रात को नमाज़ के लिए खड़े हो परंतु पूरी रात नहीं। थोड़ी रात, या आधी रात या उससे भी कुछ कम, या कुछ उनधिक और कुरआन को ठहर- ठहर कर पढ़ा करो।“
रमज़ान का महीना पवित्र कुरआन की तिलावत और उसकी बरकतों से लाभ उठाने के लिए बेहतरीन महीना है। पवित्र कुरआन की तिलावत दिलों पर जमी जंग को धो देता है। पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है” लोहे की भांति दिलों पर भी जंग लग जाती है तो उनसे पूछा गया कि जंग को छुड़ाने के लिए क्या किया जाये? तो आप ने फरमाया कुरआन की तिलावत!
पवित्र कुरआन की तिलावत इसी प्रकार घर और जीवन स्थल के प्रकाशमयी होने का कारण बनती है और रोज़ी के अधिक होने में उसका आश्चर्यजनक प्रभाव है। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं अपने घरों को कुरआन की तिलावत से प्रकाशमयी बनाओ जिस घर में कुरआन की तिलावत की जायेगी उसमें खैर व बरकत अधिक होगी और उसमें रहने वाले ईश्वरीय नेअमतों से लाभान्वित होंगे।“
इसके अतिरिक्त पवित्र कुरआन के हर सूरे की अपनी एक अलग विशेषता है और समस्याओं व दुःखों को दूर करने में उनका अद्भुत प्रभाव है। जैसाकि रवायत में आया है कि बीमार पर ७० बार सूरे हम्द की तिलावत उसकी पीड़ा में कमी का कारण बनेगी।“
किसी महान हस्ती का कहना है कि अगर लाल सेब की एक टोकरी सिर पर रख कर बाज़ार और गली में चले जायें तो इससे आपको न केवल उर्जा नहीं मिलेगी बल्कि आप की शारीरिक शक्ति कम हो जायेगी और कुछ देर के बाद आप थक जायेंगे परंतु अगर आपने उनमें से केवल एक ही सेब खा लिया तो वह आप को शक्ति व उर्जा प्रदान करेगा। पवित्र कुरआन वही लाल सेबों की टोकरी है। अगर उसकी तिलावत की जाये और जीवन में उससे लाभ उठाया जाये तो इंसान को उससे भौतिक व आध्यात्मिक दोनों लाभ पहुंचेगें। इंसान के ज्ञान में वृद्धि होगी और उसका मन प्रकाशमयी होगा और उसके ईमान में वृद्धि होगी।
रमज़ान का महीना पवित्र कुरआन की बहार का महीना है। इस महीने में पवित्र कुरआन से अधिक से अधिक भौतिक एवं ग़ैर भौतिक लाभ उठाने की भूमि प्रशस्त होती है। इसी कारण रमज़ान महीने में पवित्र कुरआन की तिलावत पर बहुत बल दिया गया है यहां तक कि कुछ ईमानदार लोग रमज़ान के पवित्र महीने में कई बार पूरे कुरआन की तिलावत करते हैं और उसके पुण्य को पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों को उपहार स्वरुप भेंट करते हैं।
ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी पवित्र कुरआन से बहुत निष्ठा व लगाव रखते थे। रात- दिन में कई बार विशेषकर भोर में पढ़ी जाने वाली नमाज़ के समय पवित्र कुरआन की तिलावत करते थे और जब भी उन्हें खाली समय मिलता था पवित्र कुरआन की तिलावत करते थे। जब स्वर्गीय इमाम खुमैनी फ्रांस में निष्कासन का जीवन बिता रहे थे और पत्रकार उनसे साक्षात्कार करने के लिए आते थे तो १०-१५ मिनट उन्हें अपने कैमरों आदि को सही करने में समय लगता था तो इस अवधि में इमाम खुमैनी पवित्र कुरआन की तिलावत करने लगते थे। उस समय उपस्थित लोगों में से कुछ इमाम खुमैनी से कहते थे कि आप स्वयं को साक्षात्कार के लिए तैयार कीजिये यानी अभी कुरआन मत पढ़िये। तो इमाम ख़ुमैनी उनके जवाब में कहते थे। तो क्या मैं अपना यह समय बर्बाद करदूं!
इसके अतिरिक्त प्रतिवर्ष रमज़ान के पवित्र महीने में स्वर्गीय इमाम खुमैनी अपने दृष्टिगत कुछ लोगों को आदेश देते थे कि इस महीने में कई बार पवित्र कुरआन की तिलावत की जाये। इसी प्रकार इमाम ख़ुमैनी बीमारी की हालत में भी हर नमाज़ से पहले और बाद में पवित्र कुरआन की तिलावत अवश्य करते थे। इस महीने में वह बहुत ज़रूरी मुलाक़ात के अलाव भेंट नहीं करते थे ताकि वह अधिक से अधिक पवित्र कुरआन की तिलावत और दुआ कर सकें और हर तीन दिन में एक बार पूरे कुरआन की तिलावत कर लेते थे।
स्वर्गीय इमाम खुमैनी के घर का सेवक इब्राहीम खादिम नजफी कहता है” मैं प्रायः हज़रत अली अलैहिस्सलाम के रौज़े में कुरआन पढ़ता था। इमाम खुमैनी ने कुरआन की तिलावत करते हुए मुझे कई बार देखा था। एक दिन उन्होंने मेरे पास एक व्यक्ति को भेजा और उससे कहा था कि मैं उनके पास जाऊं परंतु मैंने कोई ध्यान नहीं दिया यहां तक कि दोबारा वही व्यक्ति मेरे पास आया और कहने लगा। इमाम को तुमसे काम है। मैंने उससे कहा तुम मुझे बताओ कि इमाम को मुझसे क्या काम है? उसने कहा नहीं पता। मैंने कहा इमाम शायद मुझसे नाराज़ हैं? उस व्यक्ति ने मुझसे कहा कि इमाम ने मुझसे केवल इतना कहा है कि तुम्हें उनके पास ले चलूं। इसके बाद मैं इमाम की सेवा में उपस्थित हुआ। उन्होंने मेरा नाम पूछा तो मैंने कहा हाज इब्राहीम खादिम नजफी। इमाम ने फरमाया क्या तुम इस घर में मेरी सहायता करना पसंद करते हो? मैंने कहा श्रीमान मुझ से क्या हो सकता है? इमाम ने कहा “काम शुरु करो विश्वास रखो कि यहां पर तुम्हें कठिन नहीं गुज़रेगा। साथ ही मैं तुमसे प्रेम करने लगा हूं। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि तुम कार्यों को कितना कर सकते हो, क्योंकि तुम मोमिन इंसान हो! मैं जब भी हरम आता था तुम्हें कुरआन की तिलावत करते देखता था।“
source : irib.ir