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Wednesday 1st of May 2024
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खून की विजय

दसवीं मुहर्रम को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने युद्ध के समय भी सोई अंतरात्माओं को जगाने का प्रयास किया। उन्होंने ईश्वरीय मार्गदर्शक होने के अपने कर्तव्य की उस दशा में भी अनदेखी नहीं की। इसी लिए वे अज्ञानता के अंधकार में डूबे लोगों को प्रकाश में लाने के लिए संसार के बारे में उन्हें बताते हुए कहते हैं
खून की विजय

दसवीं मुहर्रम को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने युद्ध के समय भी सोई अंतरात्माओं को जगाने का प्रयास किया। उन्होंने ईश्वरीय मार्गदर्शक होने के अपने कर्तव्य की उस दशा में भी अनदेखी नहीं की। इसी लिए वे अज्ञानता के अंधकार में डूबे लोगों को प्रकाश में लाने के लिए संसार के बारे में उन्हें बताते हुए कहते हैं
 
     हे ईश्वर के दासो! ईश्वर से डरो और सांसारिक मायामोह से दूर रहो क्योंकि ईश्वर ने संसार को, विनाश के लिए बनाया कि जहां कि नयी चीज़ें पुरानी हो जाती हैं , सुख, दुख में और प्रसन्नताएं शोक में बदल जाती हैं इस लिए अपने परलोक के लिए कुछ तैयारी कर लो और जान लो कि परलोक में सब से अधिक काम आने वाली चीज़ ईश्वरीय भय है। हे लोगो! देखो यह संसार तुम्हें धोखा न दे दे , इस समय तुम लोग ऐसे काम के लिए एकजुट हुए हो जिससे ईश्वर का आक्रोश भड़केगा और उसके कारण ईश्वर तुम से विमुख हो जाएगा और तुम सब उसके प्रकोप के पात्र बन जाओगे।
 
 
 
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने भाषण के इस अंश में संसार के नश्वर होने की वास्तविकता की ओर संकेत किया है। वे कूफावासियों के धोखे का कारण भी बताते हैं और उन्हें इस तथ्य की ओर आकृष्ट करते हैं कि तुम लोगों ने उमैया वंश के वचनों पर भरोसा करके और संसारिक मोहमाया में फंस कर धर्म और ईश्वर पर आस्था तथा उसके दूत से मुंह मोड़ लिया है और अब अपने युग के ईश्वरीय मार्गदर्शक के विरुद्ध युद्ध के लिए उठ खड़े हुए हो और उसकी हत्या करने पर तैयार हो।
 
 
 
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने भाषण के एक अन्य भाग में शत्रुओं को अपना परिचय देकर उन्हें सही मार्ग पर लाने का प्रयास करते हुए कहते हैं कि
 
हे लोगो! ज़रा बताओ मैं कौन हूं? उसके बाद सोचो और स्वंय को बुरा भला कहो और विचार करो कि क्या मेरी हत्या और मेरा अपमान तुम लोगों के लिए सही है? क्या मैं तुम्हारे ईश्वरीय दूत की पुत्री का बेटा नहीं हूं? क्या मैं तुम्हारे ईश्वरीय दूत के उत्तराधिकारी और चचेरे भाई का बेटा नहीं हूं? क्या मैं उस का बेटा नहीं हूं जो हर मुसलमान से पहले ईश्वर पर आस्था रखता था और सब से पहले उन्होंने पैगम्बरे इस्लाम के ईश्वरीय दूत होने की पुष्टि की? क्या शहीदों के सरदार हम्ज़ा मेरे पिता के चचा नहीं हैं? क्या जाफरे तैयार मेरे चचा नहीं हैं? क्या तुम लोगों ने मेरे और मेरे भाई के बारे में पैगम्बरे इस्लाम का यह कथन नहीं सुना कि यह दोनों स्वर्ग में युवाओं के सरदार हैं? यदि मेरे और मेरे भाई के बारे में पैगम्बरे इस्लाम के इस कथन में तुम लोगों को शंका है तो क्या इस वास्तविकता में भी तुम्हें संदेह है कि मैं तुम्हारे पैगम्बर की बेटी का पुत्र हूं और पूरी दुनिया में और तुम लोगों के मध्य मेरे अलावा, पैगम्बरे इस्लाम की कोई और संतान नहीं? धिक्कार हो तुम पर! क्या मैंने तुम में से किसी को मारा है जो उसका बदला लेने के लिए तुम लोग मेरी हत्या कर रहे हो? या किसी का धन छीन लिया है और किसी को घायल किया है कि जिसके कारण मुझे तुम लोग दंड का पात्र समझ रहे हो?
 
 
 
इस प्रकार के मज़बूत तर्कों के बाद यज़ीद की सेना के पास इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के विरुद्ध युद्ध का कोई बहाना नहीं था किंतु कैस बिन अशअस ने बात बदलते हुए चीख कर कहाः हे हुसैन! अपने चचेरे भाई की आज्ञापालन की प्रतिज्ञा क्यों नहीं कर लेते? यदि आप यह काम कर लें तो आप के साथ आप की इच्छा के अनुसार व्यवहार किया जाएगा और आप को तनिक भी दुखी नहीं किया जाएगा। इमाम हुसैन ने उसके उत्तर में कहाः नहीं ईश्वर की सौगंध! न मैं अपमान के साथ उन लोगों की आज्ञापालन का वचन दूंगा और न ही दासों की भांति शत्रु के सामने रणक्षेत्र से भागूंगा।
 
 
 
आशूर के दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने एक अन्य भाषण उस समय दिया जब दोनों ओर की सेनाएं पूर्ण रूप से तैयार हो गयी थीं। कूफा के कमांडर उमर साद का झंडा लहरा रहा था और युद्ध के बिगुल की आवाज़ गूंज रही थी। इमाम हुसैन अपने सैंनिकों की पंक्ति से बाहर निकले और शत्रुओं की पंक्ति के सामने खड़े हुए और उनसे चुप रहने और अपनी बात सुनने को कहा किंतु वह सब चीख पुकार करते रहे। यह दशा देख कर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इन वाक्यों से उन्हें शांत रहने की नसीहत कीः
 
धिक्कार हो तुम लोगों पर! तुम लोग मेरी बातें क्यों नहीं सुन रहे हो कि जो तुम्हें कल्याण व मुक्ति के गंतव्य तक पहुंचा देगी। जो भी मेरा अनुसरण करेगा उसका कल्याण होगा और जो मेरी अवज्ञा करेगा उसका सर्वनाश होगा और तुम सब ने अवज्ञा की है और मेरे आदेशों का विरोध किया है कि जो मेरी बात नहीं सुन रहे हो। सही है इसका कारण वह हराम खाने हैं जिनसे तुम्हारे पेट भरे हुए हैं इसी लिए ईश्वर ने तुम्हारे दिलों पर पथभ्रष्टता की ऐसी मुहर लगा दी है । धिक्कार हो तुम लोगों पर! क्या तुम लोग चुप नहीं रहोगे?
 
 
 
अचानक ही पूरी सेना पर मौन छा गया यहां तक कि घोड़ों की टापों की आवाज़े भी रूक गयीं। तब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने पुनः कहना आरंभ कियाः हे लोगो! तुम सब , अपमान, दुख व निराशा में ग्रस्त हो जाओ! क्योंकि तुमने मुझे अत्याधिक उत्साह के साथ मुझे अपनी सहायता के लिए बुलाया और जब मैंने तुम लोगों की पुकार सुन ली और तेज़ी से तुम लोगों की ओर बढ़ा तो अपनी तलवारों को जो हमारे लिए थीं हमारे ही विरुद्ध निकाल लिया और जिस आग को हमारे संयुक्त शत्रु ने जलाया था तुमने उसे हमारे ही विरुद्ध भड़का दिया और अपने शत्रु की सहायता करते हुए अपने ही मार्गदर्शक के विरुद्ध उठ खड़े हुए इस से पहले ही कि शत्रु तुम्हारे साथ न्याय करें या तुम्हारी कोई गुहार सुनें या यह कि तुम्हें उनसे कोई भलाई की आशा हो? सिवाए उस हराम कौर के जो उसने तुम्हारे पेट तक पहुंचाया है और कुछ दिनों के एश्वर्यपूर्ण व अपमान जनक जीवन का जो वचन दिया है। ज़रा संभल कर! धिक्कार हो तुम लोगों पर कि हम से तुम ने मुंह फेर लिया है। तुम्हारे चेहरों पर कालिख! तुम लोग, इस समाज के बलवाई और भ्रष्ट गुटों के बचे हुए लोग हो कि जिन्होंने कुरआने को पीछे छोड़ दिया है। तुम लोग अपराधी और कुरआन के नियमों को बदलने वाले तथा पैगम्बर की शैली को धूमिल करने वाले हो कि जो पैगम्बरों की संतानों की हत्या करते हो और ईश्वरीय दूतों के उत्तराधिकारियों के वंश को मिटाते हो।
 
 
 
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस भाषण के मुख्य अंश में कूफा वालों की आलोचना की है और उन्हें यह याद दिलाया है कि उन्होंने किस प्रकार से अपना वचन तोड़ा है और किस प्रकार वे उमैया वंश के अत्याचारों से मुक्ति के लिए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से सहायता की अपील कर रहे थे किंतु अचानक ही शासकों की धमकियों और प्रलोभनों के कारण वे सब बदल गये और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के विरुद्ध ही तलवार निकाल ली। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम प्रतिज्ञा तोड़ने वालों का अंजाम इस प्रकार बताते हैं।  
 
 जान लो! ईश्वर की सौगंध! इस युद्ध के बाद तुम्हें इस बात का कदापि अवसर नहीं मिलेगा कि तुम अपने घोड़ों पर बैठ कर अपनी इच्छा पूर्ति की राह पर निकल जाओ इसके लिए बस तुम्हें इतना ही अवसर मिलेगा जितना घुड़सवार, घोड़े पर रहता है उसके बाद घटनाओं की चक्की में तुम पीसे जाओगे और चक्की की धुरी की भांति अस्थिर रहोगो तो फिर अपने जैसा सोचने वालों के साथ एकजुट हो जाओ और मेरी सत्यता स्पष्ट हो जाने के बाद भी मेरे बारे में अपने गलत फैसले को व्यवहारिक बनाओ मैं उस ईश्वर पर भरोसा करता हूं जो मेरा और तुम्हारा पालनहार है और उसी पर भरोसा करता हूं कि जिसके हाथ में हर प्राणी का नियंत्रण है और मेरे ईश्वर का मार्ग सीधा है।
 
 
 
इसके बाद इमाम हुसैन ने अपने हाथ आकाश की ओर उठाए और इस प्रकार सैनिकों और उमर साद को बददुआ दीः हे ईश्वर उन्हें पानी की बूंदों के लिए तरसा दे और उनके लिए युसुफ की भांति कठिनाई भरे वर्ष निर्धारित कर दे। क्योंकि यह लोग हमे झूठा कहते हैं और शत्रु के मुकाबले में इन्होंने हमारी सहायता छोड़ दी है और तूही हमारा पालनहार है और हम तुझ पर ही भरोसा करते हैं और हमारी वापसी तेरी ही ओर है।
 
 
 
इतिहास में आया है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों की शहादत के बाद शत्रुओं ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के शिविरों पर धावा बोलने का निर्णय लिया। यह देख कर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने ऊंची आवाज़ में कहाः हे अबू सुफियान के वंश के अनुयाइयो! यदि धर्म में विश्वास नहीं है और प्रलय से डर नहीं लगता तो कम से कम अपने जीवन में स्वतंत्र तो रहो और अपने मानवीय सम्मान को तो बनाए रखो।
 
     इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का यह कथन वास्तव में एक सार्वाजनिक संदेश और विश्व व्यापी नियम है जो कर्बला के मरूस्थल से पूरे विश्व के लिए दिया गया कि लोगो यदि तुम ईश्वरीय नियमों और शिक्षाओं में विश्वास नहीं रखते तो कम से कम मानवीय सिद्धान्तों का भी ख्याल रखो।
 
 
 
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके साथियों ने भारी संख्या वाली यजीद सेना से लोहा लिया और एक एक करके शहीद होते गये। उसके बाद सारी तलवारें इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के खून से अपनी प्यास बुझाना चाहती थीं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कर्बला के रन में जिस वीरता का प्रदर्शन किया उसका इतिहास सदा साक्षी रहेगा। उन्होंने यजीदी सेना के बहुत से सैनिकों को नर्क भेजा किंतु अन्ततः  असंख्य घावों के कारण उन पर कमज़ोरी छाने लगी। इतिहास में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के अंतिम क्षणों का इस प्रकार वर्णन किया गया हैः
 
हुसैन ने अपनी आंखें खोलीं और आकाश की ओर देखा और अपने सांसारिक जीवन में अंतिम बार अपने पालनहार को इस प्रकार से संबोधित कियाः
 
हे वह ईश्वर जो बहुत महान है और जिसका आक्रोश बहुत भयानक है और जिसकी शक्ति सब से अधिक है। तेरे निर्णय के आगे शीश नवाता हूं हे पालनहार तेरे अलावा कोई पूज्य नहीं है। हे पुकारने वालों की आवाज़ सुनने वाले सहायक मेरा तेरे अतिरिक्त कोई पालनहार नहीं है। तेरे आदेश और तेरे निर्णय पर धैर्य व संयम रखता हूं। हरेक को उसके कर्मों पर तौलने वाले पालनहार! मेरे और इन लोगों के मध्य तूही फैसला करना कि तू सब से अधिक अच्छा फैसला करने वाला है।
 
इसके बाद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपना मुख कर्बला की गर्म रेत कर रख दिया और कहाः ईश्वर के नाम से, ईश्वर की सहायता से, ईश्वर के मार्ग में और उसके दूत के धर्म पर । इतना कहते कहते शिम्र का खंजर उनके गले पर चल गया।   


source : irib
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