Hindi
Thursday 25th of April 2024
0
نفر 0

ईश्वरीय वाणी-५९

सूरे ग़ाफ़िर पवित्र क़ुरआन का ४०वां सूरा है और यह मक्का में नाज़िल हुआ था। पवित्र क़ुरआन के सात सूरे हैं जिन्हें हवामिम कहा जाता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के हवाले से आया है कि हवामिम क़ुरआन की जान हैं। इसी प्रकार एक अन्य रवायत में आया है कि हवामित क़ुरआन के मुकुट और उसके सुगंधित पुष्प हैं। सूरे ग़ाफ़िर में ८५ आयतें हैं। इस सूरे की तीसरी आयत से इसके नाम को लिया गया है जिसमें महान ईश्वर को ग़ाफ़िरअज़्ज़न्ब कहा गया है अर्थात पापों को माफ़ करने वाला।
ईश्वरीय वाणी-५९

सूरे ग़ाफ़िर पवित्र क़ुरआन का ४०वां सूरा है और यह मक्का में नाज़िल हुआ था। पवित्र क़ुरआन के सात सूरे हैं जिन्हें हवामिम कहा जाता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के हवाले से आया है कि हवामिम क़ुरआन की जान हैं। इसी प्रकार एक अन्य रवायत में आया है कि हवामित क़ुरआन के मुकुट और उसके सुगंधित पुष्प हैं। सूरे ग़ाफ़िर में ८५ आयतें हैं। इस सूरे की तीसरी आयत से इसके नाम को लिया गया है जिसमें महान ईश्वर को ग़ाफ़िरअज़्ज़न्ब कहा गया है अर्थात पापों को माफ़ करने वाला।
 
 
 
 
 
महान ईश्वर की कुछ विशेषताएं, काफ़िरों को लोक- परलोक के दंड से डराना, हज़रत मूसा, फ़िरऔन और आले फ़िरऔन के मोमिन की कहानी का वर्णन, प्रलय, एकेश्वरवाद व अनेकेश्वरवाद की बहस तथा, पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा धैर्य की नसीहत उन विषयों में से है जिनकी इस सूरे में चर्चा की गयी है।  
 
 
 
इस सूरे की पहली से लेकर तीन तक आयतों का अनुवाद है हामीम/ यह किताब महा व सर्वज्ञानी ईश्वर की ओर से भेजी गयी है जो पापों को माफ़ करने वाला, प्रायश्चित को स्वीकार करने वाला, कड़ा दंड देने वाला, अत्यधिक नेअमतों का स्वामी, उसके अलावा कोई पूज्य नहीं और सबको उसी की ओर पलट कर जाना है। इस सूरे की आरंभिक आयतें पवित्र कुरआन की महानता की बात करती हैं। इसी प्रकार इस सूरे की आयतें इस किताब के लाने वाले को बेहतरीन विशेषताओं का स्वामी बताती हैं। महान ईश्वर शक्तिशाली व अजेय है और उसका असीमित ज्ञान इस बात का कारण बना है कि पवित्र क़ुरआन में इंसान की ज़रूरत की हर चीज़ का वर्णन हो। इस सूरे की तीसरी आयत में महान ईश्वर की एक विशेषता का वर्णन किया गया है। वह पापों को माफ़ करने वाला है, प्रायश्चित को स्वीकार करता है, उसका दंड कड़ा है, उसकी नेअमतें अत्यधिक हैं, ईश्वर के अतिरिक्त कोई दूसरा पूज्य नहीं है और सबको उसी की ओर लौट कर जाना है।
 
 
 
 
 
सूरे ग़ाफ़िर की एक विशेषता यह है कि उसमें मोमिने आले फ़िरऔन  की घटना बयान की गयी है। आले फ़िरऔन के मोमिन की घटना में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और फ़िरऔन की कहानी के एक भाग की ओर संकेत किया गया है। मोमिने आले फ़िरऔन, फिरऔन के दरबार में रहने वाले व्यक्तियों में और वह फ़िरओन के परिवार से थे। अंदर से वह हज़रत मूसा पर ईमान ला चुका था और वह हज़रत मूसा और उनके धर्म की रक्षा का एक मज़बूत आधार था। इसी कारण सूरे ग़ाफ़िर का दूसरा नाम मोमिन है और इस सूरे की लगभग एक चौथाई आयतें उसके संघर्षों के बारे में हैं। आले फ़िरऔन के मोमिन की घटना सूरे ग़ाफिर की २८वीं आयत से आरंभ होती है।
 
जब फ़िरऔन हज़रत मूसा को क़त्ल करने का फैसला कर लेता है तो उसका निकटवर्ती एक व्यक्ति चिल्लाकर कहता है कि क्या तू उस व्यक्ति की हत्या करना चाहता है जो यह कहता है कि अल्लाह मेरा ईश्वर है? जबकि वह स्पष्ट प्रमाणों के साथ अपने पालने वाले की तरफ से तेरी ओर आया है।
 
 
 
 
 
मोमिने आले फ़िरऔन की पवित्र क़ुरआन में प्रशंसा की गयी है क्योंकि उसने अपने समय के पैग़म्बर की जान की सुरक्षा की और अत्याचारी शासक फ़िरऔन का विरोध किया। उसने फ़िरऔन और उसके पक्षधरों के मुक़ाबले में जो आपत्ति जताई और उनकी जो नसीहत की है उसका वर्णन भी क़ुरआन में किया गया है। मोमिने आले फ़िरऔन महान ईश्वर पर गहरी आस्था रखता था वह होशियार और समझदार इंसान था उसने फ़िरऔन को हज़रत मूसा की हत्या करने से रोक दिया। उसने फ़िरऔन से कहा इस कार्य के अंजाम के बारे में अच्छी तरह सोचो, उतावलापन न करो वरना तू पछतायेगा। इस पर फ़िरऔन ने कहा अगर मूसा झूठ बोल रहे हैं तो अंततः वह अपमानित होंगे और उन्हें उनके झूठ का दंड मिलकर रहेगा परंतु अगर वह सच्चे होंगे तो जिन दंडों का उन्होंने वादा किया है उनमें से कुछ का मज़ा तुम्हें चखना होगा। प्रत्येक दशा में उनकी हत्या बुद्धिमानी से दूर है और जो भी झूठा है ईश्वर उसका मार्गदर्शन नहीं करता।
 
 
 
 
 
मोमिने आले फ़िरऔन ने इस पर संतोष नहीं किया और हितैषी अंदाज़ में उसने फ़िरऔन और अपनी जाति को संबोधित करते हुए कहा हे मेरी जाति! आज सत्ता तुम्हारे हाथ में है और इस क्षेत्र व ज़मीन में तुम्हारा बोल-बाला है और हर दृष्टि से तुम्हारा नियंत्रण और तुम विजयी हो। इन अत्यधिक नेअमतों की बेक़द्री मत करो अगर ईश्वर का दंड तुम पर आयेगा तो कौन तुम्हारी सहायता करेगा?
 
मोमिने आले फ़िरऔन की बातों ने फिरऔन के समीपवर्ती लोगों पर असर डाला और उससे फ़िरऔन के समीपवर्ती लोग नर्म पड़ गये। उस समय फिरऔन ने चुप रहना उचित नहीं समझा और उसने मोमिने आले फिरऔन की बात काटकर कहा मैं जो सही समझता हूं उसके अलावा तुमसे कोई चीज़ नहीं कहता। मूसा की हत्या की जानी चाहिये और इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है मैं तुम्हारा मार्गदर्शन सच्चाई के अतिरिक्त कुछ और नहीं करता।
 
 
 
 
 
हां यह इतिहास में समस्त अत्याचारियों की विशेषता रही है कि वे केवल अपनी राय सही समझते हैं और दूसरों की राय को कोई महत्व नहीं देते हैं परंतु मोमिने आले फ़िरऔन ने फिर अपनी क़ौम को चेतावनी दी और कहा हे मेरी क़ौम के लोग! तुम पर मैं उस दंड से डरता हूं जो इससे पहली वाली क़ौमों पर आ चुका है और नूह, आद, समूद और जो लोग उनके बाद थे इन क़ौमों ने ईश्वर का इन्कार, अनेकेश्वरवाद और अत्याचार किया और हमने देखा कि उनका क्या अंत हुआ! उनके एक गुट का अंत भयानक तूफान से हो गया जबकि दूसरे का अंत तेज़ और भयानक हवा ने कर दिया, एक गुट को आसमान की बिजली और दूसरे गुट को विनाशकारी भूकंप ने! क्या तुम इस बात की संभावना नहीं दे रहे हो कि तुम भी इन्हीं में से किसी ईश्वरीय दंड में फंस जाओ।? जान लो कि जो कुछ तुम्हारे साथ होगा उसका कारण तुम स्वयं हो क्योंकि ईश्वर अपने बंदों पर अत्याचार नहीं करता है। वह आगे कहता है हे मेरी जाति! मैं तुम पर उस दिन से डरता हूं जब लोग एक दूसरे को बुला रहे होंगे एक दूसरे से सहायता मांग रहे होंगे उनकी आवाज़ कहीं नहीं पहुंचेगी। उस दिन अपने चेहरे को मोड़ लेंगे और भागेंगे परंतु ईश्वरीय प्रकोप से तुम्हें कोई चीज़ नहीं बचा सकेगी।
 
 
 
 
 
मोमिने आले फिरऔन अपनी बात को जारी रखते हुए हज़रत यूसुफ़ पैग़म्बर की ओर संकेत करता है कि वह भी अतीत में मिस्र में रहते थे। इतिहासिक दृष्टि से मोमिने आले फिरऔन और हज़रत यूसुफ़ के काल में कोई अधिक दूरी नहीं थी। सूरे ग़ाफ़िर की ३९वीं आयत में आया है कि मोमिने आले फिरऔन ने अपनी क़ौम का ध्यान इस ओर दिलाया कि दुनिया की ज़िन्दगी बहुत छोटी है और परलोक में सदैव रहना है। उसने अपनी क़ौम को संबोधित करके कहा हे मेरी क़ौम! इस दुनिया से दिल न लगाओ यह दुनिया बड़ी जल्दी गुज़र जाने वाली है और परलोक सदैव रहने वाला है। इसी प्रकार सूरे ग़ाफ़िर की ४०वीं आयत में इस प्रकार कहा गया है जो बुरा कार्य करे उसे उसके कार्य के बदले के अलावा कुछ और नहीं दिया जायेगा किन्तु जो अच्छा कार्य करेगा चाहे पुरूष या महिला ऐसी स्थिति में कि वे मोमिन हों तो वे स्वर्ग में प्रविष्ट होंगे और वहां उन्हें बेहिसाब रोज़ी दी जायेगी। मोमिने आले फिरऔन बड़ी होशियारी से महान ईश्वर के न्यायी होने की बात करता है और कहता है कि जो इंसान ग़लत कार्य करेगा उसे केवल उसके किये का दंड दिया जायेगा और दूसरी ओर वह महान ईश्वर की असीम कृपा की ओर संकेत करता है और कहता है कि जो लोग अच्छा व भला कार्य करेंगे वे स्वर्ग में जायेंगे और वहां उन्हें बेहिसाब रोज़ी दी जायेगी। ऐसी रोज़ी कि न किसी आंख ने देखी होगी और न किसी कान ने सुना होगा और न ही किसी के दिमाग़ में आयी होगी।
 
 
 
 
 
मोमिने आले फ़िरऔन अधिक समय तक अपने ईमान को न छिपा सका। अंत में वह अपनी जाति को संबोधित करते हुए कहता है हे मेरी क़ौम के लोग तुम्हें क्या हो गया है कि मैं तुम्हें मुक्ति व कल्याण की ओर बुला रहा हूं और तुम मुझे आग की ओर बुला रहे हो? तुम  मुझसे चाहते हो कि  मैं एक ईश्वर का इंकार कर दूं और जिस चीज़ का मुझे ज्ञान नहीं है उसे उसका सहभागी व समतुल्य क़रार दे दूं मैं तुम्हें क्षमाशील ईश्वर की ओर बुरा रहा हूं।
 
वह आगे कहता है जिस चीज़ की ओर तुम मुझे बुला रहे हो वह लोक –परलोक में बुलाने योग्य नहीं है। हमारी वापसी ईश्वर की ओर है और अपव्यय करने वाले नरकवासी हैं। जिस समय तुम ईश्वर के क्रोध का पात्र बन जाओगे मेरी बात की सच्चाई समझ जाओगे। मैं कार्य को ईश्वर पर छोड़ रहा हूं कि वह अपने बंदों को देखने वाला है।
 
महान ईश्वर ने अपने मोमिन बंदों को अकेला नहीं छोड़ा है। सूरे ग़ाफ़िर की ४५वीं आयत में हम पढ़ते हैं अंततः जो चाल वे चल रहे थे उसकी बुराइयों से ईश्वर ने उसे बचा लिया और फ़िरऔनियों को कड़े दंड ने आ घेरा।“
 
 
 
 
 
पवित्र क़ुरआन की इस कहानी के शिक्षाप्रद बिन्दु ये हैं कि अत्याचारियों के पास आर्थिक संभावना या अत्यधिक शक्ति का होना उनके सत्य पर होने का प्रमाण नहीं है। एतिहासिक प्रमाण इस बात के साक्षी हैं कि ईश्वरीय प्रकोप के सामने अत्याचारी असहाय हैं और पतझड़ में जिस तरह सूखे पत्ते पेड़ से गिर जाते हैं उसी तरह ज़मीन से अत्याचारियों का अंत हो जायेगा। सूरे ग़ाफ़िर की ६०वीं आयत में इस बात का वर्णन किया गया है कि महान ईश्वर ने अपनी असीम कृपा का द्वारा अपने बंदों के लिए खोल दिया है और वह उनका आह्वान करता है कि वे उसे बुलायें और उसकी उपासना से मुंह न मोड़ें।
 
सूरे ग़ाफ़िर की ६० वीं आयत का अनुवाद इस प्रकार है तुम्हारे पालनहार ने कहा है कि मुझे बुलाओ ताकि मैं तुम्हारा जवाब दूं। बेशक जिन लोगों ने मेरी उपासना से मुंह मोड़ा और घमंड किया जल्दी ही वे अपमान के साथ नरक में प्रविष्ट होंगे।“
 
 
 
 
 
पवित्र क़ुरआन की यह आयत इस बात की सूचक है कि इंसान के जीवन, कल्याण और उसकी मुक्ति में दुआ का बहुत महत्व है। दुआ का एक महत्वपूर्ण लाभ यह है कि वह इंसान का आह्वान महान व सर्वसमर्थ ईश्वर की पहचान की ओर करती है और इससे बड़ी पूंजी इंसान के लिए और क्या हो सकती है। दुआ का एक अन्य लाभ यह है कि इंसान स्वयं को महान ईश्वर के समक्ष मोहताज पाता है और वह घमंड से दूरी करता है क्योंकि इंसान के अंदर घमंड वह बुराई है जो बहुत सी बुराइयों की जड़ है। दुआ करने वाला इंसान समस्त नेअमतों का स्रोत महान व सर्वसमर्थ ईश्वर को समझता है, उससे प्रेम करता है और उसके आदेशों का पालन करता है। स्पष्ट है कि दुआ का स्वीकार होना बिना शर्त नहीं है बल्कि उसके लिए सच्ची निष्ठा, सच्चा मन, पवित्र आत्मा, पापों से प्रायश्चित और दूसरों की समस्याओं का समाधान दुआ क़बूल होने की कुछ शर्तें हैं। इस स्थिति में दुआ से इंसान में आत्म विश्वास पैदा होता है और वह उसे निराशा से रोकती है और उसे अधिक प्रयास के लिए प्रोत्साहित करती है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि दुआ इंसान के प्रयास की जगह नहीं ले सकती बल्कि उसे चाहिये कि वह जो कुछ कर सकता है उसे अंजाम दे और महान ईश्वर से अच्छे अंत व कार्य की दुआ भी करे।


source : irib
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

हदीसे किसा
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ...
हजरत अली (अ.स) का इन्साफ और उनके ...
अरफ़ा, दुआ और इबादत का दिन
आख़री नबी हज़रत मुहम्मद स. का ...
ग़ैबत
इमाम हसन(अ)की संधि की शर्तें
बिस्मिल्लाह के प्रभाव 4
ख़ून की विजय
इस्लाम का मक़सद अल्लामा इक़बाल के ...

 
user comment