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ईश्वरीय वाणी-६१

पवित्र क़ुरआन का महत्व, पैग़म्बरे इस्लाम, पैग़म्बरों के विरोधियों के कार्य, एकेश्वरवाद के कुछ प्रमाण, अनेकेश्वरवाद से संघर्ष,महान ईश्वर के प्रति अशोभनीय बातों का इंकार, पैग़म्बरों और पहले की जातियों के जीवन के कुछ भाग, प्रलय, महान ईश्वर पर ईमान रखने वालों को मिलने वाला प्रतिदान,काफिरों का अंत और ग़लत चीज़ों के महत्व का इंकार आदि के बारे में इस सूरे में चर्चा की गयी है। इस सूरे का आरंभ इस प्रकार होता है हा मीम स्पष्ट करने वाली किताब की क़सम बेशक हमने उसे अरबी में उतारा है ताकि तुम उसके बारे में
ईश्वरीय वाणी-६१

पवित्र क़ुरआन का महत्व, पैग़म्बरे इस्लाम, पैग़म्बरों के विरोधियों के कार्य, एकेश्वरवाद के कुछ प्रमाण, अनेकेश्वरवाद से संघर्ष,महान ईश्वर के प्रति अशोभनीय बातों का इंकार, पैग़म्बरों और पहले की जातियों के जीवन के कुछ भाग, प्रलय, महान ईश्वर पर ईमान रखने वालों को मिलने वाला प्रतिदान,काफिरों का अंत और ग़लत चीज़ों के महत्व का इंकार आदि के बारे में इस सूरे में चर्चा की गयी है।
 
इस सूरे का आरंभ इस प्रकार होता है हा मीम स्पष्ट करने वाली किताब की क़सम बेशक हमने उसे अरबी में उतारा है ताकि तुम उसके बारे में सोचो और निश्चय ही वह मूल किताब में अंकित है वह हमारे पास बहुत उच्चकोटि की तत्वदर्शिता से परिपूर्ण है।
 
 
 
 
 
इस सूरे की एक से चार तक की आयतों में महान ईश्वर उस किताब की सौगंध खाता है जिसके अर्थ व वास्तविकताएं स्पष्ट हैं और उसके मार्गदर्शन के रास्ते स्पष्ट हैं। यह वह किताब है जो अरबी में नाज़िल हुई है। अरबी वास्तविकता बयान करने के लिए विश्व की बहुत ही विस्तृत ज़बान है। भाषा विशेषज्ञों के अनुसार अरबी का एक अर्थ स्पष्ट होना भी है। यानी महान ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन को अरबी में नाज़िल किया ताकि उसके शब्दों और वाक्यों के माध्यम से वास्तविकता बिल्कुल स्पष्ट हो जाये।
 
पवित्र क़ुरआन को किताबों की मां भी कहा जाता है। यानी यह समस्त आसमानी किताबों की मां और अस्ल है। यह उस ज्ञान की किताब है जो महान ईश्वर के पास है। ब्रह्मांड में होने वाली समस्त घटनाओं का इसमें उल्लेख है। पवित्र क़ुरआन का स्रोत महान व सर्वसमर्थ ईश्वर है।
 
 
 
 
 
सूरे ज़ोखरोफ़ का एक महत्वपूर्ण विषय अरबों की अंधविश्वास की संस्कृति से संघर्ष है। पवित्र क़ुरआन एकेश्वरवाद के प्रमाणों का उल्लेख करने के बाद पैग़म्बरे इस्लाम को ढ़ारस दिलाते हुए कहता है कि कोई पैग़म्बर आया ही नहीं किन्तु यह कि उसका मज़ाक़ उड़ाया गया। इसके बाद पवित्र क़ुरआन अरबों की अज्ञानता से भरी संस्कृति की ओर इशारा और उसकी निंदा करता है। काफ़िर और अनेकेश्वरवादी पवित्र क़ुरआन को स्वीकार न करने के लिए विभिन्न बहाने लाते थे। पवित्र क़ुरआन को स्वीकार न करने के लिए उनका एक बहाना यह था कि यह क़ुरआन मक्के या मदीने के किसी पूंजीपति  या प्रतिष्ठित व्यक्ति के पास क्यों नहीं उतरा? काफिरों को आश्चर्य इस बात का था कि क़ुरआन क्यों किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति पर नहीं उतरा? उनकी अपेक्षा के विपरीत मोहम्मद नाम के एक अनाथ हस्ती पर क्यों उतरा है?
 
 
 
वास्तविकता यह है कि अरबों की अज्ञानता के कारण लोग वास्तविकताओं को उल्टा देखते थे जबकि जो व्यक्ति ईश्वरीय संदेश को लोगों तक पहुंचा रहा हो उसे वास्तविकता से अवगत होना चाहिये। इसी प्रकार उसे बहादुर, न्यायप्रेमी और लोगों की पीड़ा विशेषकर निर्धन,  वंचित और अत्याचारग्रस्त वर्ग की पीड़ा से अवगत होना चाहिये। यह वे चीज़ें व बातें हैं जो ईश्वरीय संदेश पहुंचाने वाले व्यक्ति के अंदर होनी चाहिये।
 
इस बात की कोई आवश्यकता नहीं है कि जो व्यक्ति ईश्वरीय संदेश पहुंचा रहा हो उसके वस्त्र बहुत सुन्दर हों, उसका महल बहुत क़ीमती हो और वह विभिन्न प्रकार की सुन्दर चीज़ों से सुसज्जित हो।
 
 
 
 
 
पवित्र क़ुरआन काफिरों और अनेकेश्वरवादियों की ग़लत व मूल्यहीन सोचों का करारा उत्तर देता है। पवित्र कुरआन सूरे ज़ोखरोफ़ की ३२वीं आयत में इस ओर संकेत करता है कि महान ईश्वर ने दुनिया की ज़िन्दगी में उनकी आजीविका को उनके मध्य बांट दिया है और कुछ को कुछ पर श्रेणी की दृष्टि से उच्च रखा है ताकि वे एक दूसरे से काम लें क्योंकि इंसान की ज़िन्दगी एक सामाजिक ज़िन्दगी है और इस प्रकार की ज़िन्दगी का संचालन एक दूसरे की सहकारिता व सहयोग के बिना संभव नहीं है। इस आधार पर इंसान को न तो इन विदित अंतरों के धोखे में आना चाहिये और न ही इन्हें मानवीय मूल्यों का मापदंड समझना चाहिये।
 
पवित्र क़ुरआन दुनिया की धऩ - सम्मत्ति और तामझाम के मूल्यहीन होने की ओर संकेत करता है। सूरे ज़ोख़रोफ़ की ३३वीं ३४वीं और ३५वीं आयतों में महान ईश्वर कहता है यदि इस  बात की संभावना न होती कि सभी लोग एक ही समुदाय के हो जायेंगे तो जो लोग दयालु ईश्वर का इंकार करते हैं उनके लिए हम उनके घरों की छतों को चांदी का कर देते और सीढ़ियां भी जिन पर वे चढ़ते हैं।“
 
 
 
 
 
वास्तव में पवित्र क़ुरआन की इन आयतों में इस ओर संकेत किया गया है कि अगर कुछ लोगों का रुझान बेईमानी और कुफ्र की ओर होता तो महान ईश्वर सांसारिक चीज़ों को केवल काफिर को प्रदान करता ताकि सब लोग जान जायें कि इंसान की इंसानियत का मापदंड ये चीज़ें नहीं हैं। दूसरे शब्दों में काफिरों और अत्याचारियों के एक गुट का सांसारिक अनुकंपाओं से सम्पन्न होना न उनके व्यक्तित्व के महत्वपूर्ण होने का प्रमाण है और न ही ईश्वर पर ईमान रखने वाले व्यक्तियों का वंचित व उनके मूल्यहीन होने का प्रमाण है। महान ईश्वर दुनिया के जीवन को व्यतीत करने के लिए समुचित व आवश्यक मात्रा में सांसारिक नेअमतों से लाभ उठाने की सिफारिश करता है। अतः महान ईश्वर पर ईमान रखने वालों को परलोक की चिंता है न कि सांसारिक चीज़ों की।
 
ईश्वरीय दूत भी सदैव इन चीज़ों से दूरी करते थे और जो वास्तविक मूल्य हैं। वे ज्ञान, ईश्वरीय भय और सदाचारिता पर ध्यान देते थे। पवित्र क़ुरआन सूरे ज़ोख़रोफ़ की ३६वीं आयत में दुनिया से दिल लगाने के परिणामों की ओर संकेत करते हुए कहता है कि कृपालु ईश्वर से मुंह मोड़ लेना शैतानी की बंदगी है। महान ईश्वर कहता है जो भी कृपालु व दयालु ईश्वर की याद से मुंह मोड़ेगा तो मैं उस पर एक शैतान को नियुक्त कर दूंगा जो सदैव उसके साथ रहेगा।
 
 
 
 
 
पवित्र क़ुरआन के सूरे ज़ोख़रोफ़ की ४३वीं आयत में महान ईश्वर पैग़म्बरे इस्लाम का आह्वान करता है कि “जो कुछ आप पर उतारा गया है उसे मज़बूती से पकड़ लीजिये कि आप सीधे रास्ते पर हैं और किताब तथा आपके कार्यक्रम में किसी प्रकार की पथभ्रष्टता नहीं है और एक गुट का स्वीकार न करना आपके  असत्य होने का प्रमाण नहीं है। यह क़ुरआन आपको और आपकी क़ौम को याद दिलाने वाला है और यह आपके जीवन का कार्यक्रम होना चाहिये। जल्द ही आपसे सवाल किया जायेगा कि आपने ईश्वरीय कार्यक्रम और आसमानी संदेश के साथ क्या किया?
 
 
 
एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम वलीद बिन मुग़ैरह के साथ मस्जिद में बैठे हुए थे। नज़्र बिन हारिस भी वहां आ गया और वह भी उन लोगों के पास बैठ गया। पैग़म्बरे इस्लाम क़ुरैश के सरदारों से बात कर रहे थे। इतने में नज़्र पैग़म्बरे इस्लाम के मुक़ाबले के लिए खड़ा हो गया। पैग़म्बरे इस्लाम ने तार्किक प्रमाणों से यह सिद्ध कर दिया कि ईश्वर के अलावा किसी की भी उपासना सही नहीं है। उसके बाद पवित्र क़ुरआन की इस आयत की तिलावत की” तुम और वह चीज़, जिसकी तुम उपासना करते हो, नरक के ईंधन बनेंगे और सब नरक में जायेंगे। अगर यह पूज्य होते तो कदापि नरक में न जाते जबकि वे सदैव उसमें रहेंगे।“ इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम अपने स्थान से उठे और चले गये। इसी मध्य वहां अब्दुलाह बिन ज़बअरी आया और वह वहां मौजूद लोगों से मिल गया। वलीद ने अब्दुल्लाह से कहा नज़्र बिन हारिस मोहम्मद के मुक़ाबले में लाजवाब हो गया। मोहम्मद सोचते हैं कि हम और हम सब जिसकी उपासना करते हैं नरक में जायेंगे। अब्दुल्लाह ने कहा ईश्वर की सौगंध अगर उन्हें देखता तो उनका जवाब देता। उनसे पूछें कि अगर ऐसा है कि हम लोग और जिन चीजों की हम सब उपासना करते हैं सब नरकवासी हैं? तो हम फरिश्तों की उपासना करते हैं, यहूदी उज़ैर की और नसारा यानी ईसाई, ईसा बिन मरियम की। इसमें क्या बुराई है कि हम फरिश्तों और उज़ैर तथा मसीह जैसे पैग़म्बरों के साथ रहें?
 
 
 
 
 
वलीद ने जब यह बात पैग़म्बरे इस्लाम से कही। तो पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमाया हां जो यह चाहता है कि उसकी उपासना की जाये तो वह अपने उपासकों के साथ नरक में जायेगा। ये अनेकेश्वरवादी वास्तव में शैतान और हर उस चीज़ की उपासना करते थे जिसका शैतान उन्हें आदेश देता था। यह वह समय था जब सूरे ज़ोख़रोफ़ की ५७वीं आयत नाज़िल हुई जिसमें ईश्वर कहता है जिस समय मरियम के बेटे का उदाहरण दिया गया आपकी क़ौम वालों ने उसके कारण मज़ाक़ उड़ाया।“
 
इस वास्तविकता के दृष्टिगत यह स्पष्ट हो जाता है कि हज़रत ईसा को उदाहरण देने का अर्थ यह है कि जब अनेकेश्वरवादियों ने सूरे अंबिया की आयत नंबर ९८ सुनी तो उन लोगों ने कहा ईसा बिन मरियम की उपासना की गयी और इस आयत के अनुसार वह नरकवासी हैं और कितना अच्छा है कि हम और हम जिस चीज़ की उपासना करते हैं ईसा के पड़ोसी होंगे! यह कहकर उन्होंने हंसी उड़ायी और कहा हमारा पूज्य बेहतर है या ईसा? जब वह नरक में होंगे तो क्या हमारे पूज्य उनसे ऊपर हैं? पवित्र क़ुरआन की आयत आगे कहती है यह उदाहरण वे केवल बहस करने के लिए आपके पास ले आये बल्कि वे झगड़ालू गुट हैं। अनेकेश्वरवादी अच्छी तरह जानते थे कि केवल वे पूज्य नरक में जायेंगे जो अपनी उपासना पर प्रसन्न हों। फिरऔन जैसे लोग नरक में जायेंगे जो दूसरों से अपनी उपासना करने के लिए कहते थे न कि हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम जैसे ईश्वरीय दूत जो स्वयं की उपासना को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे। सूरे ज़ोख़रोफ़ की ५९ आयत आगे कहती है ईसा केवल बंदे थे कि हमने उन्हें नेअमत प्रदान की और उन्हें बनी इस्राईल के लिए उदाहरण क़रार दिया।“
 
 
 
 
 
हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम जीवन भर स्वयं को महान ईश्वर का बंदा कहते रहे और समस्त लोगों को महान ईश्वर की उपासना व बंदगी के लिए आमंत्रित करते रहे और उन्होंने किसी को एकेश्वरवाद के मार्ग से हटने की अनुमति नहीं दी।  हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम हर प्रकार की भ्रांति को दूर करने के लिए कहते थे निश्चित रूप से ईश्वर हमारा और तुम्हारा पालनहार है तो उसकी उपासना करो कि यही सीधा रास्ता है।“


source : irib
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