Hindi
Wednesday 24th of April 2024
0
نفر 0

मुआविया के युग में आंदोलन न करना

इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम की ग्यारह साला इमामत की अवधि में (49 से 60 हिजरी तक) जिसमें मुआविया हुकूमत कर रहा था, आपके और उसके बीच बहुत ज़्यादा तनाव था जिनमें से कुछ अवसरों को इमाम के पत्रों में देखा जा सकता है
मुआविया के युग में आंदोलन न करना

 इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम की ग्यारह साला इमामत की अवधि में (49 से 60 हिजरी तक) जिसमें मुआविया हुकूमत कर रहा था, आपके और उसके बीच बहुत ज़्यादा तनाव था जिनमें से कुछ अवसरों को इमाम के पत्रों में देखा जा सकता है


सवाल-1- इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम ने मुआविया के युग में आंदोलन (उठ खड़े होने) के लिए कोई क़दम क्यों नहीं उठाया?

इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम की ग्यारह साला इमामत की अवधि में (49 से 60 हिजरी तक) जिसमें मुआविया हुकूमत कर रहा था, आपके और उसके बीच बहुत ज़्यादा तनाव था जिनमें से कुछ अवसरों को इमाम के पत्रों में देखा जा सकता है

आपने इन पत्रों में मुआविया के अपराधों के कुछ ऐंगिल (जैसे हज्र इब्ने अदी और अम्र इब्ने हुम्क़ जैसे दिग्गज शियों का क़त्ल) को बयान किया है और मुसलमानों की हुकूमत को बहुत बड़ा फ़ित्ना बताया है। (अल-इमामत वस्सियासत, ज1, पेज 180,)
इसी तरह आपने उसकी हुकूमत की वैधता पे ये सवाल उठाया है तथा आपने मुआविया के ख़िलाफ़ जेहाद को सर्वश्रेष्ठ काम जानते हुए जेहाद न करने को अल्लाह की बारगाह से क्षमायाचना (इस्तिग़फ़ार) का कारण जाना है। (बेहारुल अनवार ज44, पे123)
लेकिन यह, कि क्युँ इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम ने मुआविया के ख़िलाफ़ उठ खड़े होने के लिए कोई कार्यवाही नहीं की, इसके कुछ मौलिक कारण हैं जिनमें से केवल कुछ कारणों को ही इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम के कथनों में ढ़ूंढ़ा जा सकता हैं और बाक़ी कारणों को समझने के लिए हम मजबूर हैं कि इतिहास सम्बंधित समीक्षाओं का सहारा लें।

पहली वजहः
शांति समझौते का मौजूद होना
आपने मुआविया के ख़त के जवाब में ख़ुद को इमाम-ए-हसन अलैहिस्सलाम और मुआविया के शांति समझौते का पाबंद बताया है और उसके तोड़ने के आरोप को रद्द किया है।
लेकिन सवाल ये है कि क्या मुआविया ने कूफ़े पहुँचते ही उस शांति समझौते को पामाल नहीं किया और यह ऐलान नहीं किया कि वह उसकी पाबंदी नहीं करेगा? जब्कि अभी उस शांति समझौते की स्याही भी सूखने नहीं पाई थी।
फिर आख़िर इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम ख़ुद को उस शांति समझौते का पाबंद क्यों जानते हैं जिसे सामने वाले की तरफ़ से शुरू ही में नकारा जा चुका है?
1. अगर मुआविया से उद्धरित बातों पर ग़ौर किया जाए तो उससे साफ़ तौर पर शांति समझौते का विरोध समझ में नहीं आता है बल्कि वह कहता हैः
मैंने इमाम-ए-हसन अलैहिस्सलाम से कुछ चीज़ों का वादा किया है तो सम्भव है कि ये चीज़ें उस शांति समझौते के प्रावधान से अलग हों जिसका मुआविया ख़ुद को पाबंद नहीं समझता इसलिए वह ख़ुद को असल शांति समझौता का तोड़ने वाला नहीं समझता है या कम से कम अपनी तरफ़ से उलंघ्घन न करने के दावे के सिलसिले में बातें बना सकता था।
2. इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम और मुआविया के सियासी कैरेक्टर के बीच उतना ही अंतर मानना ज़रूरी है जितना की हज़रत अली अलैहिस्सलाम और मुआविया के सियासी कैरेक्टर के बीच मौजूद था।
मुआविया मौलिक रूप से एक अनुभवी सियासी तत्व था। जो अपने लक्ष्यों तक पहुँचने के लिए हर तरह के छल कपट का इस्तेमाल कर सकता है और उसके अनगिनत उदाहरण हज़रत अली अलैहिस्सलाम के साथ उसकी जंग के बीच देखे जा सकते हैं, उस्मान के ख़ून को बहाना बनाना, तलहा और ज़ुबैर को उकसाना, सिफ़्फ़ीन की जंग में क़ुर्आन को नैज़े पर उठाना, हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अधीन शहरों पर अलवी हुकूमत पर दबाव बनाने के लिए रातों में हमला करना आदि.... उसके छल कपट की कुछ मिसालें हैं लेकिन उसके विपरीत, इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम एक नेक, मज़हबी और सैद्धांतिक तत्व का नाम है जो अपनी ज़ाहेरी कामयाबी व सफ़लता के लिए हर साधन व तरीक़े का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं।
जैसा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा में फ़रमाते हैं:
मैं कदापि ज़ुल्म व अत्याचार से सफ़लता और कामयाबी हासिल नहीं कर सकता।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने इस जुमले से अपनी दीनी सिद्धांतों की पाबंदी की तरफ़ इशारा करते हैं। इसलिए स्वाभाविक है कि इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम, मुआविया की तरफ़ से उल्लंघन के बावजूद उस प्रतिज्ञा व प्रसंविदा को तोड़ नहीं सकते जो आपके बड़े भाई ने अंजाम दिया है।
3. उस समय के हालात को मद्देनज़र रखना और शांति समझौते के प्रति इमाम के पाबंदी न करने के नतीजों पर ग़ौर करना ज़रूरी है, मुआविया उस समय बिना किसी मतभेद के सारे इस्लामी मुल्कों का अकेला हाकिम था और उसकी हुकूमत की सीमाएं सीरिया से ले कर इराक़, हेजाज़ और यमन तक फैली हुई थीं और हर जगह उसके आदमी सख़्ती से उसकी सियासत की प्रचार व समर्थन में लगे थे, वह जो कि इमाम अली अलैहिस्सलाम के साथ जंग के ज़माने में उसमान के क़त्ल की साज़िश के मौक़े पर उनकी मदद करने से सम्बंधित अपनी कोताहियों को छुपाने में कामयाब रहा, बल्कि सीरिया वालों के सामने ख़ुद को उस्मान के ख़ून के तंहा वारिस की हैसियत से पेश करने में बड़ी आसानी से शांति समझौते की पाबंदी न करने की कि सूरत में इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम को सारे इस्लामी मुल्कों में एक ख़ारजी और प्रतिज्ञा व प्रसंविदा का विरोध करने वाली की हैसियत से पहचनवाने और समाज के जनमत को इमाम के ख़िलाफ़ तय्यार करने में कामयाब हो सकता है और ऐसे में जो चीज़ समाज के कानों तक कदापि नहीं पहुँच सकती थी वह इमाम और आपके सहाबा की आवाज़ें होतीं जो मुआविया को सबसे वचन तोड़ने वाले के रूप में पहचनवाने की कोशिश में नाकाम रह जातीं।
दूसरी वजहः
मुआविया का कैरेक्टर
मुआविया का कैरेक्टर उस समय के लोगों ख़ास कर सीरिया वालों के नज़दीक इस हद तक सकारात्मक समझी जाती थी जिसके कारण उसके विरूद्ध उठ खड़े होना मुश्किल था, क्योंकि वह लोग उसे पैग़म्बरे अकरम स.अ. का सहाबी, वही लिखने वाला, और रसूल स.अ. कि बीवी के भाई के तौर पर जानते थे और उनकी नज़रों में अरब मुल्कों ख़ास कर दमिश्क़ में इस्लाम के प्रचार में मुआविया का बहुत बड़ा रोल रहा है।
इसी तरह हुकूमत करने का अनुभव और इमाम हसन अलैहिस्सलाम व इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम से उम्र में उसका बड़ा होना, दो ऐसे कारण थे जिन्हें वह ख़ुद इमाम हसन अलैहिस्सलाम के नाम भेजे जाने वाले ख़तों में अपनी योग्यता को ज़्यादा साबित करने के कारणों के तौर पर पेश करता रहा है। (मक़ातेलुत्तालेबीन, पे40) और निश्चित रूप से वह इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम के मुक़ाबले में उन बातों को ज़्यादा बढ़ा चढ़ कर पेश कर सकता था।
तीसरी वजहः
मुआविया की राजनीति का तरीक़ा
सुलह की अनुबंध तय पा जाने के बाद अगरचे मुआविआ बनी हाशिम ख़ास तौर पर अलवी ख़ानदान को नुक़सान पहुँचाने के लिए हर मौक़े से फ़ायदा उठाता रहा है और इस रास्ते में इस हद तक आगे पढ़ गया कि ज़हेर दिलवा कर इमाम हसन अलैहिस्सलाम को शहीद कर डाला। (अलइर्शाद, पे357) लेकिन ज़ाहिर में ये दिखता था कि वह अलवी ख़ानदान ख़ास कर इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम के साथ जहाँ तक संभव हो बेहतरीन सहनशीलता बरत रहा है और उनका सम्मान करता है, इसलिए मासिक और सालाना अनगिनत उपहार और गिफ़्ट भेजे जाने को मिसाल के तौर पर पेश कर सकते हैं, यह हज़रात चूंकि बैतुल माल में ख़ुद को हक़दार जानते थे तथा ख़र्च करने के उचित अवसर व जगह का इल्म रखते थे, इन गिफ़्टों को क़बूल कर लेते थे। (मौसा-ए-कलेमाते इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम, पे209 व 210)।
ये सहनशीलता इस हद तक थी कि मरने के समय अपने बेटे यज़ीद से इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम के सम्बंधित ताकीद की और आपके आंदोलन का का पूर्वानुमान लगाते हुए यज़ीद से मांग की कि वह आपको क़त्ल न करे।
इस तरह की सियासत अपनाने की वजह साफ़ थी, क्योंकि मुआविया ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम के साथ सुलह करके अपनी हुकूमत को नाजायज़ होने के संकट से बचाया, लोगों के बीच ख़ुद को एक सही ख़लीफ़ा की हैसियत से पहचनवाया, फिर वह नहीं चाहता था कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के ख़ून से अपने हाथों को रंगीन करके इस्लामी समाज में एक नफ़रत वाले इंसान के रूप से जाना जाए। इसके विपरीत उसकी कोशिश थी कि ख़ुद को इस ख़ानदान से ज़्यादा से ज़्यादा से क़रीब दिखा कर एक लोकप्रिय कैरेक्टर बन जाए, इसके अलावा अपने ख़्याल में वह इस सियासत द्वारा उन हज़रात को अपना कर्जदार बना कर हर सम्भावित कार्यवाही से उन्हें रोक देना चाहता था। चुनांचे इमाम-ए-हसन अलैहिस्सलाम और इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम को दिये गए एक बड़े उपहार के मौक़े पर एहसान जताते हुए कहता है कि ये पैसे लीजिए और जान लीजिए कि मैं हिन्दा का बैटा हूँ और ख़ुदा की क़सम न मुझ से पहले किसी ने आप हज़रात को इस तरह के गिफ़्ट दिये होंगे और न मेरे बाद कोई देने वाला होगा।
इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम यह बताने के लिए कि देखो ये गिफ़्ट हम पर एहसान नहीं हैं, जवाब में फ़रमायाः
अल्लाह की क़सम, कोई इंसान तुमसे पहले और तुम्हारे बाद इस तरह के गिफ़्ट ऐसे दो इंसानों को नहीं दे सकता जो मुझ से और मेरे भाई हसन से ज़्यादा श्रेष्ठ और महान हों। (तारीख़े इब्ने असाकिर, तर्जुमा अल-इमाम-ए-हुसैन,जि5, पे4)
इस तरह दूसरी तरफ़ से मुआविया ये जानता था कि सख़्ती की सियासत अपनाने में उल्टा नतीजा सामने आ सकता है, क्योंकि उससे लोगों का ध्यान इस ख़ानदान की तरफ़ और ज़्यादा हो जाएगा और बाद में धीरे धीरे लोग मुआविया की हुकूमत से नफ़रत करने लगेंगे।
इससे अहेम बात ये है कि मुआविआ को उस समय (ज़माने के हालात के मद्देनज़र) इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम की तरफ़ से किसी वास्तविक ख़तरे की सम्भावना नज़र नहीं आती थी, फिर भी उसकी कोशिश थी कि इस तरह की सियासत अपना कर लम्बे समय तक ख़तरे को जड़ से मिटा दे।
उधर इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम, मुआविया की हुकूमत पर सवाल उठाने के लिए हर मौक़े से फ़ायदा उठाते थे और उसका रौशन उदाहरण मुआविआ को ख़त लिखना, उसके अपराध और बिदअतों को याद दिलाना (बेहारुल अनवार, जि2, पे212), तथा यज़ीद की जानशीनी और वली अहदी का सख़्त विरोध करना, अलबत्ता इमाम ख़ुद बेहतर जानते थे कि मुआविया के ख़िलाफ़ उठ खड़े होने की सूरत में (ख़ास कर उसकी इस तरह की सियासतों को नज़र में रखते हुए) पब्लिक आपकी मदद के लिए तय्यार नहीं होगी और हुकूमत के अधीन मीडिया और प्रोपगंडों के कारण, हक़ मोआविया को दे दिया जाएगा। (तारीख़े याक़ूबी, जि2, पे228, अल-इमामा वस्सियासत, जि1, पे180)
चौथी वजहः
ज़माने के हालात
हालांकि इमाम-ए-हसन अलैहिस्सलाम की शहादत के तुरंत बाद कुछ कूफ़ियों ने इमाम-ए-हुसैन अलैहिस्सलाम को ख़त लिखे और आपकी ख़िदमत में शोक व्यक्त करने के बाद अपने को इमाम के हुक्म का प्रतीक्षक बताया। (तारीख़े याक़ूबी, जि2, पे228) लेकिन आप जानते थे कि सीरिया में सेंटर गवर्नमेंट की मज़ूबूती और स्थिरता, अमवी ग्रुप का कूफ़े पर पूरा क़ब्ज़ा, हज़रत अली अलैहिस्सलाम, और इमाम हसन अलैहिस्सलाम के साथ इतिहास में कूफ़ियों का बुरा व्यवहार, इस्लामी दुनिया के अधिकतर हिस्सों में देखने में मुआविया का एक लोकप्रिय कैरेक्टर आदि जैसी बातों को मद्दे नज़र रखते हुए अगर आप आंदोलन करते हैं तो कामयाबी की सम्भावना ज़ीरो होगी, और थोड़े से लोगों के मौत के मुंह में डालने के सिवा कुछ हासिल न होता, ज़ाहिर में इस्लामी हुकूमत के ख़िलाफ़ बग़ावत करने वाले की हैसियत से पहचाने जाने, और हार कर ख़ुद क़ालित होने के सिवा उस आंदोलन का कोई नतीजा न निकलता, जब्कि यज़ीदी हुकूमत के ख़िलाफ़ आंदोलन के समय हालात पूरी तरह उल्लखित हालात के विपरीत थे।


source : wilayat.in
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

कर्बला में इमाम हुसैन ...
जो शख्स शहे दी का अज़ादार नही है
इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम का ...
पाक मन
मुहाफ़िज़े करबला इमाम सज्जाद ...
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत
पैगम्बर अकरम (स.) का पैमाने बरादरी
मासूमाऐ क़ुम जनाबे फातेमा बिन्ते ...
इमाम मूसा काज़िम (अ.ह.) के राजनीतिक ...
पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. की वफ़ात

 
user comment