अरबी भाषा में शफाअत के शब्द को आम तौर पर इस अर्थ में प्रयोग किया जाता हैं कि प्रतिष्ठित व्यक्ति, किसी सम्मानीय व बड़े आदमी से किसी अपराधी को क्षमा कर देने की अपील करे या किसी सेवक के इनाम को बढ़ा दे।
आम परिस्थितियों में अगर कोई किसी की सिफारिश स्वीकार करता हैं तो इस भावना के कारण कि अगर उस ने सिफारिश करने वाले की सिफारिश स्वीकार नही की तो सिफारिश करने वाले को दुःख होगा जिससे उस सिफारिश करने वाले प्रिय मित्र की मित्रता से वचिंत होना पड़ेगा या फिर, नुकसान उठाना पड़ सकता है। अनेकश्वरवादी जो ईश्वर के लिए मानवीय गुणों मे विश्वास रखते थे और समझते थे कि उसे भी पत्नी व साथियो तथा सहयोगियो की आवश्यकता है तथा वह अन्य देवताओ से डरता हैं, ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए या उसके प्रकोप से बचने के लिए अन्य देवताओ की पूजा करते थे तथा फरिश्तों व जिन्न व परियो के सामने शीश नवाते थे तथा कहते थेः
यह लोग ईश्वर के समक्ष हमारी सिफारिश करेगे।
(युनुस 18)
इसी प्रकार उनका कहना थाः
हम तो इनकी पूजा केवल इस लिए करते हैं यह हमे ईश्वर से निकट कर दें।
(ज़ुम्र 3)
कुआन इस प्रकार की बातो के उत्तर मे कहता हैः
इन लोगो मे ईश्वर के अतिरिक्त कोई भी अभिभावक है न कोई सिफारिश करने वाला।
(अनआम 51 व 70)
किंतु इस बात पर ध्यान रखना चाहिए कि इस प्रकार के सिफारिश करने वालो और उन की सिफारिश को नकराने का अर्थ यह यही हैं कि पूर्णरूप से सिफारिश को ही नकारा जा रहा हैं क्येकि स्वयं कुरआन मजीद मे ईश्वर की अनुमति से सिफारिश व शफाअत की बात कही गई हैं। तथा इसके साथ ही कुरआन ने सिफारिश करने वालों और जिन लोगो के बारे में सिफारिश की जाएगी, उनकी विशेषताओ का वर्णन किया हैं। इस प्रकार से ईश्वर की अनुमती के बाद कुछ लोगो की सिफारिश का स्वीकार किया जाना इस लिए नही है कि ईश्वर सिफारिश करने वालों से डरता हैं अथवा उसे उनकी आवश्यकता होती हैं बल्कि यह तो वह मार्ग है जो स्वयं ईश्वर ने उन लोगो के लिए रखा है जो अनन्त ईश्वरीय कृपा की प्राप्ति की न्यूनतम क्षमता रखते है और उसने इस लिए कुछ नियम बनाए हैं और वास्तव मे सही प्रकार की सिफारिश अनेकश्वरवादियों के दृष्टिगत सिफारिश के मध्य अंतर उसी प्रकार का है जैसा अंतर, ईश्वर की अनुमति से विश्व के संचालन तथा स्वाधीन रूप से कुछ लोगो द्वारा संसार के संचालन मे विश्वासो के मध्य है और इस पर विस्तार पूर्वक चर्चा किताब के आंरभ मे हो चुकी है।
शफाअत के शब्द को कभी कभी अधिक व्यापक अर्थ में प्रयोग किया जाता हैं तो उस स्थिति में किसी अन्य व्यक्ति द्वारा किसी भी प्रकार की भलाई को शफाअत कहा जाता हैं। इस अर्थ के अंतर्गत माता पिता अपने संतान या फिर संतान अपनी माता पिता के लिए, शिक्षक अपने छात्रों के लिए बल्कि अज़ान देकर नमाज़ पढ़ने हेतु मस्जिद मे बुलाने वाला व्यक्ति भी दूसरो के लिए सिफारिश करने वाला हो सकता हैं। अर्थात जो भी अपने प्रयास से किसी अन्य की भलाई चाहे वह सिफारिश करने वाला होता हैं।
दूसरी बात यह कि इसी संसार मे पापियों की ओर से क्षमा व प्रायश्चित भी एक प्रकार की सिफारिश हैं बल्कि दूसरो के लिए दुआ करना और उनकी मनोकामनाएं पूरी होने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करना भी सिफारिश के अर्थ के दायरे मे आता हैं क्योकि यह सब कुछ ईश्वर से किसी अन्य के लिए भलाई चाहना हैं।
source : alhassanain