स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी क्रान्ति सफल हो जाने के बाद रमज़ान महीने के अंतिम जुमे को विश्व क़ुद्स दिवस घोषित किया और विश्व भर के मुसलमानों से अपील की कि वह इस दिन फ़िलिस्तीनी जनता के क़ानूनी अधिकारों के समर्थन में एकजुटता का प्रदर्शन करें।
इमाम ख़ुमैनी की ओर से विश्व क़ुद्स दिवस का एलान एकता और एकजुटता के प्रदर्शन का बहुत अच्छा आधार बन गया और इससे यह अवसर उपलब्ध हो गया कि एक विशेष दिन इस्लामी जगत की राजनैतिक क्षमताओं का प्रदर्शन हो।
इस्राईल के ग़ैर क़नूनी क़ब्ज़े के लगभग 70 साल के अंतराल में फ़िलिस्तीनी जनता पर जो दुखों के पहाड़ टूटे उनसे स्पष्ट हो गया है कि फ़िलिस्तीन की मुक्ति और आज़ादी का एकमात्र रास्ता इस्लामी जगत की भीतरी क्षमताओं और संभावनाओं पर भरोसा करना और इस्लामी जगत का उठ खड़ा होना है। यह लक्ष्य इस्लामी जगत की एकता और समरसता के माध्यम से ही संभव है तथा विश्व क़ुद्स दिवस इस शक्ति का दर्पण है। विश्व क़ुद्स दिवस मुसलमानों को केवल फ़िलिस्तीनी जनता के समर्थन की ज़िम्मेदारी की याद नहीं दिलाता अपितु सारी दुनिया को यह बताते है कि इस्लामी जगत को अपने भविष्य की चिंता है।
एक साल पहले अमरीका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी केसेन्जर ने अपनी पुस्तक वर्ल्ड आर्डर में लिखा कि विश्व व्यवस्था के स्तंभों की बुनियादें हालिया वर्षों में ध्वस्त होती जा रही हैं अतः ज़रूरी है कि भविष्य के लिए नई रणनीति बनाई जाए। हालिया कुछ वर्षों के परिवर्तनों से पता चल चुका है कि ज़ायोनी शासन विशेष रूप से इस्लामी जागरूकता की लहर फैल जाने के बाद बहुत कठिन परिस्थितियों में पहुंच गया है। इसी लिए अमरीका और उसके घटक जो ज़ायोनी शासन के प्रमुख समर्थक माने जाते हैं मुसलमानों की एकता को तोड़ने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं ताकि इस्लामी प्रतिरोध को चुनौतियों में डाल दें और फ़िलिस्तीन का मुद्दा भुला दिया जाए।
इस समय विश्व क़ुद्स दिवस ऐसी परिस्थितियों में मनाया जा रहा है जब बैतुल मुक़द्दस पर ज़ायोनी शासन के हमले तेज़ हो गए हैं और यह शहर साम्राज्यवादी साज़िशों से कमज़ोर वर्गों और मुसलमानों की लड़ाई का प्रतीक बन गया है।
ज़ायोनी शासन के समर्थक क्षेत्र में युद्ध की आग भड़काकर और सीरिया और इराक़ में हिंसा फैलाकर फ़िलिस्तीन के मुद्दे को इस्लामी जगत की प्राथमिकताओं से बाहर निकाल देने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन जब गज़्ज़ा युद्ध शुरू हुआ तो ज़ायोनी शासन ने जो योजना पहले बनाई थी, परिस्थितियां उससे अलग रूप धारण कर गईं और इस्राईल जिसे स्वर्णिम अवसर समझ रहा था वह उसके लिए दलदल बन गया और ज़ायोनी शासन इस दलदल में डूबता जा रहा है। इस समय गज़्ज़ा पट्टी की घेराबंदी को दस साल का समय हो रहा है लेकिन फ़िलिस्तीनियों के प्रतिरोध ने इस क्षेत्र को ज़ायोनी शासन के लिए डरावने सपने में बदल दिया है। इस्राईल इस स्थिति को बदलने के लिए एड़ी चोटी का ज़ोर लगाए हुए है क्योंकि वर्तमान समीकरण उसके हित में नहीं हैं।
हालिया हर्त्ज़ेलिया सम्मेलन में भाग लेने वालों के बयानों से साफ़ ज़ाहिर था कि ज़ायोनी शासन के भीतर डर व्याप्त है। इस सम्मेलन में जिसमें इस्राईली, फ़िलिस्तीनी और अरब अधिकारी शामिल हुए, विशेष रूप से साज़िशों के बारे में चर्चा हुई। सम्मेलन में कई इस्राईली अधिकारियों ने अरब अधिकारियो के सामने खुलकर स्वीकार किया जिसे पूरी दुनिया ने सुना कि इस्राईल सऊदी अरब के साथ मिलकर सीरिया तथा यमन की लड़ाई में प्रमुख भूमिका निभा रहा है तथा कुछ अरब देशों ने इस्राईल से अपने संबंधों का स्वरूप बदल लिया है और अब तेल अबीब को सऊदी अरब का समर्थन मिल रहा है।
इस्राईल की मिलिट्री इंटेलीजेन्स के प्रमुख हर्त्ज़ी हालीवी ने जून महीने में होने वाले इस सम्मेलन में कहा कि तेल अबीब परिस्थितियों को वर्तमान रूप में बाक़ी रखने के लिए प्रयासरत है।
हर्त्ज़ेलिया सम्मेलन में इसी प्रकार उस दिन की चिंताओं के बारे में भी चर्चा हुई जब सीरिया और इराक़ में आतंकी संगठन दाइश का सफ़ाया हो जाएगा। हालीवी तथा सम्मेलन मे मौजूद कुछ अन्य अधिकारियों का मूल्यांकन था कि इराक़ और सीरिया में दाइश पराजित हो रहा है जो इस्राईल के लिए बड़ी चिंता का विषय है। हालीवी ने कहा कि भविष्य में होने वाला युद्ध पहले हो चुके युद्धों से अलग होगा और वर्ष 2006 में हिज़्बुल्लाह तथा वर्ष 2014 में हमास से होने वाले युद्धों से इस युद्ध का रूप भिन्न होगा।
इस समय क्षेत्र के खिलाफ़ ख़तरनाक साज़िशें रची जा रही हैं और यह साज़िशें इस्राईल की इच्छाओं के अनुरूप रची गई हैं। अब सवाल यह उठता है कि क्या अरब सरकारों ने उस लहर को जिसे अरब बहार का नाम दिया गया था इस्राईल के बसंत में बदल दिया है? निश्चित रूप से इस समय जो ख़तरा इस्लामी जगत और विशेष रूप से फ़िलिस्तीन के समक्ष है वह क्षेत्र में ज़ायोनी शासन के ख़तरों की ओर से ध्यान हट जाना है। क्योंकि यदि एसा हो गया तो मध्यपूर्व के क्षेत्र की संकटमय स्थिति और भीतरी साज़िशें ज़ायोनी शासन के विरुद्ध लड़ाई में फ़्रंट लाइन स्टेट कहे जाने वाले देशों की शक्ति को क्षीण कर देंगी और इस प्रकार इस्लाम के शत्रुओं को बहुत अच्छा अवसर मिल जाएगा जिसे प्रयोग करके वह इस्लामी जागरूकता और क्रान्तियों को उनके मार्ग से विचलित कर देंगे और अपने हित सरलता से साध सकेंगे।
2 साल पहले संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में इस संस्था के कुल 193 सदस्य देशों में से 180 देशों ने फ़िलिस्तीनी जनता का भविष्य निर्धारण का अधिकार नाम से एक प्रस्ताव के समर्थन में मतदान किया। इस प्रस्ताव के समर्थन से पता चला कि फ़िलस्तीन मुद्दे के बारे में नया रुख उत्पन्न हुआ है और विश्व स्तर पर फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के लिए समर्थन बढ़ा है। लेकिन इस साल इस्राईल को महासभा की एक महत्वपूर्ण कमेटी का प्रमुख चुन लिया गया तथा कुछ अरब देशों ने भी इस्राईल का समर्थन किया। निश्चित रूप से यह बदलाव इस्राईल के लिए बहुत अच्छ मौक़ा है जिससे वह अपने लक्ष्य पूरे कर सकता है। जैसे सऊदी अरब ने यमन पर हमला करके और सीरिया तथा इराक़ में दाइश ने सिर उभार कर फ़िलिस्तीनी मुद्दे से विश्व का ध्यान विचलित कराया है और इन दोनों घटनाओं पर इस्राईल बहुत ख़ुश है।
ज़ायोनी शासन के विदेश मंत्रालय के डायरेक्टर डोरी गोल्ड ने सम्मेलन के उदघाटन भाषण में कहा कि ज़ायोनी शासन ने कुछ अरब देशों से जिन्हें उन्होंने मध्यमार्गी कहा, गुप्त रूप से संपर्क स्थापित किया है। गोल्ड ने कहा कि हमारे पास बहुत से अवसर हैं, विशेष बात यह है कि फ़िलिस्तीनी मुद्दा उनकी पहली प्राथमिकता नहीं है। उन्होंने आशा जताई कि इस्राईल वर्तमान परिस्थितियों से और यमन के विरुद्ध सऊदी अरब के युद्ध से भरपूर फ़ायदा उठा सकेगा।
मिस्र के अश्शुरूक़ अख़बार ने फ़हमी हुवैदी का लेख छापा जिसमें महासभा की वैधानिक मामलों की कमेटी की अध्यक्षता इस्राईल को दिए जाने का उपहास उड़ाते हुए लिखा कि इस्राईल से अरबों के संबंधों के गुप्त आयाम विदित आयामों से बहुत अधिक हैं और इससे अरब इस्राईल संबंधों में ख़तरनाक बदलाव का पता चलता है। ज़ायोनी प्रधानमंत्री नेतनयाहू ने हाल ही में अरब देशों के इस्राईल की ओर झुकाव की बात की थी और कहा था कि वह क्षेत्र के अरब देशों से इस्राईल के संबंध सामान्य करने की इच्छा रखते हैं और फ़िलिस्तीन मुद्दे को हाशिए पर डाल देना चाहते हैं। अलबत्ता ज़ायोनी शासन इस सच्चाई को भलीभांति जानता है विश्व क़ुद्स दिवस जैसे कार्यक्रम फ़िलिस्तीन मुद्दे की याद बार बार ताज़ा करते रहेंगे और इसे भूलने नहीं देंगे।
इमाम ख़ुमैनी ने विश्व क़ुद्स दिवस की घोषणा करके फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के समर्थन को समकालीन विश्व की राजनैतिक भाषा में शामिल कर दिया जिससे मूल्यों को नया जीवन मिला और नए अंतर्राष्ट्रीय समीकरण बने। इस विचार को विश्व में फैलाने और गहराई तक उतारने का बड़ा गहरा प्रभाव हुआ तथा उसने बड़ी संख्या में लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कराया और नए काम तथा नीति के लिए उदाहरण पेश किए।
इमाम ख़ुमैनी की क्रान्तिकारी सोच ने साबित कर दिया कि फ़िलिस्तीन के भविष्य को जो इस्राईल तथा उसके घटकों की साज़िशों के नतीजे में हाशिए पर डाल दिया गया है, सही मार्ग पर लाया जा सकता है। यही कारण है कि अमरीका और ज़ायोनीवाद की पूरी कोशिश यह है कि इस्लामी जागरूकता की लहर को उसके मार्ग से हटा दें तथा अपनी योजनाओं से आशिंक और महत्वहीन विषयों का हौवा खड़ा करके विश्व क़ुद्स दिवस को फीका बना दें ताकि उनके विचार में फ़िलिस्तीन का मुद्दा हाशिए पर चला जाए जो इस्लामी जगत का सबसे प्रमुख मुद्दा है।
source : abna24