ईश्वर की श्रद्धा और उपासना उनके अस्तित्व में इस प्रकार समा गई थी कि वह बड़े ही आश्चर्यजनक और अनुदाहरणीय व्यक्तित्व के स्वामी हो गए थे।
ईश्वर का बोध और ईश्वर के प्रति श्रद्धा हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के समाज सुधारक आंदोलन और उनके बलिदान का आधार थी।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की उच्च विशेषताएं उनकी , उपासनाएं और प्रार्थनाएं ऐसी थीं कि ईश्वरप्रेमियों की भीड़ उनके आसपास एकत्रित रहती थी।
इमाम हुसैन के आंदोलन का भाग बनने वाले सारे व्यक्ति जिन्होंने इतिहास के इस स्वतंत्रता
प्रसारक मार्गदर्शक की पाठशाला में साहस व वीरता का पाठ सीखा था ऐसे सदाचारी और उच्च स्वभाव के लोग थे जो उस समय के अंधकारमय क्षितिज पर तारों की भांति चमके।
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने एक विख्यात वाक्य में कहा है कि हे लोगो, ईश्वर ने अपने बंदों की रचना केवल इस लिए की है कि
वह उसे पहचानें और जब उसे पहचान लें तो उसकी उपासना करें। इस वाक्य में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने मनुष्य की रचना का रहस्य ईश्वर की पहचान प्राप्त करना बताया है
क्योंकि ईश्वरीय पहचान के माध्यम से ही मनुष्य सांसारिक और इच्छा के बंधनों से मुक्ति प्राप्त कर सकता है और वास्तविक स्वतंत्रता पा सकता है।
ऐसे समाज में जहां प्रेम स्नेह और मानवीय संबंधों को भुला दिया गया था हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने नई धारा प्रवाहित की जिससे नैतिक मूल्यों को नया जीवन
और मानवीय संबंधों को बल मिला। लोगों से प्रेम व मनुष्यों के साथ उपकार हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के निकट सर्वोपरि सिद्धांतों में था। इस संदर्भ में उनका कहना थाः
हे लोगो, उच्च नैतिक मूल्यों के साथ जीवन व्यतीत कीजिए और मोक्ष व कल्याण की पूंजी प्राप्त करने के लिए प्रयास कीजिए।
यदि आप ने किसी के साथ भलाई की और उसने आपका उपकार न माना तो चिंतित न होइए क्योंकि ईश्वर सबसे अच्छा पारितोषिक देने वाला है।
याद रखिए कि लोगों को आपकी आवश्यकता हो तो यह आप पर ईश्वर की अनुकंपा है। तो अनुकंपाओं को न गंवाइए वरना ईश्वरीय प्रकोप का पात्र बन जाएंगे।
इतिहास में आया है कि हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम बड़े अतिथि प्रेमी थे। लोगों की आवश्याकताएं पूरी करते थे, रिश्तेदारों से मिलने जाते और ग़रीबों का ध्यान रखते थे।
वह ग़रीबों के साथ उठते बैठते थे। समाज में हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का सम्मान इस लिए भी था कि वह हमेशा आम लोगों के बीच रहते कभी उनसे दूर नहीं होते थे।
उनके पास न भव्य महल थे न अंग रक्षक। वह लोगों से बड़ी विनम्रता से मिलते। एक दिन वह एसे कुछ भिखारियों के पास से गुज़र रहे थे जो बैठक सूखी रोटी खा रहे थे। उन्होंने इमाम हुसैन को खाने के लिए निमंत्रित किया और हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम बड़ी विनम्रता से उनके साथ बैठे गए और उन्होंने उनके साथ खाना खाया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि ईश्वर घमंड करने वालों को पसंद नहीं करता। इसके बाद उन्होंने इन लोगों को अपने घर खाने पर आमंत्रित किया। अपने घर उनकी बड़ी आवभगत की और सबको उपहार में कपड़े दिए।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम संपूर्ण मनुष्य और महान आदर्श हैं। वह ऐसे महापुरुषों में हैं जिन्होंने समूची मानवता को जीने और स्वतंत्र रहने की सीख दी।
उनकी जीवनी प्रकाशमान सूर्य के समान सफल मानवीय जीवन का मार्ग दिखाती है। हम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के
शुभ जन्म दिवस पर एक बार फिर अपने सभी श्रोताओं को हार्दिक बधाइयां प्रस्तुत करते हैं और उनके कुछ मूल्यवान कथनों पर यह कार्यक्रम समाप्त कर रहे हैं।
उनका कथन है। जो कठिनाइयों में घीर जाए और उसकी समझ में यह न आए कि क्या करे तो उसकी कठिनाइयों के समाधान की कुंजी लोगों से विनम्रता, स्नेह और सहिष्णुता है।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का एक अन्य कथन है। सबसे अधिक क्षमाशील व्यक्ति वह है जो शक्ति रखते हुए भी क्षमा कर दे।
source : alhassanain