Hindi
Thursday 28th of November 2024
0
نفر 0

इमाम हुसैन अ.ह. के दोस्तों और दुश्मनों पर एक निगाह।

अबनाः हारून रशीद पहला ख़लीफ़ा था कि जिसने इमाम हुसैन अ.ह. की पाक क़ब्र और उसके आसपास के घरों पर हमला किया और आज आईएसआईएस के आतंकवादी चाहते हैं कि इतिहास को दोहरायें लेकिन इमाम और उनकी बारगाह से लोगों की मुहब्बत और उनका प्यार, इमाम से लड़ने वालों के कीने की आग पर ठंडे पानी का काम क

अबनाः हारून रशीद पहला ख़लीफ़ा था कि जिसने इमाम हुसैन अ.ह. की पाक क़ब्र और उसके आसपास के घरों पर हमला किया और आज आईएसआईएस के आतंकवादी चाहते हैं कि इतिहास को दोहरायें लेकिन इमाम और उनकी बारगाह से लोगों की मुहब्बत और उनका प्यार, इमाम से लड़ने वालों के कीने की आग पर ठंडे पानी का काम करता है।
इमाम हुसैन अ.ह. के हरम, इतिहास के हर दौर में एक ओर से ख़लीफ़ाओं और बेदीनों की दुश्मनी और दूसरी ओर जनता के प्रेम और उनके प्यार की धुरी है, अब्बासियों की हुकूमत के आरंभ में, इमाम हुसैन अ.ह. की पाक क़ब्र की ज़ियारत का रास्ता मुसलमानों के लिए खोला गया और यह सिलसिला हारून रशीद को समय तक चलता रहा जो पांचवां अब्बासी ख़लीफ़ा था और 193 हिजरी में उसने इमाम हुसैन अ.ह. की पाक क़ब्र और उसके आसपास के सभी घरों को उजाड़ दिया।
हारून रशीद पहला ख़लीफ़ा था कि जिसने इमाम हुसैन अ.ह. की पाक क़ब्र को वीरान किया था, हारून रशीद के बाद शियों के तीसरे इमाम की आरामगाह के ऊपर एक और इमारत बनाई गई, जो 233 हिजरी क़मरी यानी मुतवक्किल अब्बासी के सत्ता तक पहुंचने तक अपनी जगह पर बनी रही, लेकिन मुतवक्किल अब्बासी ने भी वही रास्ता अपनाया जो हारून रशीद ने अपनाया था और उसने अपनी राजनीति का आधार अहलेबैत अ की दुश्मनी पर रखा।
मुतवक्किल अब्बासी इमाम के साथ लड़ने वाला दूसरा अब्बासी ख़लीफ़ा
मुतवक्किल अब्बासी कि जो इमाम हुसैन अ.ह. से प्यार और मुहब्बत का स्रोत अहलेबैत अ.ह. के प्यार को जानता था और वह इमाम हुसैन अ.ह. की बारगाह के ज़ाएरीन की इस संख्या को बढ़ते हुए नहीं देख सकता था, उसने इमाम हुसैन अ.ह. की पाक क़ब्र और उसके आसपास के घरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था और इमाम हुसैन अ.ह. की ज़ियारत पर पाबंदी लगा दी था। मुतवक्किल अब्बासी ने इस पूरे क्षेत्र को वीरान कर दिया था और इसके बाद पूरे इलाक़े में पानी भरवा कर उसे डिबो दिया था।
इतिहास में यह सच्चाई दर्ज है कि एक इंसान जिसका नाम दीज़ज था और उसका धर्म यहूदी था वह इमाम हुसैन अ.ह. के ज़ाएरी की हत्या करने पर मुतवक्किल अब्बासी की ओर से तैनात था। इस इंसान की ज़िम्मेदारी यह थी कि हर ज़ाएर जो इस क्षेत्र में इमाम हुसैन अ.ह. की ज़ियारत के लिए जाये उसे मौत की घाट उतार दे।
वर्ष 247 हिजरी में मुतवक्किल अब्बासी की मौत के बाद इमाम हुसैन अ.ह. की पाक क़ब्र के ऊपर बड़ा रौज़ा बनाया गया वह इतना ऊंचा था कि लोग दूर से पहचान लेते थे और ज़ियारत के लिए उसकी ओर चल पड़ते थे।
इसके बाद बहुत सारे अल्वी अपने मकान कर्बला में इमाम हुसैन अ.ह. की पाक क़ब्र के पास बनाने में सफल रहे कि जिन में, इब्राहीमुल मुजाब इब्ने मुहम्मद अल-आबिद इब्ने इमाम मूसा इब्ने जाफ़र अ.ह. थे वह सबसे पहले अल्वी थे जिन्होंने कर्बला की ज़मीन को ज़िंदगी गुज़ारने के लिये अपने वतन के तौर पर चुना और यह 247 हिजरी में वह वहां बस गये।
साल 1216 हिजरी में कर्बला और इमाम हुसैन अ.ह. के हरम पर वहाबियों के एक गिरोह ने बर्बर हमला किया कि जिसका अगुवा सऊद इब्ने अब्दुल अजीज़ था। उसने ईदे ग़दीर के दिन इस शहर की घेराबंदी की और उसके अक्सर रहने वालों को चाहे वह बाजार में थे या घरों में, सभी को मौत की घाट उतार दिया।
सऊद बिन अब्दुल अज़ीज़ ने उस ज़माने में 12 हजार से अधिक सेना के साथ कर्बला में प्रवेश किया था और बहुत से शहरियों की हत्या करने के बाद उसने इमाम हुसैन अ.ह. की पाक क़ब्र के संदूकों कि जिसमें बेशुमार रूपया पौसा सोना चांदी और कीमती वस्तुएं थीं, लूट लिया।
आज उसी सोच के तहत इराक़ व सीरिया की इस्राईली हुकूमत आईएसआईएस, कि जिसे नया तकफीरी आतंकवादी गिरोह माना जाता है, अपने नापाक आरज़ू ज़बान पर लाई है और सोशल नेटवर्क पर लिखा है: राफ़ज़ी यह जान लें कि हमारा उद्देश्य कर्बला और नजफ़ और सामर्रा के शिर्क भरी इमारतों को ध्वस्त करना है , शिया जान लें कि इराक़ में इन रौज़ों को ध्वस्त करने के बाद हम ईरान आएंगे और मशहद को भी तबाह कर देंगे।
ईरानियों और ईरान के अधिकारियों का अहलेबैत अ.ह. से ऐतिहासिक लगाव।
ऑले बुवैह हुकूमत की स्थापना के बाद, उज़्वुद् दौलह ने वर्ष 379 हिजरी क़मरी में इमाम हुसैन अ.ह. की पाक क़ब्र के लिए हाथी के दांत की एक ज़रीह बनाई और सैयदुश् शोहदा के लिए नई बारगाह की बुनियाद रखने के बाद, उसके आसपास बहुत सारे बाजार और घर बनवाए और कर्बला शहर को ऊंची ऊंची दीवारों से घेर दिया गया। यह शहर उज़्वुद् दौलह के जमाने में बहुत बारौनक और धार्मिक सामूहिक, राजनीतिक, आर्थिक और साहित्यिक दृष्टि से एक बहुत मशहूर शहर में तब्दील हो गया।
ऑले बुवैह और सलजूकी अहलेबैत (अ अ) के चाहने वाले थे।
ऑले बुवैह हुकूमत के ख़त्म हो जाने के बाद, सलजूक़ियों ने सत्ता संभाली और सलजूकियों की राजनीति भी रौज़ो और मज़ारों को महत्व देने पर आधारित थी। उस ज़माने में सुल्तान मलिक शाह सलजूकी और उसके मंत्री निज़ामुल मुल्क के दौर में 553 हिजरी क़मरी में हरम की दीवारें बनाई गईं और इमाम हुसैन अ.ह. के हरम शरीफ की इमारतों का पुनर्निर्माण किया गया और ख़लीफ़ा व्यक्तिगत रूप से इमाम हुसैन अ.ह. की पाक क़ब्र की ज़ियारत के लिए रवाना हुआ, इसके बाद दूसरे ख़लीफ़ाओं ने भी इसी राजनीति पर अमल किया और इमाम हुसैन अ.ह. के हरम की ज़ियारत के लिए जाते थे यहां तक कि ख़लीफ़ा नासिरुद् दीनुल्लाह और अलमोअतसिम और अलमुसतनसिर भी इमाम हुसैन अ.ह. की पाक क़ब्र की ज़ियारत के लिये गये।

जब शाह इस्माईल सफ़वी ने वर्ष 914 में बग़दाद पर जीत हासिल की तो व्यक्तिगत रूप से इमाम हुसैन अ.ह. की पाक क़ब्र की ज़ियारत के लिए कर्बला की ओर रवाना हुआ और आदेश दिया कि इमाम हुसैन अ.ह. की पाक क़ब्र के लिए सोने की ज़रीह बनाई जाए। उसने सोने के बारह चेराग भी इमाम हुसैन अ.ह. की क़ब्र शरीफ पर उपहार के रूप में चढ़ाए और इस पाक बारगाह के लिए प्योर चांदी का एक सन्दूक बनाने का आदेश दिया था।
इसी तरह उसने इमाम हुसैन अ.ह. की बारगाह में अत्यधिक कीमती फ़रश और क़ालीनें बिछवाईं। शाह इस्माईल सफ़वी ने एक रात इमाम हुसैन अ.ह. के हरम में ऐतेकाफ़ किया और उसके बाद नजफ़े अशरफ़ में हजरत अली अ.ह. की पाक रौज़े की ज़ियारत के लिए रवाना हो गया क़ाचार के समय में तीन बार इमाम हुसैन अ.ह. के गुंबद पर सोना चढ़वाया गया और आग़ा मोहम्मद खान ने स्वयं 1207 हिजरी क़मरी में इमाम हुसैन अ.ह. के गुंबद पर सोने का काम करवाया।
फ़तेह अली शाह क़ाचार ने भी इस आधार पर कि इमाम हुसैन अ.ह. के गुंबद का सोना पुराना हो गया था, दूसरी बार नए सिरे से इस गुंबद पर सोने का काम करवाया।


source : abna24
0
0% (نفر 0)
 
نظر شما در مورد این مطلب ؟
 
امتیاز شما به این مطلب ؟
اشتراک گذاری در شبکه های اجتماعی:

latest article

तरकीबे नमाज़
तरकीबे नमाज़
दुआए तवस्सुल
क्यों मारी गयी हज़रत अली पर तलवार
वहाबियों और सुन्नियों में ...
नमाज.की अज़मत
नक़ली खलीफा 3
दुआ ऐ सहर
क़ुरआन
आदर्श जीवन शैली-६

 
user comment