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बीस मोहर्रम के वाक़ेआत

हज़रत जौन का दफ़्न किया जाना सोमवार बीस मोहर्रम सल 61 हिजरी आशूर के दस दिन के बाद बनी असद के कुछ लोगों ने हज़रत अबूज़र ग़फ़्फ़ारी के दास हज़रत जौन के पवित्र शरीर को देखा इस अवस्था में कि उनके चेहरे से
बीस मोहर्रम के वाक़ेआत

हज़रत जौन का दफ़्न किया जाना


सोमवार बीस मोहर्रम सल 61 हिजरी


आशूर के दस दिन के बाद बनी असद के कुछ लोगों ने हज़रत अबूज़र ग़फ़्फ़ारी के दास हज़रत जौन के पवित्र शरीर को देखा इस अवस्था में कि उनके चेहरे से प्रकाश फैल रहा था और उनके शरीर से सुगंध आ रही थी, इन लोगों ने हज़रत जौन को दफ़्न किया। (1)


जौन एक हब्शी दास थे जिनको अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) ने 150 दीनार में ख़रीदा था और उनको अबूज़र को भेंट किया था, जब उस्मान ने पैग़म्बर (स) महानी सहाबी अबूज़र को मदीने से शहर निकाला किया और उनको रबज़ा की तरफ़ भेजा तो यह दास भी उनकी सहायता के लिये मदीने से रबज़ा चला गया और अबूज़र के निधन के बाद आप दोबारा मदीने आये और अमीरुल मोमिनीन (अ) की सेवा करने लगे, अमीरुल मोमिनीन (अ) की शहादत के बाद आप इमाम हसन (अ) के साथ रहे और आपकी शहादत के बाद इमाम हुसैन (अ) के सेवक बने और आपने इमाम हुसैन (अ) के साथ मदीने से मक्के और मक्के से कर्बला की यात्रा की।


जब कर्बला में इमाम हुसैन (अ) और यज़ीदी सेना के बीच युद्ध अपनी चरम सीमा पर था तो आप इमाम हुसैन (अ) के पास आते हैं और विलायत की सुरक्षा और इमामत के देफ़ा के लिये इमाम से युद्ध के मैदान में जाने की अनुमति मांगते हैं ।


इमाम ने फ़रमायाः हे जौन तुम इस यात्रा पर हमारे साथ चैन और सुकून के लिये आये थे, अब तुम अपने आप को हमारे लिये ख़तरे में न डालो।


जौन ने स्वंय को इमाम के पवित्र क़दमों पर गिरा दिया और चूमकर कहाः हे पैग़म्बर (स) के बेटे जब आप अच्छे हालात और सुकून में थे मैं आपके साथ था, और अब जब कि आप पर समस्याओं और कठिनाईयों का समय आया है तो मैं आपका साथ छोड़ दूँ?


जब किसी भी प्रकार से इमाम उनको मैदान में जाने की अनुमति नहीं दी तो जौन सोंचने लगे कि कहां मैं और कहां यह पवित्र ख़ानदान? फिर जौन ने कहाः मेरे मौला मैं जानता हूँ कि मेरे शरीर से दुर्गंध आती है मेरा नसब ऊँचा नहीं है, मेरा रंग काला है इसलिये आप मुझे मैदान में जाने की अनुमति नहीं दे रहे हैं मेरे मौला मैं आपसे उस समय तक जुदा नहीं होऊँगा जब तक कि अपने काले खून को आपके परिवार के रक्त से मिला न दूँ।


जौन यह कहते जाते थे और रोते जाते थे, आख़िरकार इमाम ने आपको जाने की अनुमति दी।


अगरचे जौन की आयु कर्बला में 90 साल की थी लेकिन चूँकि अहलेबैत के परिवार के अधिकतर बच्चे आप से मानूस थे इसलिये जब आप ख़ैमों के पास अंतिम विदा के लिये आये तो बच्चों ने आपको देखकर रोना आरम्भ कर दिया, आप ने सभी को चुप कराया और उसके बाद एक घायल शेर की भाति उस नापाक यज़ीदी सेना पर टूट पड़े जो भी समाने आया उसको नर्क का रास्ता दिखाया, यहां तक की सभी ने मिलकर आपको घेर लिया और हर तरफ़ से वार करने लगे जौन ज़मीन पर गिरे।


इमाम हुसैन (अ) ने जब अपने 90 साल के बूढ़े गुलाम को इस अवस्था में देखा तो फूट फूट कर रोने लगे और आपने अपना पवित्र हाथ जौन के चेहरे पर रखा और फ़रमायाः


اللهم بیض وجهه و طیب ریحه و احشره مع محمد و آل محمد


हे ईश्वर उसने चेहरे को सफ़ेद कर दे और उसकी गंध को सुगंधित कर दे और उनको मोहम्मद (स) और आले मोहम्मद (अ) के साथ उठाना।


और यह इमाम हुसैन (अ) की दुआ की ही बरकत थी सियाहफ़ाम ग़ुलाम जौन का चेहरा चौदहवीं के चाँद की भाति चमक रहा था और उनके शरीर के निकलती सुगंध पूरे वातावरण में फैली थी, कि जब बनी असद को जौन की लाश दस दिन के बाद मिली है तो उनके चेहरा प्रकाशमयी और शरीर से सुगंध निकल रही थी। (2)

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(1)    मुनतख़बुत तवारीख़, पेज 311

(2)    वसीलतुद्दारीन फ़ी अंसारिल हुसैन, पेज 115

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