आस्ट्रेलिया की नागरिक ज़ैनब टेलर इस्लाम धर्म के वैभव के समक्ष नतमस्तक हो गयीं और धर्म की उच्च शिक्षाओं से लाभान्वित हो रही है। उन्होंने जून वर्ष 2005 में हज़रत फ़ातेमा के चरित्र के आयामों पर होने वाली अंतर्राष्ट्रीय कांफ़्रेस में भाग लेने के लिए ईरान की यात्रा की थी। वह इस्लाम धर्म स्वीकार करने के बारे में कहती हैं कि मैं आस्ट्रेलिया जैसे देश से ईरान आयी। वहां पर अंगुलियों पर मुसलमानों को गिना जा सकता है। मैं इससे पहले ईसाई धर्म की अनुयायी थी। यहां तक कि मेरे एक मित्र ने ईश्वरीय उपहार के रूप में मुझे इस्लामी पुस्तकों से परिचित करवाया। वह पुस्तकें मेरे लिए बहुत ही रोचक थीं। अलबत्ता इन रोचक पुस्तकों में जो सबसे महत्त्वपूर्ण पुस्तक थी वह पवित्र क़ुरआन था। मैं अभी मुसलमान नहीं हुई थी कि मैंने पवित्र क़ुरआन का अध्ययन आरंभ कर दिया। इस पुस्तक को पढ़ने से मेरे भीतर एक आभास पैदा हुआ और इस आभास ने मुझपर यह स्पष्ट कर दिया कि यह पुस्तक ज़मीनी नहीं बल्कि आसमानी है। एकेश्वरवाद और आदर्श व्यवहार के लिए पवित्र क़ुरआन एक बेहतरीन मार्ग दर्शक है और उसके नियम हमारे आज के संसार के नियमों व सिद्धांतों से पूर्ण रूप से समन्वित हैं और सदैव अनुसरण योग्य हैं। मेरा मानना है कि मनुष्य को अपने रचयिता और इस सृष्टि के रचनाकार से सीधे संपर्क की सदैव आवश्यकता होती है। मैंने भी अपने भीतर इस आवश्यकता का आभास किया। यद्यपि यह संपर्क दुआओं और ईश्वरीय गुणगान के माध्यम से हमें प्राप्त हो जाता है किन्तु स्वयं ईश्वर के शब्दों अर्थात क़ुरआन तक पहुंच हमारे लिए बहुत आनन्ददायक थी। सबसे पहले मैंने अंग्रेज़ी में क़ुरआन पढ़ना सीखा और बाद में अरबी में। उसके बाद मैंने अंतिम ईश्वरीय दूत हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लाहो अलैह व आलेही वसल्लम की जीवनी का अध्ययन किया। मैंने धीरे धीरे इस्लाम को पहचाना। मुझे पूरी तरह ईश्वर पर भरोसा है और मुझे इस बात पर पूरा ईमान है कि यदि संसार में मार्गदर्शन का कोई दीप है तो वह इस्लाम है।
सुश्री ज़ैनब टेलर अपनी समस्त समस्याओं के बावजूद आशा से ओतप्रोत हृदय की स्वामी हैं और वह इन शब्दों द्वारा अपनी भीतरी और गहरी प्रसन्नता को व्यक्त करते हुए कहती हैं कि उन समस्त बातों के साथ जो मैंने आपको बतायी हैं, मैं बहुत प्रसन्न और सौभाग्यशाली हूं क्योंकि मैं अपने पति और बच्चों के साथ इस्लाम के अथाह समुद्र में जीवन व्यतीत रही हूं।