इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के वंश से थे और उन्होंने अपनी छोटी सी आयु में ज्ञान और परिज्ञान के मूल्यवान ख़ज़ाने छोड़े हैं। वह इमाम जिसकी दया व दान के सागर से सबने लाभ उठाये हैं और अत्यधिक दानी होने के कारण आप जवाद अर्थात दानी की उपाधि से प्रसिद्ध हो गये जबकि आपका नाम मोहम्मद तक़ी था। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की दया, मधुर समीर की भांति है जो पीड़ित एवं संकटग्रस्त लोगों की जानों को तरुणई प्रदान करती है।
हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्लाम जिनकी सबसे प्रसिद्ध उपाधि जवाद अर्थात दानी है, हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के सुपुत्र हैं और १९५ हिजरी क़मरी में आपका जन्म पवित्र नगर मदीना में हुआ था। हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्लाम के जन्म के समय आपके पिता हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने आपके जन्म के समय आपके स्थान के बारे में कहा" ईश्वर ने मुझे ऐसा पुत्र प्रदान किया है जो मूसा की भांति ज्ञान के सागर को चीरने वाला है और ईसा की भांति उसकी मां पवित्र है"हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने अपने पिता हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद लोगों के मार्गदर्शन के ईश्वरीय दायित्व अर्थात "इमामत" का पदभार १७ वर्ष की आयु में संभाला और लोगों के मध्य विशुद्ध इस्लामी शिक्षाएं व संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए काम किया। हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के पावन एवं विभूतिपूर्ण जीवन काल में दो अब्बासी शासकों मामून और मोतसिम की सरकारें थीं। उस समय पवित्र नगर मदीना इस्लामी शिक्षा व संस्कृति के प्रचार- प्रसार का महत्वपूर्ण केन्द्र था। हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम स्वयं अपने नगर मदीना एवं हज के दिनों में पवित्र नगर मक्का की यात्रा करके हर संभव अवसर से लाभ उठाते और इस्लाम की वास्तविकताओं को बयान करते थे। आप इसी प्रकार राजनीतिक एवं सामाजिक मामलों के सुधार की दिशा में काम करते और अपने समय के अत्याचारी शासकों के क्रिया- कलापों पर टीका- टिप्पणी करते थे। क्योंकि आप देख रहे थे कि भ्रष्ठ, अत्याचारी और अयोग्य शासक इस्लामी समाज पर शासन कर रहे हैं तथा पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम की परम्परा भुला दी गई है। दूसरी ओर इमाम देख रहे थे कि निर्धनता, भ्रष्टाचार और अन्याय के कारण लोग धर्म की मूल शिक्षाओं से दूर हो गये हैं। सदाचार, पवित्रता, ज्ञान और हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का महान व्यक्तित्व इस प्रकार था कि मामून लोगों के मध्य इमाम के प्रति प्रेम एवं उनके प्रभाव से डरता था। इसी कारण उसने हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को पवित्र नगर मदीना से अपनी सरकार के केन्द्र बग़दाद में बुला लिया। अलबत्ता हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम कुछ समय के बाद दोबारा मदीना लौट गये। सुन्नी मुसलमान धर्मगुरू कमालुद्दीन शाफ़ेई हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के बारे में कहते हैं" इमाम जवाद अलैहिस्सलाम का मूल्य व स्थान बहुत ऊंचा है। उनका नाम लोगों की ज़बानों पर है। क्षमाशीलता, विस्तृत दृष्टि और उनके मीठे बयान ने सबको अपनी ओर आकृष्ट कर लिया है। जो भी उनसे मिलता है बरबस ही आपकी सराहना करने लगता है और बुद्धियां आपके ज्ञान व परिज्ञान से लाभ उठाती हैं"हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम कम आयु के बावजूद अपने समय के सबसे बड़े ज्ञानी थे और लोग विशेषकर ज्ञान व परिज्ञान के प्यासे निकट व दूर से आपकी सेवा में आते थे। आप ज्ञान के महत्व के बारे में कहते हैं" ज्ञान प्राप्त करो क्योंकि ज्ञान प्राप्त करना सब पर अनिवार्य है और ज्ञान एवं उसके विश्लेषण के बारे में बात करना अच्छा कार्य है। ज्ञान मित्रों एवं भाईयों के बीच संपर्क का कारण बनता है और वह उदारता का चिन्ह है। ज्ञान संगोष्ठियों व सभाओं का उपहार है और यात्रा एवं एकांत में वह मनुष्य का साथी है"मोहम्मद बिन मसऊद अयाशी नामक व्यक्ति जो पवित्र क़ुरआन का व्यख्याकर्ता एवं विचारक भी है, कहता है" अब्बासी ख़लीफ़ा मोतसिम के काल में एक दिन सरकार के कारिंन्दों ने कुछ चोरों व लुटेरों को गिरफ्तार कर लिया। इन चोरों व लुटेरों ने नगरों के मध्य के सार्वजनिक रास्तों को यात्रियों एवं हज पर जाने वाले कारवानों के लिए असुरक्षित बना दिया था। कारिन्दों ने मोतसिम की केन्द्र सरकार से प्रश्न किया कि चोरों को किस प्रकार का दंड दिया जाये। मोतसिम ने इस संबंध में परामर्श बैठक बुलाई और उसमें धर्मशास्त्रियों को आमंत्रित किया। उसने हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम से भी परामर्श बैठक में भाग लेने का आह्वान किया। मोतसिम यह कल्पना कर रहा था कि कम आयु होने के कारण इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम विद्वानों के समक्ष अक्षमता का आभास करेंगे और उनके ज्ञान एवं धर्मशास्त्र की श्रेष्ठता के संबंध में संदेह उत्पन्न हो जायेगा। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम न चाहते हुये भी इस बैठक में उपस्थित हुए। धर्मशास्त्रियों ने पवित्र क़ुरआन की आयत को आधार बना कर चोरों व लुटेरों को मुत्यदंड सुनाया। इमाम, जो उस समय तक मौन धारण किये हुए थे, जब यह समझ गये कि धर्मशास्त्रियों ने निर्णय देने में ग़लती की है तो बोले" आप लोगों ने निर्णय देने में ग़लती की है। आरंभ में समस्त पहलुओं पर ध्यान देना चाहिये। उस समय इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने परामर्श सभा में बैठे लोगों के लिए पवित्र क़ुरआन की उस आयत के विभिन्न रूपों को बयान किया और उसकी व्याख्या की जिसे धर्मशास्त्रियों ने आधार बनाया था। उसके पश्चात इमाम ने चोरों के अपराधों के विभिन्न पहलुओं की समीक्षा की और उनमें से हर एक के दंड को विस्तार से बयान किया। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम इस प्रकार तर्कपूर्ण बात कर रहे थे कि हर सही बुद्धि वाला व्यक्ति उनकी बात को स्वीकार करता था। मोतसिम ने जब हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के ठोस व तर्कसंगत प्रमाणों को देखा तो विवश होकर उसने इमाम के दृष्टिकोण को स्वीकार कर लिया और परामर्श सभा में बैठे विद्वानों एवं धर्मशास्त्रियों की शैक्षिक कमज़ोरी स्पष्ट हो गयी। इस प्रकार हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने ग़लत निर्णय जारी होने से रोक लिया।
हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को अपनी इमामत के काल में बहुत अधिक कठिनाइयों का सामना था। विशेषकर उस समय जब विवश होकर मोतसिम के सत्ताकाल में आपको दोबारा बग़दाद में रहना पड़ा। लोगों के साथ संपर्क बनाये रखने के लिए आपके लिए आवश्यक था कि अब्बासी शासकों के पूरे शासन क्षेत्र में आपके प्रतिनिधि हों। आपने अपने कुछ समर्थकों व चाहने वालों को सरकारी पदों को स्वीकार करने की अनुमति दी थी ताकि इस मार्ग से वे पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के पवित्र परिजनों के चाहने वालों की सहायता कर सकें। इनमें से एक व्यक्ति कूफा नगर का न्यायधीश था। हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम द्वारा वैचारिक एवं राजनीतिक ढंग से लोगों को बेहतर बनाने की कार्यवाही पूर्णरूप से गोपनीय थी। आप इस प्रकार कार्य करते थे कि कभी आपके निकट प्रतिनिधि भी आपके कार्यों के विवरण से अवगत नहीं हो पाते थे। उदाहरण स्वरूप एक दिन इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने इब्राहीम बिन मोहम्मद नाम के व्यक्ति को पत्र लिखकर दिया और कहा कि जब तक यहिया बिन इमरान जीवित है तब तक तुम इस पत्र को न खोलना। यहिया बिन इमरान एक क्षेत्र में इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के प्रतिनिधि थे। कई वर्षों के बाद जब यहिया बिन इमरान का निधन हो गया तो इब्राहीम बिन मोहम्मद ने इमाम द्वारा दिये गये पत्र को खोला। पत्र पढ़ने के बाद इब्राहीम बिन मोहम्मद समझे कि इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने लिखा है कि अब यहिया बिन इमरान की ज़िम्मेदारी तुम्हारे ऊपर है" यह बात समय की घुटन के वातावरण में इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की दूरदर्शिता एवं समझदारी की सूचक है। हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का जीवन काल कम था परंतु विभूतिपूर्ण था और आपका प्रयास यह था कि कठिन से कठिन परिस्थिति में भी लोगों के साथ संपर्क बनाये रखें। निर्धन एवं आवश्यकता रखने वाले लोगों को दान देना स्वयं एक प्रकार से लोगों के साथ संपर्क था और इससे पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के पवित्र परिजनों की दया व गरिमा स्पष्ट होती है। हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने दान की यह शैली अपने बाल्याकाल में अपने पिता की सिफारिश से आरंभ की थी। जब हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम मर्व क्षेत्र में थे तो उन्होंने सुना कि उनके सुपुत्र इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के सेवक उन्हें एक ऐसे दरवाज़े से घर से बाहर ले जा रहे हैं जहां से कोई आता- जाता नहीं है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपने पुत्र के नाम पत्र में, जो उस समय छोटे थे, लिखा कि तुम्हें सौगन्द है कि बड़े दरवाज़े से बाहर आओ और अपने साथ कुछ पैसे रखो ताकि आवश्यकता रखने वालों को दे सको"हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम धन- सम्पत्ति को सर्वसमर्थ व महान ईश्वर की थाती समझते थे कि यदि इससे लाभ उठाया जाये तो प्रसन्नता की बात है और यदि इससे दूसरे लाभान्वित हों तो यह हमारे लिए पुण्य का कारण है"एक दिन एक व्यक्ति हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचा इस स्थिति में कि वह बहुत प्रसन्न था। इमाम ने उससे प्रसन्नता का कारण पूछा तो उसने कहा" आज हमें आवश्यकता रखने वाले १० व्यक्तियों की समस्याओं के समाधान का अवसर मिला। इस कारण मैं प्रसन्न हूं" हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने कहा कि अच्छी बात है कि आज प्रसन्न रहो इस शर्त के साथ कि अपनी भलाई को तबाह न करो। ईश्वर ने कहा है कि हे ईमान लाने वालो दूसरों को कष्ट देकर और उन पर एहसान जताकर अपने दान को तबाह मत करो"हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के जीवन के अंतिम दो वर्ष बहुत कठिन परिस्थिति में गुज़रे। क्योंकि जनता को धोखा देने वाली मामून की नीतियों के विरूद्ध मोतसिम ने पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से अपनी शत्रुता स्पष्ट कर दी थी। इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की श्रेष्ठता व प्रतिष्ठा इस प्रकार थी कि अब्बासी ख़लीफ़ा मोतसिम इस बात को सहन न कर सका कि इमाम का आध्यात्मिक व्यक्तित्व लोगों के प्रेम व ध्यान का केन्द्र बना रहे। विशेषकर इसलिए कि इमाम के साथ लोगों की समरसता उनकी हार्दिक इच्छा और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजनों से गहरे प्रेम का परिमाण थी। मोतसिम हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को अपनी अत्याचारी सरकार और सांसारिक हितों के मार्ग में बाधा समझता था इसलिए उसने इमाम को अपने मार्ग से हटाने का निर्णय किया। उसने अपने इस निर्णय को सन् २२० हिजरी क़मरी में व्यवहारिक बना दिया और इस प्रकार हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम २५ वर्ष की आयु में शहीद हो गये।