अबनाः कर्बला में इमाम हुसैन अ.स. की शहादत के बाद दीन और दीनदारों की सारी ज़िम्मेदारी इमाम सज्जाद अ.स. पर थी, और आप के लिए बहुत ही कठिन था कि एक तरफ़ बाप और भाइयों की लाशें थीं तो दूसरी तरफ़ मां बहनों के खुले हुए सर, और इस परिस्तिथि में दीन के अहकाम और कर्बला और इमाम हुसैन अ.स. की क़ुर्बानी का मक़्सद भी लोगों के सामने ज़ाहिर करना है, यह ऐसे हालात थे कि जिनमें केवल इमाम अ.स. ही साबित क़दम रह सकते थे। यज़ीद अभी अपनी ज़ाहिरी जीत के नशे में चूर था और अपने ख़्याल में अपने को कर्बला में जीता हुआ समझ रहा था तभी उसने हुक्म दिया कि अहले बैत अ.स. के घराने के क़ैद किए गए लोगों को दरबार में लाकर उनका अपमान किया जाए, फिर सिपाहियों को हुक्म दिया गया कि सभी क़ैदियों को रस्सी में बांधकर लाया जाए और चूंकि इमाम सज्जाद अ.स. इस क़ाफ़िले के सरपरस्त थे इसलिए उनको ज़ंजीर से बांध कर दरबार में लाने का हुक्म दिया। (सियरो आलामिन-नब्ला, जिल्द 3, पेज 216)
जब अहले हरम अ.स. का यह क़ाफ़िला दरबार में लाया गया तो उनके चेहरों पर ग़म और मज़लूमियत छाई थी और पूरा दरबार घमंड में डूबा हुआ था, इमाम सज्जाद अ.स. ने ऐसे माहौल में ख़ामोश रहना सही नहीं समझा इसीलिए जैसे ही आपकी नज़र यज़ीद के नजिस चेहरे पड़ी आपने फ़रमाया, ऐ यज़ीद तुझे अल्लाह की क़सम है सच बता कि अगर पैग़म्बर स.अ. यहां मौजूद होते और हम लोगों को इस हाल में देख लेते तो तेरे साथ क्या करते? (बिहारुल अनवार, जिल्द 45, पेज 131)
इमाम अ.स. के इस एक जुमले ने पूरे दरबार के माहौल को बदल कर रख दिया, यज़ीद के दरबार की पूरी भीड़ यज़ीद को रसूल स.अ. का जानशीन समझ कर सम्मान दे रही थी, जब उन लोगों ने इमाम अ.स. की मुबारक ज़ुबान से पैग़म्बर स.अ. का नाम सुना तो सबकी ज़ुबान पर यही सवाल था कि क्या इन क़ैदियों में से किसी की रिश्तेदारी पैग़म्बर स.अ. है? इमाम अ.स. के इस एक जुमले ने यज़ीद की बातिल हुकूमत पर ऐसा वार किया कि उसकी हुकूमत लरज़ गई, और इसी एक जुमले से यज़ीद अपने ही दरबार में अपने ही द्वारा बुलाई गई भीड़ के बीच अपमानित हो गया, उसके ख़ौफ़ की हालत यह थी कि उसने हुक्म दिया कि इमाम अ.स. के हाथों, पैरों और गले से ज़ंजीर और तौक़ को उतार दिया जाए। लेकिन यज़ीद हुकूमत की लालच में इतना अंधा हो चुका था कि वह पैग़म्बर स.अ. के घराने का हर प्रकार से अपमान कर रहा था, इसी के चलते उसने कर्बला के शहीदों के कटे हुए सरों को दरबार में मंगवाया और जब सरों को लाया गया तो वह शेर पढ़ने लगा जिसका मतलब यह था, तलवारों ने उन सरों को काटा जिनका मैं सम्मान करता था, लेकिन क्या करूं उन्होंने मुझ से दुश्मनी और नफ़रत में जल्दबाज़ी कर दी।
इमाम सज्जाद अ.स. ने यज़ीद के जवाब में फ़रमाया ऐ यज़ीद इस शेर की जगह क़ुर्आन की इस आयत को सुन, जिसमें अल्लाह ने फ़रमाया है कि, इस ज़मीन और तुम तक कोई मुसीबत नहीं पहुंचेगी मगर यह कि वह लौहे महफ़ूज़ में पहले से दर्ज है, इसलिए जो छिन गया उसका ग़म मत करो और जो उसने दिया उस पर बहुत अधिक ख़ुश मत हो, अल्लाह घमंड करने वालों को पसंद नहीं करता। (सूरए हदीद, आयत 22, 23) यज़ीद जो इमाम अ.स. के इस आयत की तिलावत के मक़सद को समझ चुका था, तिलमिला कर अपनी दाढ़ी को हाथ में ले कर इमाम अ.स. से कहता है कि क़ुर्आन में एक और आयत भी है जो तुम्हारे और तुम्हारे वालिद के लिए ज़्यादा मुनासिब है, और फिर इस आयत को पढ़ता है, जो भी मुसीबत तुम तक पहुंचे वह तुम्हारे अपने कामों की वजह से है, अल्लाह बहुत माफ़ करने वाला है। (सूरए शूरा, आयत 30) फिर इमाम सज्जाद अ.स. से कहता है कि, तुम्हारे बाप ने रिश्तेदारी को ख़त्म कर के हम से मुंह मोड़ लिया था, और हुकूमत को हासिल करने के लिए हमसे मुक़ाबले पर आ खड़े हुए थे, देखा अल्लाह ने उनके साथ क्या किया। (तारीख़े तबरी, जिल्द 7, पेज 376, बिलाज़री, जिल्द 2, पेज 220)
इमाम अ.स. ने फिर उसी आयत की तिलावत की जिसको पहले कर चुके थे, यज़ीद ने अपने बेटे से इमाम अ.स. को जवाब देने को कहा, लेकिन वह हैरान था कि क्या कहे, यज़ीद ने फ़िर सूरए शूरा की आयत की तिलावत की। यज़ीद सोच रहा था कि इमाम अ.स. इस अपमान को चुपचाप सहन कर लेंगे, और उसका घटिया किरदार और नजिस वुजूद लोगों के सामने ज़ाहिर नहीं होगा, लेकिन इमाम अ.स. उठ कर उसी के सामने खड़े हो कर फ़रमाते हैं कि, ऐ यज़ीद अपने दिमाग़ से यह निकाल दे कि तू हमें ज़लील करेगा हमारा अपमान करेगा और हम तेरे आगे गिड़गिड़ाएंगे, तू हमें सताता रहेगा और हम चुपचाप ख़ामोश रहेंगे, तुम हमें पसंद नहीं करते इस से हमको कोई लेना देना नहीं, लेकिन सुन हम तुझको और तेरे किरदार को बिल्कुल पसंद नहीं करते। (बिहारुल-अनवार, जिल्द 45, पेज 175)
इमाम अ.स. के इतना कहने पर यज़ीद भरे दरबार में ज़लील हो चुका था इसीलिए इमाम अ.स. से कहता है कि, तुम्हारे बाप चाहते थे कि हुकूमत को हम से छीन लें, अल्लाह का शुक्र कि उसने उनको क़त्ल कर दिया, फिर अपनी पिछली बात को दोहराने लगा कि, तुम्हारे बाप ने रिश्तेदारी का ख़्याल नहीं रखा, हुकूमत के लिए हमसे जंग करने आ गए, इसीलिए अल्लाह ने उनके साथ ऐसा किया। इमाम सज्जाद अ.स. ने फिर एक बार यज़ीद की आंखों में आंख डाल कर कहा ऐ माविया और जिगर चबाने वाली के बेटे, तेरे इस दुनिया में क़दम रखने से पहले पैग़म्बरी और हुकूमत हमारे घराने में थी, बद्र, ओहद और अहज़ाब में अल्लाह ने मुसलमानों के लश्कर के परचम को हमारे वालिद के हाथ में दिया, और तेरे बाप दादा के हाथ में कुफ़्र का परचम था, फिर आपने कहा ऐ यज़ीद, अगर तुझे तेरे किए का पता चल जाता और तू समझ जाता कि तूने मेरे बाप, मेरे भाइयों, भतीजों और मेरे ख़ानदान के साथ क्या किया है तो तू पहाड़ों में पनाह ढ़ूंढ़ता, रेत पर सोता और फ़रियाद करता। (तारीख़े इब्ने असीर, जिल्द 2, पेज 86)
यज़ीद ने हालात बदलते देख दरबार के ख़तीब को हुक्म दिया कि मिम्बर पर जा कर इमाम अली अ.स. और इमाम हुसैन अ.स. को बुरा भला कहे, उसने यज़ीद के हुक्म पर अमल करते हुए बुरा भला कहा भी, इमाम अ.स. ने दरबारी ख़तीब की इस गुस्ताख़ी को देखते हुए कहा ख़ुदा तेरा ठिकाना जहन्नम क़रार करे। फिर जब यज़ीद का ख़रीदा हुआ ख़तीब अपनी बकवास कर चुका, इमाम अ.स. ने यज़ीद से कहा तेरा यह ख़रीदा हुआ ख़तीब अपनी बात कह चुका, उसके जो दिल में आया उसने हमारे बारे में कहा, अब तू हमें भी अनुमति दे कि हम जा कर लोगों से कुछ कह सकें। पहले तो यज़ीद ने मना किया लेकिन जब लोगों की मांग और कुछ दरबारियों को देखा तो मजबूर हो कर यह कर अनुमति दी कि जाओ और अपने वालिद के कामों की माफ़ी मांगो।
इमाम सज्जाद अ.स. का ख़ुतबा इमाम अ.स. ने अपने ख़ुतबे को अल्लाह के नाम से शुरू कर के तौहीद के परचम को यज़ीद के दरबार में बुलंद करते हुए फ़रमाया जो मुझे जानते हैं वह जानते हैं, और जो नहीं जानते वह सुनें, मैं मक्का का बेटा हूं, मैं मिना का बेटा हूं, मैं ज़मज़म का बेटा हूं, मैं सफ़ा का बेटा हूं, इसी तरह इमाम अ.स. अपने को पहचनवाते रहे और सभी दरबारी बहुत ध्यान से इमाम अ.स. के बयान को सुन रहे थे फिर इमाम अ.स. ने फ़रमाया, मैं मुस्तफ़ा स.अ. का बेटा हूं, मैं अली अ.स. का बेटा हूं, मैं फ़ातिमा स.अ. का बेटा हूं......(मक़ातिलुत-तालिबीन, जिल्द 2, पेज 121, एहतेजाजे तबरसी, जिल्द 2, पेज 310, मक़तले ख़्वारज़मी, जिल्द 2, पेज 69)
इमाम अ.स. ने अपने बयान को जारी रखा, यहां तक कि लोगों की रोने की आवाज़ें बुलंद हो गईं, यज़ीद की हुकूमत लरज़ने लगी, यज़ीद हालात को देख कर बुरी तरह घबरा गया इसीलिए उसने तुरंत अज़ान देने का हुक्म दिया, अज़ान देने वाले ने अज़ान शुरू की इमाम अ.स. ने भी अज़ान को दोहराना शुरू किया, जैसे ही उसने अशहदो अन्ना मुहम्मदर रसूलुल्लाह कहा इमाम अ.स. ने यज़ीद की ओर देखते हुए कहा ऐ यज़ीद यह मोहम्मद स.अ. का नाम जो अज़ान देने वाले ने अभी लिया और उनकी रिसालत की गवाही दी मुझे यह बता कि यह तेरे जद हैं या मेरे... अगर तू यह कहे कि यह मेरे जद हैं तो तू झूठा है, और अगर इनको मेरा जद मानता है तो यह बता कि किस जुर्म में उनके ख़ानदान को क़त्ल कर दिया। (मक़ातिलुत-तालिबीन, जिल्द 2, पेज 121, एहतेजाजे तबरसी, जिल्द 2, पेज 310, मक़तले ख़्वारज़मी, जिल्द 2, पेज 69)
इमामत के असली वारिस ने यज़ीद को उसी के दरबार में उसी के बुलाए गए लोगों के बीच ज़लील कर के अपनी ज़िम्मेदारी को निभाया, और वह यज़ीद जिसने दरबार को पैग़म्बर स.अ. के घराने को (माज़अल्लाह) ज़लील करने और अपनी वाहवाही के लिए सजाया था उसी दरबार में वह और उसका पूरा घराना ज़लील हो कर रह गया