इतिहास ने हज़रत पैगम्बर के दस वर्षीय शासन के अन्तर्गत आपके 28 धर्म युद्धों तथा 35 से लेकर 90 तक की संख्या मे सरिय्यों का उल्लेख किया है। (पैगम्बर के जीवन मे सरिय्या उन युद्धों को कहा जाता था जिन मे पैगम्बर स्वंय सम्मिलित नही होते थे।)
जब इस्लामी सेना किसी युद्ध पर जाती तो हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा इस्लामी सेनानियों के परिवार की साहयता के लिए जाती व उनका धैर्य बंधाती थीं।
वह कभी कभी स्त्रीयों को इस कार्य के लिए उत्साहित करती कि युद्ध भूमी मे जाकर घायलों की मरहम पट्टि करें।
परन्तु केवल उन सैनिकों की जो उनके महरम हों। महरम अर्थात वह व्यक्ति जिनसे विवाह करना हराम हो।
ओहद नामक युद्ध मे हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा अन्य स्त्रीयों के साथ युद्ध भूमि मे गईं इस युद्ध मे आपके पिता व पति दोनो बहुत घायल होगये थे।
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा ने अपने पिता के चेहरे से खून धोया तथा जब यह देखा कि खून बंद नही हो रहा है तो हरीर(रेशम) के एक टुकड़े को जला कर उस की राख को घाव पर डाला ताकि खून बंद हो जाये।
उस दिन हज़रत अली ने अपनी तलवार धोने के लिए हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा को दी।
इस युद्ध मे हज़रत पैगम्बर के चचा श्री हमज़ा शहीद हो गये थे।
युद्ध के बाद श्री हमज़ा की बहन हज़रत सफ़िहा हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा के साथ अपने भाई की क्षत विक्षत लाश पर आईं तथा रोने लगीं।
हज़रत फ़ातिमा सलामुल्लाह अलैहा भी रोईं तथा पैगम्बर भी रोयें।और अपने चचा के पार्थिव शरीर से कहा कि अभी तक आप की मृत्यु के समान कोई मुसीबत मुझ पर नही पड़ी।
इसके बाद हज़रत फ़तिमा व सफ़िहा से कहा कि अभी अभी मुझे अल्लाह का संदेश मिला है कि सातों आकाशों मे हमज़ा शेरे खुदा व शेरे रसूले खुदा है।
इस युद्ध के बाद हज़रत फातिमा जब तक जीवित रहीं हर दूसरे या तीसरे दिन ओहद मे शहीद होने वाले सैनिकों की समाधि पर अवश्य जाया करती थीं।
ख़न्दक नामक युद्ध मे हज़रत फ़तिमा अपने पिता के लिए रोटियां बनाकर ले गयीं जब पैगम्बर ने प्रश्न किया कि यह क्या है?
तो आपने उत्तर दिया कि आपके न होने के कारण दिल बहुत चिंतित था अतः यह रोटियां लेकर आपकी सेवा मे आ गई।
पैगम्बर ने कहा कि तीन दिन के बाद मैं यह पहला भोजन अपने मुख मे रख रहा हूँ।