रोज़ा क्या है, कैसे रखा जाता है और उसके अहकाम क्या हैं? इन सब बातों को लगभग आप सभी जानते हैं अलबत्ता रोज़ा सिर्फ वह नहीं है जो आमतौर से समझा जाता है ۔۔۔۔۔۔
अबनाः अल्लाह ने रमज़ान के मुबारक महीने में तमाम मुसलमानों पर रोज़ा वाजिब किया है क़ुरआन में हुक्म हैः
’’يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ‘‘(بقرہ؍۱۸۳)
ऐ ईमान वालों, तुम पर रोज़ा वाजिब किया गया है जिस तरह तुम से पहले वालों पर वाजिब किया गया था ताकि तुम मुत्तक़ी (सदाचारी) बन सको। मानो यह यह नेअमत पिछली उम्मतों को भी नसीब हुई है और वह भी इससे फ़ायदा उठाते रहे हैं।
रोज़ा क्या है, कैसे रखा जाता है और उसके अहकाम क्या हैं? इन सब बातों को लगभग आप सभी जानते हैं अलबत्ता रोज़ा सिर्फ वह नहीं है जो आमतौर से समझा जाता है यानि सिर्फ खाने पीने और रोज़े को बातिल करने वाली चीज़ों से बचने का नाम रोज़ा नहीं है, यह उसका सामने वाला रूप है और उसकी वास्तविकता कुछ और है।
रोज़ा ऐसा होना चाहिए जिसकी तरफ़ इस आयत में इशारा किया गया है यानि रोज़ा इंसान को तक़वे तक पहुंचाए और मोमिन उसे द्वारा सदाचारी बने। जैसे अनेक तरह के फलों के कुछ ख़ास फायदे और विशेषताएं होती हैं। अगर इंसान फल खाए लेकिन उसे वह फायदा न पहुंचे जो उसे पहुंचना चाहिए तो मानो उसने वह फल खाया ही नहीं ऐसे ही अगर कोई देखने में तो रोज़ा रखता है लेकिन उसकी रूह पर उसका कोई असर नहीं होता और उसके अंदर कोई तबदीली नहीं होती तो मानो उसने रोज़ा रखा ही नहीं।