तक़लीद अगरचे बाज़ मका़मात पर सही और क़ाबिले तारीफ़ है जैसे शरई मसायल में जाहिल का किसी आलिम की तक़लीद करना, लेकिन यही तक़लीद बाज़ दूसरे मवाक़े पर सही नही है जिसकी शरीयत और अक़्ल ने मज़म्मत की है मसलन जाहिल का किसी दूसरे जाहिल की तक़लीद करना या किसी आलिम का किसी दूसरे आलिम की तक़लीद करना जबकि वह ख़ुद उसके बरखिलाफ़ नतीजे पर पहुच चुका हो लिहाज़ा क़ुरआने करीम मे इरशाद होता है
(सूरह मायदा आयत 140)
तर्जुमा, और जब उनसे कहा जाता है कि ख़ुदा के नाज़िल किये अहकाम और उसके रसूल की तरफ़ आओ तो कहते हैं हमारे लिये वही काफ़ी है जिस पर हमने अपने आबा व अजदाद को पाया है चाहे उनके आबा व अजदाद न कुछ समझते हों और न किसी तरह की हिदायत रखते हों।नीज़ क़ुरआने करीम में एक दूसरी जगह पर इरशाद होता है:
(सूरह ज़ुख़रुफ़ आयत 23)
तर्जुमा, और इसी तरह हमने आपसे पहले की बस्ती में कोई पैग़म्बर नही भेजा मगर यह कि इस बस्ती के ख़ुशहाल लोगों ने यह कह दिया कि हमने अपने बाप दादा को इस तरीक़े पर पाया है और हम उनही के नक्शे क़दम की पैरवी करने वाले हैं।
नीज़ दूसरी जगह पर इसी तरह इरशाद होता है:
(सूरह अहज़ाब आयत 66-68)
तर्जुमा, जिस दिन उनके चेहरे जहन्नम की तरफ़ मोड़ दिये जायेगें और यह कहेगें कि ऐ काश हमने अल्लाह और रसूल की इताअत की होती और कहेगें कि हमने अपने सरदारों और बुज़ुर्गों की इताअत की तो उन्होने रास्ते से बहका दिया। परवरदिगार, अब उन पर दोहरा अजाब नाज़िल कर और उन पर बहुत बड़ी लानत कर।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमाया:
ऐसी उम्मत न बनो जो यह कहे कि अगर लोगों ने नेक काम किया तो हम भी करेगें और अगर लोगों ने ज़ुल्म किया तो हम भी करेंगें लिहाज़ा तुम अपने आप को तैयार कर लो कि अगर लोगों ने नेक काम किये तो तुम भी ऐसे ही नेक काम करो और अगर उन्होने बुरे काम अंजाम दिये तो तुम अँजाम न दो। (अत्त तरतीब वत्त तरग़ीब जिल्द 3 पेज 341)