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इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का जन्म दिवस

इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का जन्म दिवस

आज पवित्र नगर मदीना में इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम का घर प्रकाशवान है। पूरा मदीना नगर इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के सुपुत्र इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के आगमन से प्रकाशमय है।  इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का नाम मोहम्मद था और उनकी उपाधि बाक़िरूल उलूम अर्थात ज्ञानों को चीरने वाला है। इस उपाधि का कारण यह है कि इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने विभिन्न ज्ञानों के रहस्यों को स्पष्ट किया और उन्हें एक दूसरे से अलग किया। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की दूसरी भी उपाधियां हैं जैसे शाकिर, साबिर और हादी आदि। इमाम की हर उपाधि उनकी विशेष विशेषता की ओर संकेत करती है।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की माता का नाम फातेमा था जो इमाम हसन अलैहिस्सलाम की बेटी थीं। पैग़म्बरे इस्लाम के एक वफादार व प्रतिष्ठित अनुयाई जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी थे। एक दिन वह इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से मुलाक़ात के लिए गये। वह खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। उनका शरीर कमज़ोर हो गया था और उन्हें आंखों से कम दिखाई देता था परंतु खुशी उनके चेहरे से झलक रही थी। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को देखते ही उन्होंने कहा काबे के ईश्वर की सौगन्ध यह पैग़म्बरे इस्लाम की विशेषताएं हैं जो आपके  अंदर देख रहा हूं ईश्वर का धन्यवाद कि उसने मुझे आपको देखने का सौभाग्य प्रदान किया और पैग़म्बरे इस्लाम का सलाम आपको पहुंचाऊं। एक दिन जब मैं पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में था तो उन्होंने मुझसे फरमाया था कि हे जाबिर तुम मेरे वंश में से एक ऐसे बेटे को देखने तक जीवित रहोगे जो हुसैन की संतान में से होगा। उसका नाम मोहम्मद होगा। वह धर्म के ज्ञान को अलग अलग करेगा उसके बाद उसे बाक़िर की उपाधि दी जायेगी। जब भी उसे देखना उसे मेरा सलाम कहना।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का काल ज्ञान के विस्तार का काल था और धर्मशास्त्र तथा हदीस अर्थात पैग़म्बरे इस्लाम एवं उनके पवित्र परिजनों के कथनों के क्षेत्र में काम करने वाले महान विद्वान उस समय थे परंतु इन सबके मध्य इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का विशेष स्थान था।
चौथी हिजरी क़मरी के अंत और पांचवी हिजरी क़मरी के आरंभ के महान विद्वान शेख मुफीद लिखते हैं” पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाइयों, अनुयाइयों को देखने वालों और धर्म शास्त्रियों ने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से रवायत की है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम अतीत के पैग़म्बरों के बारे में बयान फरमाते थे और लोग उनसे पैग़म्बर इस्लाम के आचरण एवं परम्परा से अवगत होते थे। हज संस्कारों में लोग इमाम पर पूर्ण विश्वास करते थे और इमाम पवित्र कुरआन की जो व्याख्या करते थे लोग उसे लिखते थे। सुन्नी शीया उनकी बातों को लिखते और उनकी सुरक्षा करते थे और शीया सुन्नी सभी लिखने वाले इमाम को बाक़िर व बाक़िरूल उलूम की उपाधि से जानते थे। अलबत्ता जाबिर बिन अब्दुल्लाह ने रवायत की है कि पैग़म्बरे इस्लाम के एक कथन से यह उपाधि ली गयी है।
पांचवीं हिजरी शताब्दी के महान शीया विद्वान शेख तूसी इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के प्रखर व मेधावी शिष्यों की संख्या ४६६ बताते हैं। वह लिखते हैं कि हिजाज़ के शीया सुन्नी सभी लोग धार्मिक मामलों को इमाम से पूछते थे। बहुत से सुन्नी विद्वान इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के पास छात्रों की भांति ज्ञान अर्जित करते थे। हिजाज़ में इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम इतना प्रसिद्ध थे कि लोग उन्हें सैय्यदुल फोक़हा अर्थात धर्मशास्त्रियों के सरदार के नाम से जानते थे।
विभिन्न विषयों के बारे में इमाम का विशेष स्थान इस प्रकार  था कि हमेशा इस्लामी क्षेत्रों के लोगों के पूछने वालों का तांता लगा रहता था और समस्त लोग उनसे ज्ञान अर्जित करते थे। बहुत से सुन्नी विद्वान इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को ज्ञान का अथाह सागर मानते हैं। सुन्नी मुसलमानों के महान विद्वान ज़हबी  लिखते हैं” समस्त सदगुण इमाम के अंदर जमा थे और वे उत्तराधिकारी के पात्र थे। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम पवित्र कुरआन के एक बेहतरीन व्याख्याकर्ता के रूप में प्रसिद्ध थे। इमाम अपनी बात को सिद्ध करने के लिए सदैव पवित्र कुरआन की आयतों का सहारा लेते और फरमाते थे कि जो कुछ मैं कह रहा हूं मुझसे पूछो कि क़ुरआन में कहा आया है ताकि मैं उससे संबंधित आयत की तिलावत तुम्हारे लिए करूं।“
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम को पवित्र कुरआन की आयतों पर इस प्रकार दक्षता प्राप्त थी कि उनके काल के प्रसिद्ध शायर मालिक बिन आयोन ने इमाम के बारे में शेर कहा है” कि अगर लोग क़ुरआन का ज्ञान अर्जित करना चाहें तो उन्हें जान लेना चाहिये कि क़ुरैश के पास बेहतरीन जानने वाला मौजूद है और अगर इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम कुरआन के बारे में बात करेंगे तो उससे बहुत से दीप जल जायेंगे।“
समाज के निर्धन व वंचित लोगों की सहायता इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की पावन जीवन शैली का भाग था। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम लोगों की भौतिक एवं ग़ैर भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति को अपना दायित्व समझते थे। ग़रीब व निर्धन लोग इमाम के पास एकत्रित होते थे इमाम उनकी बातों को सुनते और उनकी समस्याओं का समाधान करते थे। उनके सुपुत्र इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम इस बारे में फरमाते हैं” एक दिन मैं अपने पिता के पास गया उस समय वह मदीना के ग़रीब व निर्धन लोगों के मध्य आठ हज़ार दीनार बांट रहे थे और उसी समय उन्होंने ११ दासों को स्वतंत्र किया था”
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम छुट्टी के दिनों विशेषकर शुक्रवार को ग़रीबों व दरिद्रों की सहायता के लिए विशेष करते थे। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के हवाले से एक अन्य रवायत में आया है कि आर्थिक दृष्टि से हमारे पिता की स्थिति हमारे कुल के दूसरे लोगों से अच्छी नहीं थी और उनका खर्च भी दूसरों से अधिक था इसके बावजूद वह हर शुक्रवार को निर्धनों व वंचितों की सहायता करते थे चाहे उनकी सहायता एक दीनार ही क्यों न हो और इमाम फरमाते थे कि शुक्रवार को दान देने और निर्धनों की सहायता करने का पुण्य अधिक है जिस प्रकार शुक्रवार सप्ताह के दूसरे दिनों पर श्रेष्ठता रखता है।“
ईश्वरीय धर्म इस्लाम में लोगों के साथ अच्छे व्यवहार से पेश आने को बहुत महत्व दिया गया है और उसे एक मूल्यवान नैतिक विशेषता समझा जाता है। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” मोमिन का अपने मोमिन भाई के लिए मुस्कराने का बहुत महत्व है और उसकी समस्याओं व दुःखों को दूर करना नेकी है और मोमिन के दिल को प्रसन्न करने से अधिक किसी दूसरी चीज़ पर ईश्वर की उपासना नहीं की गयी है।” इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम दूसरों को प्रसन्न करने से प्रसन्न होते थे और पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले से लोगों से फरमाते थे कि जिसने मोमिन को प्रसन्न किया उसने मुझे प्रसन्न किया यानी पैग़म्बरे इस्लाम को प्रसन्न किया और जिसने मुझे प्रसन्न किया उसने ईश्वर को प्रसन्न किया और कभी पैग़म्बरे इस्लाम अपने आस पास के लोगों को ऐसे ,,,मज़ाक के लिए प्रोत्साहित करते थे जो मोमिन की प्रसन्नता का कारण बने और लोगों से फरमाते थे निःसंदेह ईश्वर उस व्यक्ति को पसंद करता है जो लोगों के मध्य मज़ाक करता है बशर्ते कि उसके मज़ाक में अशोभनीय बातें न हों”
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं।“ हमारे पिता यानी इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम सदैव ईश्वर का गुणगान करते थे, खाना खाने के समय ईश्वर का गुणगान करते थे और जब लोगों से बात करते थे तब भी ईश्वर की याद से निश्चेत नहीं रहते थे और ला इलाहा इल्लल्लाह का वाक्य सदैव उनकी ज़बान पर होता था। सुबह वे सूरज निकलने तक हम सब को ईश्वर की उपासना के लिए कहते थे। परिवार के जो सदस्य कुरआन की तिलावत कर सकते थे उनसे कुरआन की तिलावत करने के लिए कहते थे और शेष लोगों से ईश्वर का गुणगान करने के लिए कहते थे। एक सुन्नी विद्वान मोहम्मद बिन मुन्कदिर इमाम सादिक़ के हवाले से कहते हैं” मुझे विश्वास नहीं था कि अली बिन हुसैन ऐसे एसे,,, बेटे को छोड़कर जायेंगे जो नैतिक विशेषताओं व सदगुणों में उनके जैसा होगा यहां तक कि मैंने उनके बेटे मोहम्मद बिन अली को देखा। जब हवा बहुत गर्म थी तो मैं मदीने की ओर गया। रास्ते में मुझे मोहम्मद बिन अली मिल गये। वह बहुत शक्तिशाली व्यक्ति थे। मैंने देखा कि वह खेत में काम कर रहे हैं। मैंने सोचा कि क़ुरैश के प्रतिष्ठित लोगों में एक व्यक्ति दुनिया के माल के लिए इस प्रकार का कार्य कर रहा है और मैं अभी उसे नसीहत करता हूं। इसी विचार के साथ मैं उनके पास गया और कहा ईश्वर आपकी समस्या दूर करे। क़ुरैश का प्रतिष्ठित व्यक्ति दुनिया का माल संचित करने के लिए घर से बाहर आकर इस प्रकार की धूप में काम कर रहा है! अगर इस हालत में आपको मौत आ जाये तो क्या होगा? उस समय इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने फरमाया ईश्वर की सौगन्ध! अगर इस हालत में मुझे मौत आ जाये तो मैं ईश्वर की उपासना की हालत में मरूंगा। क्योंकि मैं इस गर्मी में कार्य कर रहा हूं ताकि मैं लोगों और तुझ जैसे के सामने हाथ न फैलाऊं। हां मैं एक हालत से डरता हूं और वह यह है कि ईश्वर की अवज्ञा व पाप करते समय मुझे मौत न आ जाये। उस समय मैंने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम से कहा ईश्वर आप पर दया करे मैं आपको नसीहत करना चाहता था परंतु आप ने तुझ ही नसीहत कर दी।

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