पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम अली रज़ा अलैहिस्सलाम का रौज़ा ईरान के पवित्र नगर मशहद में स्थित है जहां पूरे साल श्रद्धालुओं का तांता बंधा रहता है।
ज़ियारत के लिए शीया सुन्नी और ग़ैर मुस्लिम सब जाते हैं। इस वीडियो में सुन्नी श्रद्धालु ज़ियारत के लिए जा रहे हैं और अपनी भावनाओं के बारे में बता रहे हैं।
एक श्रद्धालु का कहना है कि सुन्नी मुसलमान अपनी नमाज़ों में यह दुआ पढ़ते हैं अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद कमा सल्लैता अला इब्राहीम, इन्नका हमीदुन मजीद, अल्लाहुम्मा बारिक अला मुहम्मद व आले मुहम्मद कमा बारक्ता अला आले इब्राहीम इन्नका हमीदुन मजीद। यदि हम यह दुआ नमाज़ में न पढ़ें तो हमारी नमाज़ पूरी नहीं हो सकती। पैग़म्बरे ख़ुदा के परिजनों की मुहम्मद हम मुसलमानों विशेष रूप से सुन्नी मुसलमानों के हर व्यक्ति के दिल में है।
इसी वीडियो के दूसरे भाग में एक अन्य सुन्नी श्रद्धालु कहते हैं कि मुसलमान का कर्तव्य है ज्ञान हा जागरूक होना, समय को पहचानना। उसे पता होना चाहिए कि इस समय दुशमन क्या चाहता है और कौन सी चाल चल रहा है, दुशमन की चाल और हमले को नाकाम बनाना चाहिए। हम यह मानते हैं कि ईश्वर हमारी मदद कर रहा है। मुसलमान वह है जो अल्लाह के नाम पर डटा रहता है और उसे विश्वास होता है कि यदि नास्तिक भरपूर तरीक़े से हथियारबंद हों, उनके पास सारी तकनीकें हों और दुनिया के सारे संसाधन हों जबकि मुसलमान के पास केवल ईमान की शक्ति हो और शहादत का जज़्बा हो तथा इस्लामी क्रान्ति के सुप्रीम लीडर के निर्देश का पालन करे तो वह दुशमन और उसकी धमकियों से कभी नहीं डरेगा।
श्रद्धालु का कहना है कि हम अपनी एकता व एकजुटता का एलान करते हैं और दुशमन का निराश करते हुए हम अपनी एकता की रक्षा करेंगे और इसे हमेशा बनाए रखेंगे।