लेखक: आयतुल्लाह हुसैन अनसारियान
किताब का नाम: शरहे दुआए कुमैल
मनुष्य का परमेशवर से बात करना, प्राणी के निर्माता और आदमी के बीच का रिश्ता प्रार्थना कहलाता है। महान मनीषियों ने प्रार्थना को व्यवहारिक उपाधि मे एकता (तौहीद) बताया है, इसलिए अनबियाए एज़ाम एवम अहलेबैत अलैहेमुस्सलाम एकता (तौहीद) का बहुत ज़्यादा महत्व बयान करते थे।
वारिद शुदा प्रार्थनाओ मे प्रार्थनाए कुमैल (दुआए कुमैल) के उच्च और इरफ़ानी मज़मून होने के कारण इसको - इनसानुल अदईया- कहा जाता है।
प्रार्थनाए कुमैल (दुआए कुमैल) आने वाली रिवायात के आधार पर, इल्मे नबूवत जैसे हज़रत ख़िज़्र पैग़म्बर (अ.स.) और इल्मे इमामत जैसे अमीरूल मोमेनीन (अ.स.) एवम अहलेबैते इसमतो तहारत अलैहेमुस्सलाम ने भी विशेष रूप से इस प्रार्थना की ओर ध्यान दिया है। प्रार्थनाए कुमैल (दुआए कुमैल) के चशमये जोशान व जावोदान से ऐतेक़ादी, अख़लाक़ी और इरफ़ानी जैसे उच्च मुद्दो को बयान किया जा सकता है।
इस प्रार्थना मे प्रस्तुत तथ्यों (बयान शुदा हक़ाइक़) को समझने के लिए विभिन्न वर्णनो (मुख़तलिफ शरहो) के बावजूद - प्रार्थना का अक्सर संक्षिप्त और विशिष्ट या फिर क़दीम तालीफ के जो मातृभाषा नही है उसमे वर्णन किया गया है - मातृभाषा मे वर्णन होना आवशयक है। वर्णन और स्पष्टीकरण की सहायता के बगैर हम इस प्रार्थना मे पोशीदा मआरिफ़ तक नही पहुँच सकते है।
अल्लामा मोहक़्क़िक़ हज़रत उस्ताद हुसैन अंसारीयान (मद्दा ज़िल्लाहुल आली) ने इस्लामी प्रामाणिक स्रोतों को ध्यान में रखते हुए और बचपन से गहरे लगाव के कारण हमेशा इस प्रार्थना को विशेष ध्यान से पढ़ा, और लोगो के बीच इसे जिंदा रखने एवम स्थापित करने के लिए समर्पण किया, और इस प्रार्थना का क़ुरआनी, रवाई एवम इरफ़ानी आधार पर व्यापक, मुसतनद और इलमी वर्णन किया है।
लेखक की आध्यात्मिक और भावनात्मक बंधन के साथ इस प्रार्थना का वर्णन मानवी नुक़ात से भरा हुआ है।
क़ाबिले तवज्जो है कि प्रारम्भ मे यह वर्णन एक भाग मे प्रकाशित हुआ था, पहले संक्षिप्त विवरण मे शोध एवम दक़ीक़ मतालिब का इज़ाफ़ा करने के पश्चात तीन भागो मे प्रकाशित हुआ है।
नये संग्रह में मुख्य परिवर्तन इस प्रकार है।
· प्रार्थना के विभिन्न भागों का वर्णन।
· संपादन और नए पाठ का अनुसंधान।
· छंद एवम रिवायात की दुबारा जाचपड़ताल और उसका संसाधन व निष्कर्षण।
· पूर्व तकनीकी सूची मे विषयगत सूची का इज़ाफा।
· प्रिय पाठकों के बेहतर उपयोग के लिए प्रार्थना के विभिन्न खंडो को 30 खंड मे विभाजित किया गया है।
अंत में हम उन सभी के जिनहोने इस प्रभाव मे हमारी सहायता की है - विशोष रूप से आदरणीय विद्वान हुज्जातुल इसलाम मुहम्मद जवाद साबिरयान, और उनके साथी शोधकर्ताओ हुजा जे इसलाम सैय्यद अली ग़ज़नफ़री एवम अली असग़र ज़हीरी और हुज्जातुल इसलाम वल मुसलेमीन मरदानीपुर ने इस असर पर नज़रे सानी की ज़हमत की - उनके आभारी है।
आशा है कि यह काम विद्वानो के लिए ईश्वरीय खजाने मे प्रवेश करने का मार्ग, साहेबाने हाल के लिए फलदार वृक्ष, और हमारे लिए ज़ख़ीरए आख़रत हो।
वाहिदे तहक़ीक़ते दारुल इरफ़ान
जारी