"सलाम अली आग़ा ! बाबा की जान सलाम, सलाम मेरे बेटे, मै तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ: अली जान ! मेरा बहुत दिल चाहता है कि इस राह में सुर्ख़रू (कामयाब) हो जाऊँ, इस राह मे शहीद हो जाऊँ। मेरा बहुत दिल चाहता है कि एक बार इमामे ज़माना (अ) के ज़ुहूर से पहले शहीद हो जाऊँ और एक बार ज़ुहूर के बाद शहीद हो जाऊँ, मेरे ख़्याल से यह अक़्ल मन्दी है कि दो बार इस्लाम की राह में शहादत नसीब हो जाये। इंशा अल्लाह कि मेरी यह आरज़ू पूरी हो जाये, लेकिन फिर भी मै ख़ुदा की रज़ा पर राज़ी हूँ, अगर मेरी आरज़ू पूरी हो गयी तो अलहम्दु लिल्लाह और अगर मेरी आरज़ू पूरी न हुई तो शायद मैं इसके लाएक़ ही नही था। अली जान ! समाज में हर दिन मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं, गुनाह दिन प्रतिदिन ज़्यादा होते जा रहे है, इस ज़माने में अच्छा बाक़ी रहना हर दौर से ज़्यादा मुश्किल है, जैसे जैसे इमामे ज़माना (अ) के ज़ुहूर से हम नज़दीक हो रहे हैं वैसे वैसे फ़ित्ने बढ़ रहे हैं, गुनाह ज़्यादा होंगे, ख़ताएँ ज़्यादा होंगी, शैतान और ताक़तवर होगा, तुम भी अपना बहुत ख़्याल रखना, न सिर्फ़ यह कि अपना ख़्याल रखना बल्कि अपनी माँ का भी ख़्याल रखना, अपने आस पास वालों का भी ख़्याल रखना।
*मैने तुम्हारा नाम इस लिये अली रखा है ताकि हमारे इमाम मौला अली (अ.) हैं। तुम्हारे पेशवा (रहबर) अली (अ) हों, तुम्हारे आइडियल अली (अ.) हों, अमीरुल मोमेनीन को अपना आइडियल बनाना, ऐसे अली पसन्द ज़िन्दगी गुज़ारना कि इमामे ज़माना (अ) के एक सिपाही बन सको । लिहाज़ा अभी से अपने ऊपर काम करना शुरु कर दो, अपनी पढ़ाई पर, अपने काम काज पर, अपनी ज़िन्दगी के चुनाव (सेलेक्शन) पर, अपने तौर तरीक़े पर, अपने दोस्तों के सेलेक्शन पर, अपने लिये जो फ्यूचर तुमने सोचा हो उस पर, कुल मिलाकर अपना बहुत ख़्याल रखना।
अली आग़ा! मै हमेशा तुम्हे याद करता रहता हूँ , हमेशा तुम्हारे साथ रहूंगा, अगर शहीद हो गया तो हमेशा ज़िन्दगी के हर मोड़ और हर क़दम पर तुम्हारे पास आता रहूंगा, मैं तुम्हे बाप के साये की कमी का एहसास नही होने दूंगा, और अगर मैं शहीद न हुआ तो मैं वापस आऊंगा और तुम्हारे साथ रहूंगा यहाँ तक कि तुम बड़े हो जाओ। मैने यह बातें इस लिये कही हैं कि जब कभी तुम्हारी आंखें खुलेंगी और बड़े होना तो अपने बाबा की आवाज़ सुन लेना, मै तुम्हे बहुत चाहता हूँ और तुम्हारी माँ से भी बहुत मुहब्बत करता हूँ, अपना ख़्याल रखना।
*कभी कभी कुछ चीज़ों से दिल लगी छोड़ने से कुछ बेहतर चीज़ें हाथ आती हैं, मैने भी तुम्हें और तुम्हारी माँ से लगाव छोड़ा है ताकि हज़रत ज़ैनब (स.अ) का नौकर बन सकूँ, मेरी आरज़ू यह है कि ख़ुदा इस सफ़र में मुझ पर अपनी नज़रे करम कर दे।
*अपना ख़्याल रखना और कोशिश करना कि ऐसी ज़िन्दगी गुज़ारो कि ख़ुदा तुम्हारा आशिक़ हो जाये क्योंकि अगर वह तुम्हारा आशिक़ हो गया तो तुम्हे बहुत अच्छे दाम में ख़रीद लेगा।
* अपना ख़याल रखना और दुआ करना कि मै भी सुर्ख़रू (कामयाब) हो जाऊँ। ख़ुदा हाफ़िज़।