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इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम

 इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम

पैग़म्बर और ईश्वरीय मार्गदर्शक, सर्वसमर्थ व महान ईश्वर की असीम कृपा के प्रतीक और विश्व में उसकी दया एवं मार्गदर्शन के स्रोत हैं। वे इतिहास के अंधेरे में प्रज्वलित दीप की भांति चमके और उन्होंने वातावरण को प्रकाशमयी किया ताकि मनुष्य अज्ञानता के अंधेरे से निकल कर सच्चाई का मार्ग देख सके। अभी भी इन ईश्वरीय दूतों के मार्गदर्शन का प्रकाश सच्चाई की खोज में रहने वाले हृदयों को उज्जवल बनाए हुए है। आज इन महापुरुषों में से एक की शहादत का दुःखद दिन है। आज ही के दिन १८३ हिजरी क़मरी में इस्लामी जगत, पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के एक पौत्र की शहादत के शोक में डूब गया। उन्होंने अपने पूरे जीवन में धैर्य के साथ अप्रिय घटनाओं व समस्याओं का मुक़ाबला किया। वे काज़िम अर्थात क्रोध को पी जाने वाले की उपाधि से प्रसिद्ध थे। हम न्याय एवं स्वतंत्रता प्रेमी अपने समस्त श्रोताओं की सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करते हैं और पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजनों पर सलाम भेजते हैं और हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के पावन जीवन के एक भाग पर दृष्टि डाल रहे हैं। 

हज़रत इमाम क़ाज़िम अलैहिस्सलाम का जन्म १२८ हिजरी क़मरी में पवित्र नगर मदीना के निकट अबवा क्षेत्र में हुआ था। उन्होंने अपने पिता हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद ३५ वर्षों तक लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। हज़रत इमाम मूसा क़ाज़िम अलैहिस्सलाम का जीवनकाल अत्याचारी अब्बासी शासन श्रंखला की सत्ता का पहला चरण था। हज़रत इमाम मूसा क़ाज़िम अलैहिस्सलाम ने बहुत कठिन परिस्थितियां सहन कीं और कई वर्ष, अब्बासी शासकों की जेलों में बिताए। इस प्रकार से कि आपने अपनी आयु के अंतिम चार वर्षों का समय अब्बासी शासक हारून की जेल में बिताया। अब्बासी शासक भलिभांति जानते थे कि इस्लामी शासन की जो बाग़डोर उनके हाथ में है वह ऐसा अधिकार है जिसके वास्तविक स्वामी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजन ही हैं और यह अधिकार अवैध तरीक़े से उनसे ले लिया गया है। अब्बासी शासक सत्ता हेतु पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पवित्र परिजनों की योग्यताओं एवं उनके अधिकारों को जानते थे और कभी-कभार वे इस बात को स्वीकार भी करते थे परंतु धन-सम्पत्ति एवं सत्ता की अनदेखी कर देना उनके लिए सरल कार्य नहीं था क्योंकि वे मायामोह में ग्रस्त थे। यहांतक कि वे हज़रत इमाम मूसा क़ाज़िम अलैहिस्सलाम जैसे महान ईश्वरीय दूत को वर्षों तक जेल में रखने और उनके प्रभाव के भय से अंत में उन्हें शहीद करने के लिए तैयार हो गये। जो चीज़ हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शहादत का कारण बनी वह उनके द्वारा अत्याचारी शासकों का विरोध और समाज के स्तर पर न्याय लागू किये जाने पर बल दिया जाना था।

अब्बासी शासकों के सत्ताकाल में सामाजिक और आर्थिक मामलों से लेकर राजनीतिक एवं सांस्कृतिक मामलों में अत्याचार व अन्याय को भलिभांति देखा जा सकता है। उस समय सरकार की अत्याधिक धन-सम्पत्ति का वितरण जनता के मध्य न्यायपूर्ण ढंग से नहीं हो रहा था जबकि वह धन-सम्पत्ति जनता से संबंधित थी और राजकोष का खर्च दरबार के समारोहों एवं अब्बासी शासकों के ऐश्वर्य पर हो रहा था। बुरी आर्थिक स्थिति और उसपर सरकार द्वारा ध्यान न दिये जाने का अवांछित सामाजिक और सांस्कृतिक परिणाम निकला। इनमें से एक झूठ एवं अनोत्पादक रोज़गार एवं अवैध तरीक़े से धन कमाना था। दूसरी ओर कुछ लोग, जो आजीविका कमाने एवं वांछित जीवन से निराश हो गये थे, सन्यास और सूफ़ी विचारधारा की ओर जाने लगे। इसी कारण इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने इस संबंध में मार्गदर्शन किया ताकि लोगों के लिए आर्थिक क्षेत्र में धार्मिक सिद्धांत व शिक्षाएं स्पष्ट हो जाएं। इस आधार पर हम देखते हैं कि इस्लाम में इमाम व धार्मिक नेता के मार्गदर्शन का दायरा उपासना एवं परलोक के कार्यों तक सीमित नहीं है। इसका कारण यह है कि ईश्वरीय धर्म इस्लाम एक व्यापक धर्म है और वह लोक-परलोक की भलाई व कल्याण को एकसाथ दृष्टि में रखता है।

इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम का महत्वपूर्ण आर्थिक मार्गदर्शन उन लोगों को परामर्श देने के परिप्रेक्ष्य में था जिन्हें वैचारिक सहायता की आवश्यकता थी। कुछ अवसरों पर आप आर्थिक मामलों में ग़लती करने पर लोगों को टोकते भी थे। अब हम इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के आर्थिक दृष्टिकोणों पर संक्षेप में दृष्टि डाल रहे हैं। 

आर्थिक मामले में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के मार्गदर्शन का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत, खर्च करने में संतुलन और मध्य मार्ग का ध्यान रखना तथा अपव्यय से दूरी है। इमाम मूसा क़ाज़िम अलैहिस्सलाम इस संबंध में कहते हैं, "जो भी मध्य मार्ग और संतुलन को ध्यान में रखे तथा संतुष्ट रहे उस पर अनुकंपाए बाक़ी रहेंगी और जो अपव्यय करेगा अनुकंपा उसके हाथ से चली जायेगी"

इमाम मूसा क़ाज़िम अलैहिस्सलाम के अनुसार ईश्वरीय अनुकंपाओं से लाभान्वित होने की वांछित सीमा यह है कि वह मध्यमार्ग बीच एवं आवश्यकता की सीमा तक रहे। यह बात मनुष्य के पास सदैव अनुकंपा के रहने की कुंजी है। इमाम कभी भी अकारण हलाल व वैध अनुकंपा से स्वयं को वंचित नहीं करते थे और उन लोगों का विरोध करते थे जो परलोक की भलाई व कल्याण के लिए दुनिया को त्याग देते थे। इसी कारण आप एक स्थान पर कहते हैं, "वह हमसे नहीं है जो लोक के लिए परलोक को और परलोक के लिए लोक को छोड़ दे"

आप उन लोगों पर आपत्ति करते थे जो विदित में त्यागी का रूप धारण करके अपने उपर ईश्वर द्वारा हलाल व वैध चीज़ों को भी हराम कर लेते थे। अलबत्ता इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम जिस तरह सन्यास व सूफीवाद से दूरी करते थे उसी तरह ऐश्वर्य व भोग-विलास भरे जीवन से भी रोकते थे। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम कठिनाइयों और भारी सामाजिक एवं राजनीतिक ज़िम्मेदारियां होने के बावजूद आर्थिक क्षेत्रों में परिश्रम करते थे। अलबत्ता पैग़म्बरों एवं ईश्वरीय दूतों का आचरण यही रहा है कि वे अपने जीवन के बोझ को स्वयं उठाएं। हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम भी अपने जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं थे और आजीविका कमाने के लिए अपने खेतों में काम करते थे। यह बात लोक-परलोक से उसके समुचित संबंध के प्रति इमाम के दृष्टिकोण की सूचक है और इससे उन ग़लत विचारों पर पानी फिर गया जो आत्मिक परिपूर्णता की दिशा में काम करने के विरोधी थे। आप अपने एक अनुयाई से कहते हैं, "जो व्यक्ति वैध व हलाल आजीविका कमाने के लिए प्रयास करे ताकि स्वयं और अपने परिवार की आवश्यकता की पूर्ति कर सके तो वह ईश्वर के मार्ग में जेहाद अर्थात धर्मयुद्ध करने वाले के समान है"

हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम इसके अतिरिक्त कि स्वयं आर्थिक गतिविधियों एवं कृषि उत्पादों में अग्रणी थे, कृषि उत्पादकों एवं किसानों का समर्थन करते थे। पीड़ित व क्षतिग्रस्त तथा दिवालिया हो जाने वाले व्यक्तियों को इमाम की अत्यधिक सहायता, उनके समर्थन का उदाहरण है। एक दिन इमाम ने एक किसान की सहायता करने में, जिसकी खेती नष्ट हो गयी थी, उसे मुख्य पूंजी देने के अतिरिक्त खेती से होने वाले संभावित लाभ को भी उसे ही प्रदान कर दिया। साथ ही आपने अपने आध्यात्मिक समर्थन के साथ उसके कार्य में विभूति के लिए दुआ भी की।

इमाम के आचरण में जिस चीज़ पर सबसे अधिक बल दिया गया है वह कार्य व उत्पाद के संसाधनों का सही होना है। इमाम हर प्रकार की आर्थिक प्रगति व विकास का समर्थन नहीं करते थे। आप आर्थिक गतिविधियों को धार्मिक नियम बताते हैं। आप दाऊद नाम के अपने एक अनुयाई से कहते हैं, "हे दाऊद, हराम में प्रगति व विकास नहीं है और यदि वह विकास करता है तो उसमें विभूति व बरकत नहीं होती है और उसमें से जो भी ख़र्च किया जाए उसका कोई बदला नहीं है और उसमें से जो बाक़ी रह जाये वह मनुष्य का नरक में जाने का साधन है। 

हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम आर्थिक गतिविधियों के वैध होने पर बहुत बल देते थे यहां तक कि वे अपने अनुयाइयों को अत्याचारी अब्बासी शासकों की सरकार के साथ आर्थिक सहकारिता से रोकते थे। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के पावन जीवन एवं सदाचरण में आर्थिक भ्रष्टाचार से संघर्ष को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्लाम ने राजकोष को अपने ऐश्वर्य के लिए प्रयोग करने के कारण माया के पुजारी, अत्याचारी अब्बासी शासकों की आलोचना की और इसपर आपत्ति जताई। इसी प्रकार इमाम अलैहिस्सलाम अपने अनुयाइयों को लेन-देन में लोगों के साथ धोखा-धड़ी करने से मना करते थे। इमाम के एक अनुयाई हेशाम बिन हेकम कहते हैं, एक दिन मैं ब्रिकी के कार्य में व्यस्त था कि धीरे-२ शाम होने लगी और अंधेरा छाने लगा। इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्लाम मेरे पास से गुज़रे और उन्होंने मुझे बेचने की स्थिति में देखा। आप ने थोड़ा सोचा, फिर मेरे निकट आये और बोले, "हे हेशाम कम प्रकाश में बिक्री व लेन-देन न करो कि यह धोखा-धड़ी का कारण बनती है और यह बात हराम है"

कुल मिलाकर आर्थिक क्षेत्रों में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के मार्गदर्शनों को दृष्टि में रखकर हम यह समझते हैं कि इस्लाम में कार्य और उत्पाद का उद्देश्य केवल अधिक से अधिक भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं है। मनुष्य को चाहिये कि ईश्वरीय धर्म इस्लाम की शिक्षाओं के परिप्रेक्ष्य में सांसारिक वस्तुओं से वांछित सीमा तक लाभ उठाने के साथ ही साथ अंतिम लक्ष्य अर्थात ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने और आत्मिक व आध्यात्मिक परिपूर्णता को दृष्टि में रखे तथा आर्थिक गतिविधियों में मानवीय एवं शिष्टाचारिक सिद्धांतों का ध्यान रखे। 

प्रिय पाठकों, आप सबकी सेवा में एक बार फिर हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करते हैं। अंत में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम पर इस प्रकार सलाम भेजते हैं, "हे मेरे स्वामी मूसा काज़िम, आप पर सलाम हो और आप पर ईश्वर की दया व कृपा हो।

 


source : http://abna.ir
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