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Friday 27th of December 2024
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हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा

हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा

मक्का नगर पर चांदनी बिखरी थी और पूरे नगर पर मौन छाया था किंतु एसा लग रहा था जैसे महान ईश्वरीय दूत हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम के लिए समय की गति भिन्न थी। उन्हें एक चांद सी पुत्री की प्रतीक्षा थी जिसकी सूचना उन्हें उनके ईश्वर ने दी थी। प्रतीक्षा की घड़ियां धीरे धीरे समाप्त हो रही थीं। पैग़म्बरे इस्लाम की पत्नी हज़रत खदीजा अकेले ही अपनी पुत्री की प्रतीक्षा की पीड़ा सहन कर रही थीं। अरब की महिलाओं ने उनका बहिष्कार कर रखा था किंतु ईश्वर जिसके साथ हो उसे मनुष्यों के बहिष्कार से क्या हानि होने वाली है। अचानक पूरा घर प्रकाश से भर गया। घरे की खिड़कियों से प्रकाश मक्का की गलियों में फैल गया पूरा नगर प्रकाश में डूब गया। पैग़म्बरे इस्लाम के घर में फ़ातेमा का जन्म हो चुका था। बीस जमादिस्सानी पैगम्बरे इस्लाम की अत्यन्त प्रिय पुत्री का जन्म दिन है। उन्हें कई नामों से जाना जाता है जिनके अपने अलग अलग अर्थ हैं किंतु उनका सब से पहला और प्रसिद्ध नाम फ़ातेमा है। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम इस संदर्भ में कहते हैं कि फ़ातेमा के ईश्वर के निकट उच्च व चयनित नाम हैं जिनमें से फातेमा भी है। फातेमा का अर्थ बुराईयों से दूर की गयी होता है। इमाम जाफरे सादिक अलैहिस्सलाम ने इस प्रश्न के उत्तर में कि हज़रत फ़ातेमा को ज़हरा क्यों कहा गया, फरमाया कि उनका नाम ज़हरा इस लिए रखा गया क्योंकि वे जब उपासना के लिए खड़ी होतीं तो उनके अस्तित्व के तेज से आकाश भी प्रकाशमय हो जाते ठीक उसी प्रकार जैसे सितारे, धरती को प्रकाशमय बना देते हैं। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा का जन्म एक एसे समाज में हुआ था जहां एक मूल्यवान व्यवस्था के गठन के लिए आवश्यक तत्वों का अभाव था। इतिहासकार इस्लाम से पूर्व के अरब जगत को एसा समाज बताते हैं जहां मानवीय मूल्यों का चिन्ह नहीं था और पूरी व्यवस्था अंधविश्वासों और धारणाओं पर टिकी थी। दूसरे की हत्या करके जीवित रहना , एक दूसरे के सामने गर्व करना और बेटी को जन्म के साथ ही जीवित गाड़ देना समाजिक मान्यताओं के रूप में प्रचलित था और इस क्षेत्र के वासियों की परंपरा बन चुका था। एसे वातावरण में हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा महिलाओं और बेटियों के अपमान की परंपरा तोड़ने हेतु पैग़म्बरे इस्लाम की सहायक बनीं। एसे युग में जब बेटियों को जीवित गाड़ दिया जाता था, पैग़म्बरे इस्लाम अपनी इस बेटी के हाथ चूमते नहीं थकते थे और हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा से पैग़म्बरे इस्लाम का यह असीम प्रेम केवल पितृत्व के कारण ही नहीं था बल्कि पैग़म्बरे इस्लाम के महान अभियान का एक भाग भी था और इस प्रकार से वे महिलाओं के बारे में इस्लाम की विचारधारा का प्रदर्शन करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम जब भी अवसर मिलता अपनी बेटी हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा का अपने साथियों और अनुयाइयों से परिचय कराते रहते। इस संदर्भ में साद बिन वेक़ास का कहना है कि मैंने पैग़म्बरे इस्लाम को यह कहते सुना है कि फ़ातेमा मेरे अस्तित्व का भाग है। जो उसे प्रसन्न करता है वह मुझे प्रसन्न करता है और जो उसके साथ दुर्व्यवहार करता है वह मुझे दुखी करता है फातेमा मेरे लिए सर्वाधिक प्रिय है। हज़रत फ़ातेमा का पालन पोषण ईश्वरीय संदेशों की गूंज में हुआ और जीवन के अनगिनत अर्थों को उन्होंने अपने पिता से सीखा और इसी वातावरण में वे पली बढ़ीं। बड़े होकर भी उन्होंने अत्यन्त दूरदर्शिता के साथ घर गृहस्थी और समाजिक कर्तव्यों में तालमेल बिठाया। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा इस्लामी समाज के राजनीतिक विषयों व समाजिक मुद्दों से अचेत नहीं रहीं और सदा सत्य के मोर्चे को सहयोग दिया यहां तक कि वे विभिन्न समाजिक विषयों में अपने पति हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सलाहकार थीं। वे कठिन युद्धों में अपने पिता का साथ देतीं और दासों को स्वतंत्र कराना उनके निकट प्रिय व मूल्यवान काम था। यही कारण है कि एक दिन उन्होंने अपना वह हार जिसे हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने खरीद कर उन्हें दिया था, बेच दिया और उससे प्राप्त होने वाली रक़म से एक दास को स्वतंत्र करा दिया। इस घटना का जब उनके पिता को पता चला तो वे बहुत प्रसन्न हुई और अपनी पुत्री की सराहना की । जब पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने अभियान की घोषणा की तो उस समय उनके जीवन की रक्षा और उनकी सहायता, उन लोगों का सब सब बड़ा कर्तव्य था जिन्हें पैग़म्बरे इस्लाम की सत्यता पर विश्वास था और जिन लोगों ने उनका निमंत्रण स्वीकार किया था। पैगम्बरे इस्लाम ने अपने अभियान की घोषणा से लेकर, मक्के से पलायन तक की अवधि में अत्याधित कठिनाइयां और दुख सहन किये। क़ुरैश के सरदार, यहां तक कि पैग़म्बरे इस्लाम के कुछ चचा भी पैग़म्बरे इस्लाम को यातना देने पर लोगों को प्रोत्साहित करते थे और स्वंय भी परोक्ष अपरोक्ष रूप से उन्हें सताने में संकोच नहीं करते थे। यह उस समय की बात है जब हज़रत फातेमा बचपन के चरण में थीं। कभी शत्रु पैग़म्बरे इस्लाम के सिर पर राख फेंक देते और जब वे अपने घर आते तो हज़रत फातेमा आंसू भरी आंखों के साथ उनका सिर और मुख साफ करती किंतु इस समय भी पैग़म्बरे इस्लाम उन्हें संघर्ष जारी रखने और संयम का पाठ देते और कहते बेटी! दुखी मत हो और आंसू मत बहाओ क्योंकि ईश्वर तुम्हारे पिता का रक्षक है। पैग़म्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा ने सत्य और इस्लामी समाज के नेतृत्य में आने वाले भटकाव के विरुद्ध संघर्ष को अपना कर्तव्य समझा। कभी कभी वे रातों में अपने पति के साथ पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाइयों के घर जातीं और उन्हें यह याद दिलातीं कि उनके पिता ने अपना उत्तराधिकारी हज़रत अली को बनाया है और उन्हें सत्य का साथ देने पर प्रेरित करतीं। उनकी अल्पायु की एक अन्य विशेषता समाजिक स्तर पर सत्य का साथ देना और सत्य बोलना रही है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई इस संदर्भ में कहते हैं हज़रत फातेमा का जीवन यद्यपि छोटा रहा और बीस वर्ष से अधिक जारी नहीं रह सका किंतु यह जीवन, संघर्ष, क्रांतीकारी कामों संयम, पाठ व शिक्षा, भाषण और ईश्वरीय दूत से सहयोग, नेतृत्व व इस्लामी व्यवस्था की दृष्टि से प्रयास व परिश्रम का एक अथाह सागर है और जिसका अन्त शहादत पर होता है। यह संघर्षों से भरा हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा का जीवन है जो अत्याधिक असाधारण और अभूतपूर्व है और निश्चित रूप से मानव मानस पटल पर एक चमकता बिन्दु है। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा महिलाओं की श्रेष्ठता को, पुरुषों के साथ विनाशकारी व अंधी प्रतिस्पर्धा में नहीं बल्कि उन कर्तव्यों के पालन में समझती थीं जो महिलाओं के हवाले किये गये हैं और जिन्हें करना पुरुषों के बस की बात नहीं है। इसी लिए वे वे पत्नी और माता के रूप में असाधारण रूप से सक्रिय रहीं और अपने घर परिवार को सदा ही प्रेम व स्नेह से सुगंधित रखा। उन्होंने अपने घर परिवार को एक पाठशाला बना दिया। उनके छोटे से घर से बड़े बड़े और महान लोग समाज में आए। इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के घर और उसके वासियों के बारे में इस प्रकार कहते हैं ः हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के छोटे से घर में जिन लोगों का पालन पोषण हुआ वे संख्या की दृष्टि से चार या पांच लोग थे किंतु वास्तव में उन्होंने ईश्वर की सम्पूर्ण शक्ति का प्रदर्शन किया और एसे सेवा की कि हम और आप और पूरी मानव जाति आश्चर्य चकित है। ईश्वर का सलाम हो उस छोटे और साधारण से घर पर जो ईश्वरीय महानता का प्रदर्शन है। एक छोटे और साधारण से घर में एक महिला ने एसे लोगों का पालन पोषण किया जिनके अस्तित्व के तेज से धरती और आकाश ही नहीं पूरा ब्रहमांड प्रकाशमय हो गया। निसंदेह हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा के बारे में सब से अच्छा कथन, ब्रहमांड के रचयता के हैं। क़ुरआने मजीद ने हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा को कौसर कह कर पुकारा है जिसका अर्थ होता है अत्याधिक भलाई। जिस वस्तु ने हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा को आदर्श बनाया है वह मानवता के सभी भले आयामों में उनका सम्पूर्ण होना है। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैहा का महत्व और प्रभाव उनकी आध्यात्मिकता, विशेषताओं और ईश्वरीव गुणों से सुसज्जित होने के कारण है और इन्हीं विशेषताओं ने उन्हें महान आदर्श बना दिया। हज़रत फ़ातेमा की जन्मतिथि ईरान में माता व महिला दिवस के रूप में मनायी जाती है मानव इतिहास की इस महान आदर्श महिला के जन्म तिथि की एक बार फिर बधाई। उनके एक कथन से कार्यक्रम समाप्त करते हैं। हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह अलैही कहती हैं। ईश्वर ने अपने माता पिता से अच्छे व्यवहार को अपने प्रकोप से बचाव का साधन बनाया है ताकि हम अपने इस कर्तव्य का पालन करके ईश्वरीय प्रकोप के पात्र बनने से बचें रहें।


source : irib.ir
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