पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
हे कुमैल, कठिनाई के समय (ला हौला वला क़ुव्वता इल्ला बिल्लाह) कहो कि परमेश्वर इसके द्धारा तुम्हे बचाता है। अशीष प्राप्ति के समय (अलहम्दो लिल्लाह) कहो कि इसके द्धारा परमेश्वर अशीषो को अधिक करता है। यदि तुम्हे रोज़ी विलम्ब से प्राप्त हो तो पश्चताप करो, परमेश्वर तुम्हारे कार्यो को फैलाता है।
हे कुमैल, आस्था (विश्वास) दो प्रकार का होता हैः (मुसतक़र एंव मुस्तोदआ) अर्थात स्थिर एंव अस्थिर, अस्थिर विश्वास से बचो, यदी तुम आस्था के हक़दार होने के इच्छुक हो तो स्थिर आस्था रखो, जिस समय तुम स्थिर आस्था रखने मे सफल होगे तो इसका परिणाम यह होगा कि ग़लत मार्ग पर नही जाओगे।
हे कुमैल, किसी भी व्यक्ति को वाजिब[1] (अनिवार्य) के छोड़ने तथा मुस्तहब[2] (वांछनीय) को करने मे मुसीबत तथा कष्ठ मे घिरने की अनुमति नही है।
जारी
[1] शिया सामप्रदाय मे कोई भी कार्य निम्न लिखित पाँच अवस्थाओ मे से किसी एक का होना अनिवार्य है।
वाजिबः वाजिब वह कार्य है जिसका करना पुण्य तथा उसका न करना पाप है। उदाहरण प्रतिदिन पाँच वक़्त की नमाज़ पढ़ना रमज़ान मास के रोज़े रखना आदि।
मुस्तहबः मुस्तहब वह कार्य है जिसका करना पुण्य तथा उसका न करना पाप नही है। उदाहरण वस्त्रो पर इत्र लगाना अथवा रमज़ान मास को छोड़कर दूसरे महीनो मे रोज़ा रखना आदि।
हरामः हराम वह कार्य है जिसका करना पाप तथा उसका न करना पुण्य हो। उदाहरण दारु (शराब) पीना, दूसरे व्यक्ति की अनुमति के बिना उसके माल को खर्च करना, चोरी करना इत्यादि।
मकरूहः मकरूह वह कार्य है जिसके करने मे कोई पाप नही तथा उसके न करने मे पुण्य है। उदारहण काले वस्त्र पहनना आदि।
मुबाहः मुबाह वह कार्य जिसका करना तथा न करना दोनो समान हो इसमे न कोई पाप है और न ही पुण्य। उदारहण पानी पीना, वस्त्रो का धुलना इत्यादी। (अनुवादक)
[2] मुस्तहब की व्याखया 7 पंक्ति पूर्व की गई है।