इससे पहले वाली कड़ी में हम ने उल्लेख किया था कि हज़रत यूसुफ़ (अ) को निर्दोष होने के बावजूद जेल में डाल दिया गया। दो और युवाओं को भी उसी समय हज़रत यूसुफ़ के साथ जेल में डाला गया। एक दिन उन दोनों ने एक सपना देखा और हज़रत यूसुफ़ के सामने उसका उल्लेख किया और उनसे कहा कि वह उनके सपने की ताबीर अर्थात उसकी व्याख्या बयान करें।
हज़रत यूसुफ़ आस्था एवं विश्वास के उस स्तर पर थे कि उनके सामने बहुत से रहस्यों से परदे हट गए थे। उन्होंने एकेश्वरवाद की वास्तविकता से उन्हें अवगत करवाते हुए कहा, हे क़ैद में मेरे साथियों, तुम में से एक आज़ाद हो जाएगा और अपने स्वामी की साक़ी बनकर सेवा करेगा, लेकिन दूसरे को फांसी दे दी जाएगी और परिंदे उसका मास खायेंगे। हज़रत यूसुफ़ ने आज़ाद होने वाले से कहा कि जैसे ही तुम आज़ाद होगे तो अपने मालिक राजा से मेरे बारे में बताना, और कहना कि वह मेरे बारे में जांच करायें ताकि मेरा निर्दोष होना सिद्ध हो जाए। वह व्यक्ति कुछ समय बाद रिहा हो गया, लेकिन हज़रत यूसुफ़ को बिल्कुल भूल गया। हज़रत यूसुफ़ एक अजनबी व्यक्ति की तरह वर्षों तक जेल में बंद रहे। वे जेल में आत्मनिर्माण, क़ैदियों की सेवा और उनका मार्गदर्शन करते रहे।
इस घटना को सात वर्ष बीत गए यहां तक कि मिस्र के राजा ने परेशान करने वाला एक सपना देखा। सुबह होते ही उसने सपने की व्याख्या करने वालों और अपने दरबारियों को उपस्थित होने का आदेश दिया।
उसने कहा, मैंने सपने में सात मोटी ताज़ा गायों को देखा जिन्हें सात पतली दुबली गाय खा रही हैं, और सात बालियां हरी हैं और सात अन्य सूखी हुई। (आयत-43)
उसने कहा हे सरदारों अगर मेरे सपने की व्याख्या करत सकते हो तो इसके बारे में मुझे बताओ। लोगों ने राजा से कहा यह बुरा स्वप्न है और हम इस तरह के स्वप्न के बारे में अधिक नहीं जानते हैं।
इस समय उस युवा को हज़रत यूसुफ़ का ख़याल आया और उसने कहा, जेल की एक कोठरी में एक धर्मात्मा क़ैद हैं जो इस सपने की व्याख्या कर सकते हैं। मुझे अनुमति दें ताकि मैं उनसे मिल सकूं। उसने हज़रत यूसुफ़ के पास जाकर कहा, हे सच्च बोलने वाले मुनि आप इस सपने के बारे में क्या कहेंगे?
हज़रत यूसुफ़ ने राजा के सपने की व्याख्या करते हुए कहा, सात वर्षों तक निरंतर गंभीरता से खेती करो, इसलिए कि इन सात वर्षों में काफ़ी बारिश होगी। लेकिन जो भी उत्पादन करो उसे बालियों समेत ही भंडार कर लो, केवल थोड़ी सी मात्रा में निकालों जितनी ज़रूरत हो। लेकिन यह जान लो कि इन सात वर्षों के बाद सात वर्षों तक सूखा पड़ेगा और उस समय केवल जो तुमने भंडारण किया होगा उसे उपयोग कर सकोगे, नहीं तो नष्ट हो जाओगे। अगर योजना अनुसार, इन सात वर्षों को बिताओगे तो ख़तरा टल जाएगा। इसलिए कि उसके बाद ख़ूब बारिश होगी और लोग ईश्वरीय अनुकंपाओं से लाभांवित होंगे।
हज़रत यूसुफ़ ने राजा के सपने की सटीक व्याख्या की और इसी के साथ सूखे का सामना करने के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया। राजा और दरबारी इस व्याख्या से आश्चर्यचकित रह गए।
राजा ने यूसुफ़ को आज़ाद करने का आदेश दिया लेकिन हज़रत यूसुफ़ ने कहा कि वे उस समय आज़ाद होना पसंद करेंगे जब उन पर लगे आरोपों की जांच हों और वे निर्दोष साबित हो जाएं। अंततः ज़ुलेख़ा ने अपना अपराध स्वीकार कर लिया और कहा, अब सत्य सिद्ध हो चुका है, मैंने काम वासना की इच्छा व्यक्त की थी। इस प्रकार, मिस्र वासियों के लिए हज़रत यूसुफ़ (अ) का निर्दोष होना सिद्ध हो गया।
राजा ने हज़रत यूसुफ़ को अपना सलाहकार नियुक्त कर लिया। राजा ने पाया कि हज़रत यूसुफ़ असाधारण ज्ञान एवं दूरदर्शिता रखते हैं। राजा ने उनसे कहा कि आज हमारे निकट तुम्हारा उच्च स्थान है और हमें तुम पर भरोसा है। हज़रत यूसुफ़ के सुझाव पर उन्हें कोषाध्यक्ष की ज़िम्मेदारी सौंपी गई।
हज़रत यूसुफ़ की भविष्यवाणी के मुताबिक़, अच्छी बारिश होने के कारण सात वर्षों तक अच्छी फ़सल हुई। इस दौरान हज़रत यूसुफ़ ने खाद्य पदार्थों को सुरक्षित रखने के लिए गोदामों के निर्माण का आदेश दिया। उन्होंने जनता से कहा कि अपनी आवश्यकतानुसार फ़सलों में से ले लें और बाक़ी सरकार को बेच दें। इस प्रकार, गोदाम अनाज ने भर गए। सात वर्षों तक अच्छी फ़सल होने के बाद, सूखे का दौर शुरू हो गया और लोगों के पास अनाज की कमी होने लगी। हज़रत यूसुफ़ योजना के अनुसार, लोगों को अनाज बेचते थे और न्यायपूर्ण ढंग से उनकी ज़रूरतों की आपूर्ति किया करते थे। मिस्र के आसपास के इलाक़ों में भी सूखा पड़ रहा था। अतः हज़रत याक़ूब के लड़के अनाज ख़रीदने के लिए मिस्र गए। हज़रत यूसुफ़ स्वयं अनाज के वितृण की निगरानी करते थे, उन्होंने लोगों की भीड़ में अपने भाईयों को पहचान लिया, लेकिन उन्होंने हज़रत यूसुफ़ को नहीं पहचाना। हज़रत यूसुफ़ ने उनके साथ बहुच अच्छा व्यवहार किया और उनसे उनका हालचाल पूछा। भाईयों ने कहा, हज़रत याक़ूब के हम दस बेटे हैं और वे हज़रत इब्राहीम के पौत्र हैं और ईश्वरीय दूत हैं, लेकिन उन्हें गहरा दुख पहुंचा है। उनका एक और बेटा था जिसे वे बहुत चाहते थे, एक दिन शिकार के लिए हमारे साथ जंगल गया, हमारा ध्यान उससे हट गया और भेड़िए ने उसे खा लिया।
हज़रत यूसुफ़ कोशिश में थे कि किसी भी तरह अपने छोटे भाई बिनयामिन को मिस्र बुला लें। उन्होंने अपने भाईयों से कहा, अगर तुम दोबारा यहां आओ तो अपने उस भाई को भी लेकर आना जो तुम्हारे पिता के साथ है। अगर उसे नहीं लाओगे तो तुम्हें अनाज नहीं दिया जाएगा। हज़रत यूसुफ़ के आदेशानुसार, सेवकों ने ख़ुफ़िया रूप से उनके भाईयों के सामान में वह पैसे रखवा दिए जो उन्होंने अनाज ख़रीदने के बदले चुकाए थे। कुछ समय बाद जब हज़रत याक़ूब के बेटे अपने शहर पहुंचे तो उन्होंने अपने पिता से मिस्र के शासक के दयालु और कृपालु होने का उल्लेख किया और उनसे आग्रह किया कि बिनयामिन को उनके साथ मिस्र भेज दें। अंततः बेटों के बहुत अधिक आग्रह के बाद हज़रत याक़ूब ने बिनयामिन को उनके साथ भेजेने की बात स्वीकार कर ली। वे बिनयामिन को लेकर हज़रत यूसुफ़ के पास गए। हज़रत यूसुफ़ ने उनका स्वागत किया और उन्हें सम्मान दिया। फिर चुपके से अपने भाई बिनयामिन से कहा, मैं तुम्हारा भाई यूसुफ़ हूं, दुखी मत होना और उनके व्यवहार से नाराज़ नहीं होना।
हज़रत यूसुफ़ के आदेशानुसार, एक कर्मचारी ने चुपके से बिनयामिन के भार में विशेष प्याला छिपा दिया। क़ाफ़िला जब चलने को हुआ तो सुरक्षाकर्मियों ने उन्हें सोने का प्याला चुराने के अपराध में रोक लिया। हज़रत यूसुफ़ के भाईयों ने कहा, ईश्वर की सौगंध हमने कभी भी चोरी नहीं की। उनसे कहा गया कि अगर तुममे से किसी के सामान में यह प्याला निकला तो उसे क्या दंड दिया जाना चाहिए? भाईयों ने कहा, हमारी परम्परा के अनुसार, चोर को सेवक के रूप में रोक लिया जाए।
सुरक्षाकर्मियों ने पहले दूसरों के सामान की जांच की और उसके बाद बिनयामिन के सामान की, बिनयामिन के सामान से प्याला निकल आया, भाईयों पर दुखों को पहाड़ टूट पड़ा। उन्होंने लज्जित होते हुए कहा, अगर बिनयामिन चोरी करे तो आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि उसका जो एक भाई था उसने भी चोरी की थी। हज़रत यूसुफ़ को निराधार आरोप सुनकर बहुत दुख पहुंचा लेकिन उन्होंने ज़ाहिर नहीं किया। भाईयों ने कहा, हे मिस्र के शासक, बिनयामिन के पिता बहुत बूढ़े हैं, उसे हमारे साथ भेज दो और हम में से किसी एक को उसके स्थान पर रोक लो, आप तो बहुत दयालु व्यक्ति हो। यूसुफ़ ने कहा, हमें ईश्वर का भय है, जिसके पास से प्याला नहीं मिला है हम उसे नहीं रोक सकते, अगर ऐसा करेंगे तो हम अत्याचारी होंगे।
जब भाई निराश हो गए तो बड़ा भाई मिस्र में रुक गया और दूसरे भाई पिता का आदेश लेने पिता की सेवा में उपस्थित हुए। उन्होंने उपस्थित होकर हज़रत याक़ूब को पूरी बात बताई। पिता ने उनकी बात पर विश्वास नहीं किया और कहा, ऐसा नहीं है बल्कि तुम्हारे मन ने तुम्हें धोखा दिया है, मैं धैर्य से काम लूंगा, और मुझे ईश्वर से आशा है कि वह दूसरे बेटों को भी मुझ से मिला देगा। हज़रत सूसुफ़ की जुदाई में रो रोकर हज़रत याक़ूब की आंखों की पुतलियां सफ़ैद पड़ चुकी थीं और उन्हें दिखाई देना बंद हो गया था। उन्होंने अपने बेटों से कहा, मिस्र वापस जाएं और यूसुफ़ और उनके भाई को खोजें, और ईश्वर की कृपा से निराश न हों। उनके बेटों ने पुनः मिस्र की यात्रा की और हज़रत यूसुफ़ से आग्रह किया कि अपनी महानता के आधार पर उनकी सहायता करें।
हज़रत यूसुफ़ ने कहा, क्या तुम जानते हो कि तुमने अज्ञानता और नादानी में यूसुफ़ और उसके भाई के साथ क्या किया? उन्हें यूसुफ़ जाने पहचाने से लगे लेकिन उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था कि यूसुफ़ मिस्र के शासक कैसे बन सकते हैं। इसी लिए उन्होंने आशंका व्यक्त करते हुए पूछा क्या तुम ही यूसुफ़ हो? यहां यूसुफ़ ने वास्तविकता स्पष्ट कर दी और कहा, हां मैं यूसुफ़ हूं और यह मेरा भाई बिनयामिन है। ईश्वर ने अपनी कृपा से हमें ख़तरों से बचाया। और यह स्थान ईश्वर ने मुझे धैर्य और अच्छे काम अंजाम देने तथा बुरे कामों से दूर रहने के कारण प्रदान किया है।
उनके भाईयों ने कहा, ईश्वर की सौगंध, ईश्वर ने तुम्हें हम पर वरीयता प्रदान की जबकि हमने तुम्हारे साथ ग़लती की। हज़रत यूसुफ़ ने कहा, अब तुम्हारी ग़लती पर तुम्हें दंडित नहीं किया जाएगा, मैं ईश्वर से तुम्हें क्षमा करने के लिए याचना करता हूं वह क्षमा करने वाला और अति महरबान है।
उसके बाद, अपने भाईयों से कहा, उनका कुर्ता लेकर जाएं और पिता के चेहरे पर डाल दें ताकि उनकी आंखों का प्रकाश लौट आए। हज़रत यूसुफ़ के भाई बहुत ही उत्साहपूर्व कनआन की ओर पलटे और तेज़ी से पिता के पास गए। उन्होंने हज़रत युसूफ़ के कुर्ते को हज़रत याक़ूब के चेहरे पर डाला, उनकी आंखों का प्रकाश लौट आया और उन्होंने कहा, क्या मैंने तुम से नहीं कहा था कि ईश्वर ने मुझे उन चीज़ों का ज्ञान दिया है जिनका ज्ञान तुम्हारे पास नहीं है।
हज़रत याक़ूब और उनके बेटे हज़रत यूसुफ़ से मुलाक़ात के लिए चल दिए। यूसुफ़ भी अपने माता पिता के स्वागत के लिए गए। अंततः हज़रत याक़ूब के जीवन का सबसे अच्छा क्षण आ गया, और वर्षों बाद बाप बेटे एक दूसरे से मिले। यूसुफ़ ने कहा मिस्र में पधारिए और ईश्वर की इच्छा से आप पूर्ण रूप से सुरक्षित रहेंगे। जब वे दरबार में पहुंचे तो उन्होंने अपने माता पिता को सिंहासन पर बैठाया। इस दृश्य से उनके भाई इतने अधिक प्रभावित हुए कि सभी सजदे में गिर गए। इस समय हज़रत सुसूफ़ ने अपने पिता की ओर देखकर कहा, पिता श्री यह उस सपने का सच होना है जो अतीत में मैंने देखा था, ईश्वर ने उसे सच कर दिखाया।