
कुमैल को अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) की वसीयत 12

पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
हे कुमैल! ईश्वर कृपालू, दयालू, महान एंव विनम्र है, उसने हमे अपनी नैतिकता एंव गुणो से अवगत किया है तथा आदेश दिया है कि हम अपने स्वभाव मे उसकी नैतिकता को उतारे और लोगो को उसकी नैतिकता ग्रहण करने पर मजबूर करे। हमने इस कर्तव्य का भली भाति पालन किया तथा उसको लोगो तक पहुँचाया, हमने दिव्य आज्ञाओ तथा आदेशो का खंडन किये बिना पुष्टि की एंव निसंदेह उनको स्वीकार किया।
हे कुमैल, ईश्वर की सौगंघ मै उन व्यक्तियो मे से नही हूँ कि मै चापलूसी करूँ ताकि लोग मेरी आज्ञा का पालन करें और यह तमन्ना भी नही रखता कि लोग मेरे विरोधी न हो और अरबो को रिश्वत नही देता ताकि वह मुझे अमीरुल मोमेनीन कहें।
हे कुमैल, जो व्यक्ति दुनिया से सफ़लता प्राप्त करता है, दुनिया की सफ़लता मे गिरावट है एंव धोखा देने वाली है परन्तु आख़ेरत की सफ़लता बाक़ी रहने वाली है।
सभी व्यक्ति आख़ेरत की ओर जा रहे है, लेकिन वह वस्तु जो हमे आख़ेरत से चाहिए वह ईश्वर की मर्ज़ी एंव स्वर्ग के उच्च स्तर है कि जिन्हे ईश्वर निग्रही व्यक्तियो को विरासत मे प्रदान करता है।
हे कुमैल! जिस व्यक्ति का स्वर्ग मे स्थान नही है उसे दर्दनाक पीड़ा एंव स्थायी गिरे हुए दर्जे से सूचित करोय़
हे कुमैल! ईश्वर ने जो सफ़लता मुझे प्रदान की है मै हर हालत मे ईश्वर का धन्यवाद करता हूँ।
यदि चाहते हो तो उठो जाओः अर्थात समय समाप्त हो गया यह ख़ुद कार्यो तथा समय के बारे मे एक आदेश पट्टी है।[1]