कार्यक्रम सृष्टि ईश्वर और धर्म को हमने सृष्टि पर चर्चा से आरंभ किया था जिसके दौरान हमने विभिन्न ईश्वरीय गुणों तथा उसके दूतों और उनके लाए हुए धर्म पर चर्चा की और यह बताया कि ईश्वर ने किस प्रकार मनुष्य के मार्गदर्शन की व्यवस्था की किंतु जब यह स्पष्ट हो गया कि ईश्वर ने इस संसार के लिए अपने मार्गदर्शक भेजे
जिन्होंने विशेष प्रकार के नियमों से मनुष्य को परिचित कराया और उससे कहा कि यदि वह कल्याण चाहता है तो उनके बताए हुए मार्ग पर चले तो प्रश्न यह उठता है कि धर्म, धर्म के पालन और ईश्वरीय दूतों के अनुसरण का परिणाम क्या होगा? इसके परिणाम के निर्धारण के समय को प्रलय व क़यामत कहा जाता है।
क़यामत के बारे में सब से पहला प्रश्न यह है कि इस पर विश्वास का महत्व क्या है? क्यों क़यामत पर विश्वास रखना चाहिए और किस प्रकार से क़यामत पर विश्वास तार्किक है।
इस प्रश्न के उत्तर में हम यह कह सकते हैं कि जीवन की विभिन्न गतिविधियों का कारण, इच्छाओं की पूर्ति, लक्ष्यों और उद्देश्यों तक पहुंचना अर्थात अंतिम व निर्णायक परिपूर्णता तक पहुंचना है और विभिन्न कामों की शैली व मात्रा तथा उन की दिशा वास्तव में उन लक्ष्यों की पहचान पर निर्भर होती है जिन तक पहुंचने का प्रयास किया जाता है।
अर्थात हम इस संसार में जो कुछ करते हैं उसका एक ही उद्देश्य होता है और वह यह कि हम अपनी इच्छाओं की पूर्ति कर सकें। इसमें इस बात का कोई महत्व नहीं है कि इच्छा कैसी हो, भले लोग अच्छी व सार्थक इच्छाओं के लिए और बुरे लोग बुरी इच्छाओं व मनोकामनाओं के लिए सक्रियता करते हैं किंतु वास्तविक लक्ष्य उस मूल इच्छा की पूर्ति है जिसे परिपूर्णता की चाह कहा जाता है। यदि हम इस संसार पर दृष्टि डालें तो हमें नज़र आएगा कि हर वस्तु परिपूर्णता की ओर अग्रसर है और पूरा होने की इच्छा और सम्पूर्ण बन जाने की कामना हर प्राणी में होती है
और चूंकि इस कामना व इच्छा बोध से संबंधित होती है इस लिए यह बोध जितना शक्तिशाली होगा, परिपूर्णता की इच्छा भी उतनी की शक्तिशाली होगी और यह दशा मनुष्य में सब से अधिक प्रभावी रूप में नज़र आती है और इसका कारण यह है कि बोध तथा पहचान की दृष्टि से मनुष्य सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ ईश्वरीय रचना है।
इस प्रकार से मनुष्य में परिपूर्णता की इच्छा बहुत अधिक व महत्वपूर्ण होती है किंतु परिपूर्णता क्या है इसका निर्धारण उसी समय हो सकेगा जब मनुष्य को इस बात का ज्ञान हो कि परिपूर्णता कहते किसे हैं और यदि हम ध्यान दें तो विश्व के विभिन्न लोगों की दृष्टि में परिपूर्णता के विभिन्न अर्थ होते हैं और विभिन्न लोग अपनी भिन्न भिन्न रूचियों व परिस्थितियों के आधार पर विभिन्न क्षेत्रों में परिपूर्णता की कामना रखते हैं किंतु हमारा आशय जिस परिपूर्णता से है वह मनुष्य की एक मनुष्य के रूप में परिपूर्णता है।अर्थात यदि कोई कलाकार है तो निश्चित रूप से अपनी कला में चरम सीमा तक पहुंचने की कामना रखता है या ज्ञानी है तो वह इस क्षेत्र में अंतिम संभव सीमा तक जाने का प्रयास करता है और इसकी कामना रखता है किंतु हमारा आशय मनुष्य के अस्तित्व की वह विशेषताएं नहीं है जिन्हें वह बाद में परिश्रम व अभ्यास से प्राप्त करता है बल्कि परिपूर्णता से वह गंतव्य और लक्ष्य आशय है जिसके लिए मनुष्य की रचना की गयी है।
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