पुस्तक का नामः पश्चताप दया का आलंगन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
हाँ। ईश्वर की विस्तृत कृपा एवं दया से सहायता ले तथा उसके उपकारो से शक्ति ले और प्रकृति की दया को अपने हृदय मे एकत्रित करके ईश्वर की ओर अग्रसर हो और हृदय के पग, बुद्धि की ज्योति मे शुद्ध एवं पवित्र भाव, दृण निश्चय, निरन्तर प्रेम पूर्वक प्रयत्न तथा ज्ञान के साथ चले ताकि उनके शरीर एवं आत्मा पाप, कुकर्म, दुष्टता के भ्रष्टाचार, शैतान के हथकंड़ो तथा अव्यवहारिक कर्मो से पूर्ण रूप से मुक्त एवं स्वच्छ हो सके और उनकी गिनती ईश्वर के श्रृद्धधालुओ, पवित्र मनुष्यो, ईश्वर के मार्ग पर चलने वाले एवं संतो मे हो सके जो सदैव ईश्वर से निकटतम स्थान प्राप्त करने की जतन मे रहते है और उस असली पालनहार के क्रोध के अनुरूप उसकी कृपा दृष्टि को प्राप्त करे, क़यामत के दिन (वह दिन जिस समय सभी पाप एवं पुन्य का हिसाब किताब होगा) ईश्वर के दुख दायक दण्ड के बजाये स्वर्ग का अधिकार पाये। यह जागृति (जागरन) पूर्व कर्मो की तुलना मे तथा पश्चाताप एवं प्रायश्चित का यह अंदाज़ मनुष्य के सभी पापो, कुकर्म से हृदय के प्रकाशमय होने का सोत्र तथा शरीर की पवित्रता और आत्मा के शांती की कुन्जी है सत्य भावना से पश्चाताप एवं क्षमायाचना तथा ईश्वर का ध्यान करना महान पूजा एवं इबादत और सर्वाधिक लाभदायक दशा एवं सत्य है। ईश्वरीय पवित्र पुस्तक (कुरआन) तथा ईश्वरीय दूत के घर वाले (पवित्र अहलेबैत) के ज्ञान एवं शिक्षा का विशेष भाग इसी से संदर्भ है। पश्चाताप करने वाले मनुष्य के लिए आवश्यक है कि पश्चाताप एवं क्षमायाचना के संबन्ध मे कुछ चीज़ो पर ध्यान दे ताकि इस महान पूजा एवं इबादत तथा सत्यता को समपन्न कर सके और इस ईश्वरीय सोत्र से लाभ उठा सके।
लेकिन हृदय का कार्य ईश्वर के सम्मान, श्रृद्धा, विशेषता, सृष्टि की रचना और उसके दयात्मक रचना के चिन्हो पर अपना ध्यान केन्द्रित करना है तथा मानवता के उद्धार का दृण संकल्प करना है।