करबला की लडा़ई मानव इतिहास कि एक बहुत ही अजीब घटना है। यह सिर्फ एक लडा़ई ही नही बल्कि जिन्दगी के सभी पहलुओ की मार्ग दर्शक भी है। इस लडा़ई की बुनियाद तो ह० मुहम्मद मुस्त्फा़ स० के देहान्त के तुरंत बाद रखी जा चुकी थी।
इमाम अली अ० का खलीफा बनना कुछ विधर्मी लोगो को पसंद नहीं था तो कई लडा़ईयाँ हुईं अली अ० को शहीद कर दिया गया, तो उनके बाद इमाम हसन अ० खलीफा बने उनको भी शहीद कर दिया गया। यहाँ यह बताना ज़रूरी है कि, इमाम हसन अ. को किसने और क्यों शहीद किया? अस्ल मे अली अ० के समय मे सिफ्फीन नामक लडा़ई मे मुआविया ने मुँह की खाई वो खलीफा बनना चाहता था पर न बन सका। वो सीरिया का गवर्नर पिछ्ले खलिफाओं के कारण बना था अब वो अपनी एक बडी़ सेना तैयार कर रहा था जो इस्लाम के नहीं बल्कि उसके अपने लिये थी, नही तो उस्मान के क़त्ल के समय ख़लीफा कि मदद के लिये हुक्म के बावजूद क्यों नही भेजी गई? अब उसने वही सवाल इमाम हसन के सामने रखा या तो जंग या फिर बैअत। इमाम हसन अ. ने बैअत स्वीकार नही की परन्तु वो मुसलमानो का खून भी नहीं बहाना चाहते थे इस कारण वो जंग से दूर रहे अब मुआविया भी किसी भी तरह सत्ता चाहता था तो इमाम हसन अ. से सुलह करने पर मजबूर हो गया इमाम हसन अ. ने अपनी शर्तो पर उसको सिर्फ सत्ता सौंपी इन शर्तो मे से कुछ यह हैं:
1. वह सिर्फ सत्ता के कामो तक सीमित रहेगा दीन में कोई हस्तक्षेप नही कर सकेगा।
2. वह अपने जीवन तक ही सत्ता मे रहेगा मरने से पहले किसी को उत्तराधिकारी नहीं बनाएगा।
3. उसके मरने के बाद इमाम हसन खलीफा़ होगे अगर इमाम हसन की मौत हो जाये तो इमाम हुसैन अ. को खलीफा माना जायगा।
4. वो सिर्फ इस्लाम के कानूनों का पालन करेगा।
इस तरह की शर्तो के द्वारा वो सिर्फ नाम मात्र का शासक रह गया, उसने अपने इस संधि को अधिक महत्व नहीं दिया इस कारण करबला नामक स्थान में एक जंग हुई थी जो मुहम्म्द स्० के नाती तथा यजीद मुआविया इब्ने अबूसुफ़यान के बीच हुआ जिसमे वास्तव मे जीत इमाम हुसैन अ० की हुई पर जाहिरी जीत यजीद कि हुई क्योकि इमाम हुसेन अ० को व उन्के सभी साथियो को शहीद कर दिया गया था उनके सिर्फ़ एक बेटे जैनुलआबेदीन अ. जो कि बिमारी के कारण जंग मे हिस्सा नहीं ले सके थे, ज़िंदा बचे। लेकिन आज यजीद का नाम बुराई से लिया जाता है कोई मुसलमान् अपने बेटे का नाम यजीद रखना पसंद नही करता जबकी दुनिया मे हसन व हुसैन नामक अरबो मुसलमान है, यजीद कि नस्लो का कुछ पता नही पर इमाम हुसैन की औलाद जो सादात कहलाती है जो इमाम जैनुलआबेदीन अ० से चली दुनिया भर मे फैले हैं।