पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारीयान
हमने इस से पूर्व भाग मे इस बात को बताया था कि अमीरुल मोमेनीन ने कुमैल को संबोधित करते हुए कहा कि हे कुमैल, इस प्रार्थना को कंठित करो तथा प्रत्येक गुरूवार रात्रि को एक बार अथवा महीने मे एक बार अथवा वर्ष मे एक बार अथवा पूरे जीवन मे एक बार पढ़ो, शत्रुओ की बुराईयो से छुटकारा प्राप्त होगा तथा ईश्वर तुम्हारी सहायता करेगा और तुम्हारी जीविका मे वृद्धि करेगा तथा तुम्हारे पापो को क्षमा कर देगा। इस लेख मे इस बात को ध्यान पूर्वक अध्यन करेगे कि यह दुआ किस प्रकार लिखि गई।
हे कुमैल, तुमने अधिकांश जीवन मेरे साथ व्यतीत किया है मै तुम्हे इस पवित्र एवं विशेषाधिकृत प्रार्थना योग्य प्राप्त कर गर्व महसूस कर रहा हूँ और तुम्हे इस से अवगत करने का इच्छुक हूँ। उसके बाद कहाः लिखो। अमीरुल मोमेनीन (अ.स.) स्वयं बोलते गये तथा मै उसको लिखता गया, फ़िर सैय्यद पुत्र ताऊस प्रसिद्ध दुआ को उद्धृत करना आरम्भ करते है।[१]
3. 14 शाबान के आमाल तथा उस रात्रि की प्रार्थनाओ के समबंध मे शेख कफ़अमी मिस्बाह नामी पुस्तक मे कहते हैः
ثُمَّ أدعّ بِمَا رَوَی أن أمُیرَألمؤمِنِینَ یَدعُوا بِہِ لَیلہ النِّصفِ مِن شَعبَان وَ ھُوَ سَاجِد
सुम्मा उदऊ बेमा रवा अनअमीरल मोमेनीना यदऊ बेहि लैलेहिन्निसफ़े मिन शाबानिन वहोवा साजेदुन[२]
तत्पश्चात 14 शाबान की रात्रि को इस प्रार्थना (दुआ) को पढो जो कि अमीरुल मोमेनीन से रिवायत हुई है जिसे अमीरुल मोमेनीन सजदे की हालत मे पढते थे।
जारी