पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारीयान
इस्म
शब्दकोश के विद्बानो के अनुसार “इस्म” शब्द ”समुव” से लिया गया है जिसका अर्थ ऊँचाई, महान है।
दयालु परमेश्वर ने इस्म शब्द को बा अक्षर के साथ इस प्रकाशी वाक्य मे प्रभाव शाली प्रयोग किया है ताकि मनुष्य जबान से उसका प्रयोग करते समय इस बात की ओर ध्यान दे कि मित्र के नाम का उल्लेख करके ईश्वर के समीप हो जाएगा, यह बात ध्यान देना चाहिए कि सिर्फ़ मित्र का नाम जबान से लेने से मित्रता प्राप्त नही होती, बलकि हृदय को नैतिक एवं आध्यात्मिक प्रदूषण तथा ज़बान को पश्चताप के पानी से पवित्र ना कर ले उस समय तक रिसाँर्ट की आत्मा तथा प्रेमी का प्रभाव प्राप्त नही होगा। और इस तत्थ को भी ध्यान मे रखना चाहिए कि हृदय एव जान की पवित्रता तथा इरादे मे ईमानदारी और अपनी अंतर्निहित गरीबी की ध्यान मे रखे एवं ईश्वर को किसी की अनावश्यकता को ध्यान मे रखे बिना, उसके नाम का अपनी ज़बान से जारी करना पूर्णतः अशिष्टता एवं धृष्टता है।
हजार बार मुश्क एवं गुलाब जल से मुहँ धोने के पश्चात भी तेरा नाम लेना पूर्णतः अशिष्टता है।
जारी