कमालः वह मन भर दुख़ से अपने से कहने लगा, वाए हो इन मुशरिक व काफ़िर व्यक्तियों व ज़न्दीक़.....पर। कि यह सब आप अपने को एक मुसलमान कहलाते है वाए....हो।
मोहम्मदः उस से कहाः किन लोगों को कह रहै हो१
कमालः शिया व्यक्तियों को कह रहा हूँ!
मोहम्मदः उन लोगों का बदनाम न करों, और मुशरिक भी मत कहा करो क्योंकि वह लोग भी मुसलमान है.
कमालः उन लोगों का हत्या करना काफ़िर लोगों से अधिक उत्तम है।
मोहम्मदः यह शैतानत तुम्हारे भीतर किस लिए है और किस प्रमाण के साथ वह लोग मुशरिक है।
कमालः वह लोग अल्लाह के साथ शरीक करते है और जो चीज़ अल्लाह के बारे मे कहते है संम्भव नहीं है कि वह उन लोगों को लाभ व नुक़सान पहूँचाए।
मोहम्मदः किस तरह और यह कभी संम्भव नहीं है।
कमालः वह लोग पैग़म्बर, व इमामान व ओलिया-ए खु़दा से सहायता मागंता है. आम शब्दो में कहूः या रसूलुल्लाह, या अली, या हुसैन, या साहेबुज़ ज़मान व..... वह लोग उन व्यक्तियों से अपनी हाजत मागंते है ताकि वह लोग उन की हाजत को पूरी करें, शिया लोग यक़ीन करते है कि वह व्यक्तियां ओलिया-ए ख़ुदा है और उन लोगों से सम्भंव है कि उन की हाजत को पूरी कर दें, क्या तुमहारी दृष्टि में यह करना शिर्क नहीं है, और अल्लाह के साथ किसी कोे शरीक करना शुिर्क नही है।
मोहम्मदः अगर आदेश देते हो तो तुम्हारे लिए कुछ बयान करुँ.
कमालः बोलोः
मोहम्मदः मै भी उन व्यक्तियों में से एक था जो व्यक्ति शिया लोगों को बगैर अपराध और भूल-भ्रान्ती के मिथ्यांरोप क़रार देता था, और जब समय मिलता था उन व्यक्तियों के अनुपस्थति में बदनाम करता था, बिल आख़िर एक दिन हज के मौके पर एक शिया के साथी हो गया और शिया लोगों पर बदगुमान होने के कारण जो कुछ ज़बान पर आया बोल दिया और कई बर्ष के मन के बिद्बष को अपनी भाषा द्बारा बयान कर दिया, लेकिन वह सब्र के साथ ख़ामोश रहा लेकिन उस के चेहरे से ख़ुश अख़लाक़ का अलामत थी किन्तू हमारे यह व्यवहार देख कर मात्र हसता था, जितना मै अपनी ज़बान पर गालियां में ज़्यादती करता था वह मात्र मुसकुरा के मेहेरवाणी का दृष्ट हमारे तरफ़ फ़िरया करता था. उस की सदाचार व्यबहार हमारी बद आख़लाक़ व अ-साधआरण व्यबहार को लज्जित कर दिया, मै कुछ समय तक चुप रहा, वह हमारे तरफ़ मूंह करके कहाः ए मुसलमान द्बीनी भाई, मोहम्मदः अनुमति देते हो मै भी तुम से कुछ बात करुँ१ हमारे और उस के दर्मियान विभिन्न प्रकार विषय सम्पर्क बातचीत हुई. उस में एक जो हम को सही और हक़्क़ानियत को कबूल करने पर बाध्य किया वह विषय जो ओलिया ख़ुदा से सहायता मागंना था.
कमालः धोका, और शैतानी, तुमहारे अदंर प्रभाब कर लिया है.... तुम को दीन इसलाम सम्पर्क ज्ञान बहूत कम है!
मोहम्मदः मै उपस्थित हूँ. ताकि कुरआने करीम, और रसूले पाक (साः) के सुन्नत और सालेह मुसलमान, और ओलिया ख़ुदा से सहायता कामना करने के सम्पर्क तुम से कुछ बातचीत करुँ.
कमालः अल्लाह पाक अपने सब बान्दों को ख़लक़ करने के कारण अधिक से अधिक मेंहैरबान है। उस के और बान्दों के दर्मियान एक सम्पर्क बनाने का किसी क़िस्म का कोई पार्थक नहीं है। अल्लाह का बन्दा किसी स्थान और किसी समय में भी हो, और कहीं भी हो उचित है कि मुस्तक़ीम और किसी के सहायता व्यतीत उस से सम्पर्क क़ाएम करें, लेकिन अल्लाह व्यतीत किसी और से सहायता कामना करना चाहै वह लोग पैग़म्बर, इमामान, और फ़रिश्ते या सालेह बन्दा क्यों न हो सहायता कामना करना शरीयत के मुताबिक़ शुद्ध नहीं है. बल्कि ना-जाएज़ है. अगरछे उन लोगों का व्यक्तित्व अल्लाह के निकट एक स्थान पर क्यों न हो.
मोहम्मदः उन लोगों से सहायता मागंना जाएज़ क्यों नहीं है१
कमालः इंसान मृत के बाद अनुपस्थित है (अर्थात मादुम यानी उपस्थित नहीं है) जो चले गए वह किसी कार्य के व्यबहार के उपयुक्त नहीं है. लिहज़ा यह क्यों कर सम्भंब हो सकता है कि जो उपस्थित नहीं है उस से सहायता कामना करे या मागें १
मोहम्मदः किस दलील व प्रमाण के साथ कह रहे हो कि वह सब मृत है, और उपस्थित भी नहीं है १ और कौन व्यक्ति इस विषय को कहा है१
कमालः इमाम मुहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब फ़रमाते हैः कि (जो सालेह और सदाचार, नेककार व्यक्ति इस पृथ्वी से चले गए, उन लेगों से सहायता कामना या सहायता मागंना तथा अनुपस्थित चीजों से सहायता मागंना बराबर है, और यह काम अक़्ल की दृष्ट से अपसन्द और बुरा है. और उनके एक अनुशरण करने वाले ने नक़्ल किया है कि वह (मुहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब) उन के उपस्थित में कहा है, या वह सुना है जिस पर वह राज़ी था जिस को वह ताईद किया है ( मुहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब फ़रमाते हैः कि यह मेंरी लाठी है ( नाउज़ बिल्लाह) यह उस से बहुत बहतर और मदद करने वाला है, चूकि यह लाठी सांप और बिच्छू वगैरह को मारने के लिए काम आते है और इस लाठी को व्बहार किया जा सकता है. हालाकि मुहम्मद (साः) मर गए उस से कुछ फायदा हासिल नहीं होगा।(25) (और न फायदा लिया जा सकता है)।
इस बिना पर, जो विषय कथा हो चुका है या उस के उधाहरण कथाएं अक़्ल के निकट उन मृत व्यक्तियों से सहायता मागंना अ-पसन्द है, अगरचे वह मृत व्यक्ति पैग़म्बर ही क्यों न हो।
मोहम्मदः यह विषय सम्पूर्ण उलटा है, क्योंकि इंसान मरने के साथ साथ वह पर्दा उठ जाता है और वह उस चीज़ को देख़ता या परीदर्शन करता है जो जीवित अबस्था में आदमी देख़ नहीं पाता था, अल्लाह इस विषय सम्पर्क ईर्शाद फ़रमाते हैः
فکشفنا عنک غطآءک فبصرک اليوم حديد
मै तुमहारे पर्दा को (तुमहारे ऑख़ के सम्मुख़ से) उठा लिया हूँ और तुमहारी ऑख़े आज अधिक तेज़ है।(26) उस के बाद ईर्शाद फ़रमाते हैः
ولا تقولوا لمن يقتل فی سبيل الله أموات بل أحياء ولکن لا تشعرون
जो व्यक्ति अल्लाह के राह में मृत पाए है उन व्यक्तियों को मृत मत कहो बल्कि वह जीवित है लेकिन तुम उस को नहीं जानते।(27)
अपर एक आयत में ईर्शाद फ़रमाते हैः
ولا تحسبن الذين قتلوا في سبيل الله امواتاً بل احياء عند ربهم يرزقون
जो लोग अल्लाह की राह में शहीद हुए है, उन लोगों को मृत मत समझो बल्कि वह लोग जीबित है और अपने परवरदिगार की तरफ़ से रुज़ी अर्जन करते है।(28) जनाब बुख़ारी बुख़ारी शरीफ़ में बिवरण के साथ लिख़े हैः कि पैग़म्बरे अकरम (साः) किनारे क़लीबे बद्र में आया (जहाँ सैनिक क़त्ल होके पढ़ा हूआ था) आप ने मुशरिक़ीन मृत व्यक्तियों से ख़िताब करके फ़रमायाः ख़ुदा बन्दे मुताल ने हम से जो वादा (प्रतिक्षा) किया था हम सच पाए है, किया तुम सब भी अपने परवरदिगार के वादा को सच पाए हो १
आप से कहा गयाः मृत व्यक्तियों को (जवाब देने के लिए) बुला रहे हो! पैग़म्बंरे अकरम (साः) ने फ़रमायाः
तुम लोग उन लोगों से अधिक (बेशि) सुन्ने वाले नहीं हो।(29)
ग़ज़ाली (ग़ज़ाली शाफई सम्प्रदाय के महान नेता) फ़रमाते हैः ( कुछ लोग सोछते है कि मृत नाबूद है.... यह सोछना मुलहीद और काफ़िर है।(30)
कमालः इमाम ग़ज़ाली मरने के बाद मृत्यु को नाबुद यक़ीन करते है और इस को कुफ्ऱ व इलहाद जानते है१!... यह बात कहाँ कही गई है।
मोहम्मदः आहयाउल उलुम(31) में इस विषय को उल्लेख़ किया है. आगर तुम इस पुस्तक को मुराजे करोगे तो मालूम हो जाए गा।
कमालः गज़ाली साहब की कथा पर आश्चर्य है!
मोहम्मदः गज़ाली साहब की कथा आश्चर्य नहीं है, बल्कि तुम हो, कि उन से अज्ञान हो इस बात पर आश्चर्य है। क्या रसूल (साः) क़लीबे बद्र के मृत्यों के ख़िताब नहीं सुने हो१ चूंकि जो व्यक्ति मर जाते है न सुनने का कोई शक्ति रख़ते है और न समझने कि शक्ति, लिहज़ा पैग़म्बर अकरम (साः) कि कथा कहना बाक़ी नहीं रहती किः पैग़म्बर अकरम (साः) ने फ़रमायाः तुम लोग उन लोगों से अधिक सुन्ने वाले नहीं हो।(32) लिहज़ा पैग़म्बर अकरम (साः) ने जो कुछ फ़रमाया है वह यह है, कि वह मरने वाले व्यक्ति तुमहारे जैसा सुन ने वाले और समझ ने वाले है, अब तुम विश्वाश (यक़ीन) किए हो१
कमालः मै हैरात में हूँ कि किस तरह तमाम सालों में इस आएत सम्पर्क गभींर चिन्ता नहीं कि ताकि अस्ल उद्देश्व को हासिल कर सकूँ और किस तरह (हत्ता एक बार भी) पैग़म्बर (साः) कि इस हदीस को प्रसिद्ध आलेम और मनुष्य व्यक्तियों से भी नहीं सुना।
मोहम्मदः अब तुम क़बूल किए हो कि शियों का कहना है कि मृत व्यक्ति मृत के बाद नाबूद ना होने का वक़्या, या अभी भी संदेह में हो१
कमालः ना, इस कहने पर संदेह नहीं कर रहा हूँ, बल्कि अपर कोई चीज़ है जो हम को पथभ्रष्ट कर रहा है।
मोहम्मदः किस चीज़ के कारण तुम पथ भ्रष्ट व हैरान में हो१
कमालः यह ग़ज़ाली साहब का इस तरह विश्वास और उस के विपरीत कहने पर मुलहाद और काफ़िर जानते है और पैग़म्बर अकरम (साः) ताकीद भी कर रहे है कि मृत व्यक्तियों जीवित व्यक्ति के उधाहरण सुनते और समझते है। लेकिन मुहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब यक़ीन रख़ते है कि इंसान मृत के बाद नाबुद हो जाते है...!
दूसरी तरफ़ मुहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब के लिए किस तरह सम्भंब हूआ और जसारत के साथ कहाः (हमारे हाथ कि लाठी पैग़म्बर अकरम (साः) से उत्तम है), क्योंकि यह लाठी इंसान को लाभ पहूँचाता है और पैग़म्बर (साः) लाभ नहीं पहूँचाते)।(33) यही विषय है कि हम को आश्चर्य किया है।
मोहम्मदः हैरान और आश्चर्य कि विषय नहीं है. बल्कि हमारे लिए उचित है कि समस्त प्रकार व्यक्तियों को क़ुरआन और रसूल (साः) के सुन्नत और आंतीत सालेह बान्दा के सदाचार व्बहार को तराज़ु से तोले, अगर उन के व्बहार और चरित्र पवित्र क़ुरआन के मुताबिक़ हो, या आंतीत व्यक्ति और सालेह बान्दा के चरित्र के मुताबिक़ हो, जान लो वह मोमिन है, लेकिन हमारे लिए यह उचित नहीं है कि दीन-इसलाम-धर्म को एक परीचित व्यक्ति के व्यबहार व चरित्र से मिलाएं, हाला अगर किसी व्यक्ति को मोमिन और पवित्र जानते है तो हमारे लिए उचित है कि उस के तमाम प्रकार चरित्र को अगरचे क़ुरआन और सुन्नत के बिपरीत व प्रकाश्व तौर पर कुफ्र व इलहाद क्यों न हो हक़ीक़त में उस को इस्लामी व्यक्ति समझे१ न इस तरह हो नहीं सकता। बल्कि किसी समय जब किसी व्यक्ति को किसी स्थान पर पथ भ्रष्ट होते हूए देख़े तो फौरन हमारे लिए उचित है कि हम उन व्यक्तियों से असंतोष्ट प्रकाश करें और सच्छे और सही हक़ीक़त विषय को अनुशरण करें।
कमालः तुमहारी बात परीपूर्ण तरीके से सही व सठिक़ है..... लेकिन अब तक इस व्यक्ति (मुहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब) पर एक दृढ़ इमान रखा था, लेकिन उसकी भूल- भ्रान्ती को मुझे एक कुफ्र व इलहाद कि तरफ़ ले जा रहा है, उसके ऊपर कुफ़्र इमान रख़ने से आगाह करने पर उस के ऊपर से हमारा इमान स्थीत हूआ, हालाकि मै उस को एक इस्लाम के नेता और रहबर मानता था और उस से दीन-इसलाम के समस्त प्रकार आहकाम को अर्जन करने के लिए एक ज्ञानी आलिम जानता था लेकिन अज से इस तरह तक़लीद से विरत रहना पढ़ेगा।
मोहम्मदः (मुहम्मद इब्ने अब्दुल वहाब कि कथाएं को छोढ़ के हम सब अपने विषय कि तरफ़ चले आएं।
कमालः सहीं है. मै तुम्हारी कथा को क़बूल करता हूँ कि इंसान मृत के बाद निस्त व नाबूद नहीं होता, लेकिन कहा जाता है किः ( अल्लाह के मख़लूक़ से सहायता मागंना-अर्जन करना शिर्क़ और इस्लाम को बर्बाद करना बराबर है) लेकिन यह किसतरह सम्भंब हो सकता है कि पैग़म्बर अकरम व इमाम (अः) या किसी एक सालेहीन बन्दा से सहायता लिया जा सकता है १
मोहम्मदः जीवित व्यक्ति से दोआ मागंना या किसी चीज़ के लिए आवेदन करना या इस तरह कहूँ कि आए बाक़िर, मुहम्मद, जाफर, रिज़ा वगैरह मुझे कुछ दिनार या पैसा प्रदान करो, या हमारे लिए अल्लाह के निकट क्षमा प्रार्थना करो, या हमारे हाथ पकढ़ कर मसजिद ले चलो..... क्या शरीयत के दृष्ट से शुद्ध व जाएज़ है १
कमालः हालाकिं यह जाएज़ व शुद्ध है।
मोहम्मदः जब तुमहारे निकट यह कथा प्रमाण हो चुकी है कि मृत इंसान जीवित इंसान के उधारण सुनता है तब उस से किसी चीज़ का आवेदन करना या मागंना किया माना रख़ता है १
कमालः अपने माथा को बुलन्द करके कहा, इसतरह है जैसा तुम कह रहे हो तब सही है.
मोहम्मदः पैग़म्बर अकरम (साः) और अपर सालेहीन बन्दों से सहायता कामना करने के समंधं कोई दूसरी दलील व प्रमाण हमारे निकट उपस्थित है।
कमालः वह दलील क्या है १
मोहम्मदः नबी करीम (साः) के सहाबा(34) रसूल अकरम (साः) के जीवित अबस्था और उनकी मृत्यु के बाद उनके साहाबा उन से सहायता मागां करते थें। हत्ता पैग़म्बर अकरम (साः) जीवित अबस्था में अपने सहाबा और अपर दोस्तों को इस काम-कार्य से निषेध घोषणा नहीं फ़रमाते थें, अगर अल्लाह व्यतीत अपर व्यक्ति से सहायता कामना करना शिर्क है, विना संदेह के आप इस कार्य से यक़ीनि तौर पर निषेध फ़रमाते।
मोहम्मदः उधाहरण के तौर पर कई उधाहरण पेश करता हूँ। (बिहक़ी)(35) व (इब्ने अबी शैबा) सही दलील और प्रमाण के साथ विबरण किया और आहमद इब्ने जैनी दैलान भी रीवाएत कि है, किः ( उमर की ख़िलाफ़त के यूग में, जनसाधारण जनता व्यक्ति ख़रा (कहत) में असहाय हो गया था (बिलाल इब्ने हर्स). रसुल (साः) की कब्र के निकट जाकर कहाः ए रसुले ख़ुदा अपनी क़ौम के लिए अल्लाह से पानी के लिए प्रर्थना करे ताकि (भूक और ख़रा से दूर रहे) क्योंकि जनसाधारण जनता व्यक्ति नाबूद में गिरफ़्तार हो गए है)(36)
हम सब जानते है कि बिलाल एक यूग तक हज़रत रसूल (साः) के पबित्र ख़िदमत (सेवा) और उन के साहाबा में से थे और इस्लाम के समस्त प्रकार विधान-क़ानून को बिना माध्यम अर्जन किया है अगर पैग़म्बर अकरम (साः) से सहायता कामना करना और उन से मदद मागंना शिर्क होता बिलाल यक़ीनन इस काम को अंजाम न देता, और इस तरह के काम से विरत रहते, अगर आप इस तरह करते अपर साहाबा भी उस काम से यक़ीनन निषेध करते, और यही एक दृढ़ विषय है कि पैग़म्बर अकरम (साः) से सहायता कामना करना एक मुस्तहकम दलील व प्रमाण है।
बेह्क़ी उमर इब्ने ख़त्ताब से वर्णन किया है किः रसूले ख़ुदा (साः) इर्शाद फ़रमाते है जिस समय हज़रत आदम (अः) भुल-भ्रान्ती में लिप्त हो गए उस समय कहाः
يا رب أسئلک بحق محمد (ص) إلا ما غفرت لی...؛
ए अल्लाह, तुम से प्रर्थना चाहता हूँ मुहम्मद (साः) का शपथ दे कर मेंरी भूल-भ्रान्ती-ग़ल्तियों को क्षमा करना...।(37)
इस विना पर अगर पैग़म्बर अकरम (साः) से सहायता व मदद कामना करना हराम व शिर्क होता यक़ीनन हज़रत आदम (अः) इस तरह के काम-कार्य अंजाम न देता।
उपर एक हादीस में घोषणा हूआ है किः (जिस समय मन्सूर दवानक़ी हज के लिए भ्रमण किया उस समय मन्सूर दवानक़ी हज़रत रसूल ख़ुदा (साः) के क़ब्रे मुबारक पर तशरीफ़ ले गए और उस स्थान पर मालिक(38) (मालिक सम्प्रदाय के महान नेता) से कहाः ए अबु अब्दुल्लाह, हम सब क़िब्ला कि तरफ़ अपना चेहरा करके ख़ढ़े हो जाए और अल्लाह के दर्बार में प्रार्थना करें इस शर्त के साथ कि हम सब रसूले ख़ुदा (साः) के क़ब्र कि तरफ़ अपना चेहरा करें १
मालिक ने कहाः क्यों पैग़म्बर अकरम (साः) तुमहारे और तुमहारे पिता हज़रत आदम (अः) अल्लाह के दर्बार में माथा निचुं न करे १ उस तरफ़ अपने चेहरा करो और उन को अपना शाफ़ी क़रार दो (विना शक व शुबहा) ख़ुदा बन्दे आलम उस की शफ़अत को तुमहारे लिए क़बूल करेगें, क्योंकि ख़ुदा बन्दे आलम ईर्शाद फ़रमायाः
(....و لو أنهم إذ ظلموا أنفسهم جآءک فاستغفروا الله واستغفر لهم الرسول لوجدو ا الله توابا رحيماً)
जिस समय वह सब अपने नफ़्स पर ज़ुल्म करते थे, तुमहारे निकट यक़ीनन आते थे और अल्लाह से क्षमा प्रार्थना करते थे और पैग़म्बर अकरम (साः) भी उन व्यक्तियों के लिए क्षमा प्रार्थना करते थें, यक़ीनन ख़ुदा तौवा क़बूल करने वाले और मेंहेरवान है।(39)
इस इबारत का माना यह है कि पैग़म्बर अकरम (साः) से साधना कामना करना जाएज़ व शुद्ध है बल्कि मुस्तहब्बे मुअक्क़दा भी है। (दर्मी) अपनी सही ग्रन्थ में (अबुल ज़ुज़ा) से नक़्ल करते हैः कि (जिस समय मदीना शहर के जनसाधारण व्यक्ति ख़रा में गिरप़्तार हो गए और इस गिरफ़्तारी के कारण आएशा के निकट नालीश ले गए,आएशा कहीः तुम सब अपने अपने मन को रसूले ख़ुदा (साः) के क़ब्र कि तरफ़ करो और इस तरह अल्लाह से प्रार्थना करो कि तुमहारे और अल्लाह के दर्मियान कोई चीज़ या पदार्थ उपस्थित न हो और रसुले ख़ुदा (साः) को अल्लाह के निकट अपना शफ़ाअत क़रार दो) वह जनसाधारण व्यक्तियों ने इस तरह किया और चले गए इस के नतीजे में आकाश से पानी बर्सा, और तमाम प्रकार घास सबज़ी में परिवर्तन हो गए, ऊट इस तरह चरण किया कि अधिक से अधिक चर्बी और मोटा हो गए और उस बर्स को (मोटा बर्स ) रख़ा गया।(40)
जो कुछ बयान किया गया है अधिक से अधिक रिवायतें पूस्तकों में उपस्थित है जो पैग़म्बरे अकरम (साः) से साधना मागंना और उन से मदद कामना करना जाएज़ व शुद्ध है कि पैग़म्बरे अकरम (साः) की मृत के बाद का वाक़ीआ और धटनाएं पर प्रमाण कर रहा है. इस विना पर पैग़म्बरे अकरम (साः) से साधता कामना करना जाएज़ था, और जायोज़ है हराम व शिर्क नहीं है. और इसी तरह के उधाहरण इमाम और फरिश्ते व सालेहीन बन्दों से साधना कामना करना शुद्ध है अगर इन व्यक्तियों से मदद कामना करना हराम व ना-जाएज़ हो यहाँ तक कि (यक़ीनन) पैग़म्बरे अकरम (साः) से सहायता व मदद कामना करना ना-जाएज़ है. और अगर जाएज़ हो मात्र पैग़म्बर अकरम (साः) से नहीं बल्कि समस्त प्रकार अल्लाह के सालेह बन्दों से जाएज़ हिसाब किया जाएगा।
कमालः अश्चर्य विषय है किः जो हदीस व रिवायतें जो तुम बयान किए हो अभी तक मैने सुना था और न देख़ा था।
मोहम्मदः इस सूरत में अगर हदीस व रिवायतें कि पूस्तकें पर्या लोचन करोगे तो यक़ीनन अधिक से अधिक रिवायतें व हदीसें प्रदर्शन करोगे कि पैग़म्बरे अकरम (साः) से साधता कामना करना जाएज़ और शुद्ध भी है। जो कुछ तुमहारे लिए बयान किया हूँ. चुकि रात कि शबनम समुद्र के सामने कुछ नहीं है इस समय एक नतीजे में पहुँचेंगे कि सालेह बन्दों के सम्बधं ज़्यादा ज्ञान नहीं रख़ते हो।
कमालः अधिक से अधिक हदीसों कि पूस्तकें पर्या लोचन करने का शौक़ है लेकिन मुझे विभिन्न प्रकार के कार्य इस काम से विरत रख़ा है।
मोहम्मदः तुम हदीसों कि ज्ञान ज़्यादा नहीं रख़ते हो क्या यह कथा सठीक है कि मोहम्मदः इब्ने अब्दुल वहाब जो कुछ शिया सम्प्रदाय के सम्पर्क एक दुशनाम व अपवाद दिया है उन व्यक्तियों को तुम शिर्क़ कह कर अपवाद देते हो१ यह काम सठिक नहीं है अगर मुझे अनुमति देते हो तो मै तुम से कुछ बयान करुँ।
कमालः हसंते हूए अपना होटों को फैला कर कहाः जो कुछ तुमहारे दिल में है बयान करों हम सब आपस में दोस्त है इस लिए इस विषय को तुमहारे सामने रख़ा है ताकि तुमहारे ज्ञानों से मै भी कुछ ज्ञान हासिल करुँ।
मोहम्मदः यक़ीनन तुम क़ुराएश के काफिर जैसे हो क्योकिं वह सब अपना पिताजी-दादाजी के बुत परस्त के बहाना देकर कहते थेः
(...إنا وجدنآ آبائنا على أمة و إنا على آثارهم مقتدون)
हम सब अपने पितायों को बुत के रास्ते पर देख़े है और उन्ही को अनुसनण करते है।(41)
वह लोग बुत परस्ती को अपना सही व सठिक रास्ता जानते थे. जानते हो क्यों ख़ुदा बन्दे आलम ने उन को सर्ज़नीश क़रार दिया था१ इस लिए उन लोगों को सर्ज़नशीश क़रार दिया था कि. पैग़म्बरे अकरम (साः) के वाणी व कथाएं पर कान नहीं दिया करता था ताकि उन के सही कहने और न-कहने पर फायदा हासिल करें और उसी तरह अपने बुत परस्त पर दृढ़ रहता था।
मै गभींर मन से तुम से निवेदन कर रहा हूँ, कि अपने पिताजी के रास्ता को अनुसरण न करों बल्कि सही और सठिक चिन्ता के साथ हक़ीक़त को हासिल करने के लिए दृढ़ रहो और अपनी जीवन को उसि सही राह पर चलाने के लिए कोशिश करो और अधिक से अधिक हदीसों की पूस्तकें पर्यालोचन करने कोशिश करो तो मालूम हो जाए गा. कि अपर धर्मों कि पैग़म्बर अकरम (साः) और अल्लाह के सालेहीन बन्दों से साधना कामना करना, अपर समस्त प्रकार सम्प्रदाय के दृष्ट से सम्पूर्ण पार्थक है क्या इस विषय को क़बूल करते हो१
कामालः प्रकाश्व तौर पर यह सच्चा विषय शिया और अपर मुस्लमानों के साथ है.
अब तुम बताओ कि शिया सम्पर्क जो झूटी मिथ्यांरोप और तोह्मत दिया हूँ क्या करुँ१
मोहम्मदः अल्लाह के दर्रबार में क्षमा प्रार्थना करो, और सब समय सच्ची और सठीक़ विषय को पाने के लिए चेष्टा करो ताकि ख़ुदा बन्दे आलम तुमहे क्षमा करे. और जो कुछ शिया सम्प्रदाय के विश्वाश व अक़ीदा सम्पर्क सुनो साथ ही साथ उस को पर्या लोचन करों ताकि उसकी हक़ीक़त और सही विषय से यक़ीन हासिल हो जाएं, और ताअस्सुब को अपने अदंर से दूर करो, क्योंकि रसूले खुदा (साः) ने ईर्शाद फ़रमाया हैः कि बगै़र प्रमाण व दलील के साथ किसी एक से दुश्मनी पैदा करना उसकी स्थान जहन्नुम है)
कमालः अब मै इस तरह करुँगा मूझे हक़ीक़त से आगाह करने पर धन्वाबाद अदा करता हूँ।