पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारीयान
ईश्वर पवित्रता एवं सच्चाई के सर्वोत्तम स्तर पर है जबकि मनुष्य झूठा एवं अपवित्र है, और यह न्युनतम स्तर बिना किसी बिचौलिया के धुर्तता से निकलकर गरीमा और महिमा के शिखर तक नही पहुँच सकती, इसी कारण कृपालु एवं दयालु ईश्वर ने (बिस्मिल्लाह) को अपने तथा मनुष्य के बीच वासता और वसीला बनाया ताकि मनुष्य इस वाक्य के अर्थ और धारणा से कनेक्ट होकर पृथ्वी पर जीवन व्यतीत करते हुए आकाशीय वस्तुओ की हक़ीक़त को जाने, तथा ऊंचाई के स्तर की ओर क़दम रखे और जमाल व जलाल के सौंदर्य का जलवा देखने का अवसर गैब से उसको प्रदान होता है।
अवग्त रहस्यवादी मानव के अनुसार अक्षर (बा) रहस्यवाद की ओर हरकत का संकेत है, और अक्षर (बा) से अक्षर (स) तक ज्ञान का कोड है, जो कि अंतहीन है और अक्षर (बा) तथा (सा) के मध्यम से (अलिफ) का गिरना इस बात की ओर संकेत है कि इस पथ का साधक अनानियत, अहंकार, स्वमता को एकेश्वरवाद के बीम प्रकाश मे समाप्त न कर ले, तथा प्रेम की आग और मित्र की मुहब्बत मे जलाकर स्वयं को भस्म ना कर ले और अधिसेविता के अतिरिक्त कुच्छ शेष ना रहे ताकि मारेफ़त के रहस्य तक ना पहुँच सके, तथा मीम के प्रकाशीय क्षेत्र मे साधक (मुराद) को रास्ता ना मिले।
जारी