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हज़रत इमाम ह़ुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत का सवाब

हज़रत इमाम ह़ुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत का सवाब

इमाम ह़सैन (अ स) की ज़ियारत के लिए पैदल जाना


من أتاه ماشیاً کتب الله له به کل خطوة حسنة ومحی عنه سیئة ورفع له درجة

 

अली इब्ने मैमून इमाम जाफ़र सादिक़ से रिवायत बयान करते हैं कि आपने फ़रमायाः ऐ अली! इमाम ह़ुसैन (अ.स) के क़ब्र की ज़ियारत को जाते रहना और किसी भी स्तिथि में उसे मत छोड़ना।

मैंने पूछा कि उनकी ज़ियारत का सवाब क्या है?

इमाम (अ स) ने फ़रमायाः इमाम हुसैन (अ.स) की पैदल ज़ियारत करने वालों के लिए अल्लाह हर क़दम पर एक नेकी लिखता, एक गुनाह मिटाता और एक दर्जा (श्रेणी) बुलंद करता है। और जिस समय इंसान ज़ियारत के लिए जाता है अल्लाह तआला दो फ़रिश्तों को उनके साथ रखता है ताकि उनके मुँह से निकली हुई अच्छी बातों को लिखें और बुरी बातों को न लिखें। और जिस समय इंसान ज़ियारत से पलटता है तो वह फ़िरशते उससे अलग होते हुए कहते हैं ऐ अल्लाह के वली! तुम्हारे गुनाह माफ़ (क्षमा) कर दिये गये और तुम अल्लाह, रसूल और उनके अहलेबैत (अ.) की पार्टी में शामिल हो गये। और जहन्नम की आग न तुम्हें देखेगी और न तुम उसे, और अल्लाह कभी भी तुम्हें जहन्नम की आग का मज़ा नहीं चखायेगा।

मुह़म्मद इब्ने मुस्लिम ने इमाम मुह़म्मद बाक़िर (अ.स) से रियावत की हैः


مُرُوا شِیعَتَنَا بِزیَارَةِ قَبْرِ الحُسَیْنِ بْنِ عَلیٍّ علیهما السلام، فَإنَّ إتیَانَهُ مُفْتَرَضٌ عَلَی کُلِّ مُؤْمِنٍ یُقِرُّ لِلحُسَیْنِ بِالإمَامَةِ مِنَ اللّهِ عَزَّ وَجَلَ «»


मेरे शियों को हुसैन इब्ने अली (अ.स) की क़ब्र की ज़ियारत का ह़ुक्म दो क्योंकि इमाम की ज़ियारत हर उस मोमिन पर वाजिब है जिसने अल्लाह की तरफ़ से इमामत को स्वीकार किया है।

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ स) से रिवायत है किः


مَنْ زَارَ قَبْرَ الحُسَیْنِ لِلّهِ وَ فِی اللّهِ، أعْتَقَهُ اللّه مِنَ النَّارِ، وَآمَنَهُ یَوْمَ الفَزَعِ الأکبَرِ، وَلَمْ یَسئَلِ اللّهَ حَاجَةً مِن حَوَائِجِ الدُّنیَا وَالآخِرَةِ إلّاأعطَاهُ «»

 

जो आदमी इमाम हुसैन (अ.स) की क़ब्र की ज़ियारत अल्लाह के लिए करेगा तो अल्लाह उसे जहन्नम की आग से आज़ाद कर देगा। और क़यामत के दिन अमान देगा। और दुनिया व आख़ेरत में जो भी माँगेगा अल्लाह उसे अता (प्रदान) करेगा।

इमाम जाफर सादिक़ (अ स) ने फ़रमायाः


مَنْ لَمْ یَأْتِ قَبْرَ الْحُسَیْنِ حَتَّی یَمُوتَ، کانَ مُنْتَقَصَ الدِّیْنِ، مُنْتَقَصَ الْإیْمانِ، وَإنْ أُدْخِلَ الْجَنَّةَ کانَ دُوْنَ الْمُؤْمِنْیِنَ فی الْجَنَّةِ «»

 

जो आदमी इमाम ह़ुसैन (अ.स) के क़ब्र की ज़ियारत किये बिना मर जाये उसका दीन व ईमान अधूरा है। और अगर जन्नत में चला भी जाये तो उसका दर्जा सभी मोमिनों से नीचे रहेगा।

ह़ज़रत इमाम रज़ा (अ स) ने फ़रमायाः


مَنْ زَارَ قَبْرَ الحُسَیْنِ به شطِّ الفُرَاتِ، کَانَ کَمَنْ زَارَ اللّهَ فَوْقَ عَرْشِهِ «»

 

जिसने कर्बला में इमाम ह़ुसैन (अ स) की क़ब्र की ज़ियारत की वह उस इंसान की तरह़ है जिसने आसमान पर अल्लाह की ज़ियारत की है

अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की ज़िरायत करने वालों के पैरों की धूल अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम रह़मत व कृपा के बहुत ऊंचे दर्जे पर हैं, यहाँ तक कि उनकी ज़ियारत करने वालों के पैरों की धूल इंसान को गुमराही व अज़ाब से अज़ाद करके मूक्ति दिलाती है।

अबुल ह़सन जमालुद्दीन अली इब्ने अब्दुल अज़ीज़े ह़िल्ली जो एक लेखक, अहलेबैत के शाएर थे जो कि ह़िल्ला (इराक के एक शहर का नाम) में ज़िन्दगी गुज़ारते थे 750 हिजरी में दुनिया से चले गए और ह़िल्ला मे आपका मक़बरा बहुत मशहूर है।

जैसा कि क़ाज़ी नूरुल्ला शूसतरी ने किताबुल मजालिस, ज़नूज़ी ने अपनी किताब रियाज़ुलजन्ना मे लिखा है कि वह नासबी (अहलेबैत का दुश्मन उनको बुरा कहने वाला) माँ बाप से पैदा हुआ था उसकी माँ ने मन्नत) मानी थी अगर बेटा पैदा हुआ तो उसे इमाम ह़सैन (अ.स) के ज़ायरों (श्रद्धालुओं) के रास्ते पर लगाए ताकि वह उन्हें लूटके उन्हें क़त्ल करे। जब वह पैदा होकर जवान हुआ उसकी माँ ने मन्नत को पूरा करने लिए उसे ज़ायरों के रास्ते में लगा दिया जिस समय वह कर्बला के नज़दीक मुसय्यब क्षेत्र में पहुँचा ज़ायरों के इंतज़ार में बैठ गया कुछ देर बाद उसकी आँख लग गई वह सो रहा था कि ज़ायरों के क़ाफ़ले गुज़रने के कारण उनके पैरों की धूल उसके जिस्म पर गई उसने सपने में देखा कि क़यामत आ गई है और उसे जहन्नम मे डालने का ह़ुक्म दिया गया लेकिन उस पाक धूल के कारण उसे आग न जला सकी जिसके कारण वह अपनी इस बुरी नियत से डरा और सपने से जागा।
उसके बाद अहलेबैत (अ स) की नौकरी करने लगा और लंबे समय तक कर्बला में इमाम ह़ुसैन (अ स) के ह़रम में सेवा करता रहा और उस समय उसने अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की तारीफ़ करने को अपनी ज़िन्दगी का असली मक़सद बना लिया।[1]



[1] कामेलुज़्ज़ियारात, पेज 121, जामेउल अख़बार, पेज 23, अलफ़सलुल ह़ादी अशर, बिह़ारुल अनवार 98/3, बाब 1, ह़दीस 8. कामेलुज़्ज़ियारातः 145, बाब 57, ह़दीस 7, किताबुल्मज़ारः 56, बाब 26 ह़दीस 2., सवाबुल्आमाल व इक़ावबुल्आमालः 85, मुसतदरेकुल वसाएलः 250/26, ह़दीस 11948.


source : welayat.in
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