पुस्तक का नामः कुमैल की प्रार्थना का वर्णन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
हमने इसके पूर्व के लेख मे इस बात का स्पष्टीकरण किया था कि नास्तिक लाएलाहा इललल्लाह कहने से दुनयावी प्रमाद, अपवित्रता, अकेलेपन तथा भयानक एरेना से निकल कर चेतना और सदभावना, पवित्रता, उन्स तथा सुरक्षा की शरण मे आ जाता है। यदि “ लाएलाहा इललल्लाह के स्थान पर लाएलाहा इल्लर्रहमान ” अथवा कोई और नाम ले, तो नास्तिकता से बाहर नही आता और इसलाम मे प्रवेश नही करता है। लोगो की फ़लाह और उद्धार एंव मोक्ष इसी शुद्ध और पवित्र शब्द के जपन (ज़िक्र करने) मे निर्भर है।और इस लेख मे आप को इस बात का अध्ययन करने को मिलेगा कि यदि प्रत्येत कार्य का आरम्भ और अंत अल्लाह के नाम से हो तो उसका क्या प्रभाव होगा।
प्रत्येक कार्य का आरम्भ व प्रारम्भ इस नाम से अच्छा है तथा उसका अंत भी हो जाता है, प्रोफ़ेसी के नियमो की मज़बूती भी इसी के कारण जो “मुहम्मदुन रसुलुल्लाह” अर्थात मुहम्मद अल्लाह के रसूल है तथा विलायत के दृढ़ आधारो की स्वीकृति इसी के कारण जो “अलीयुन वलीयुल्लाह” अर्थात अली अल्लाह के वली है।
इस नाम की विशेषताओ मे से यह है कि यदि इस से अलिफ अक्षर को हटा दिया जाए, तो लिल्लाह शेष रहता है,
. . . لِلّهِ الأمرُ مِن قَبْلُ وَمِن بَعْدُ . . .
(... लिल्लाहिलअमरो मिन क़बलो व मिन बादो...)[1] यदि प्रथम लाम को हटा दिया जाए, तो लहु शेष बचता है,
. . . لَهُ المُلْكُ وَلَهُ الحَمْدُ . . .
(... लहुल मुल्को व लहुल हम्दो ...)[2] और यदि द्वितीय लाम को हटाया जाए तो होवा शेष रह जाता है जो कि उसकी वजूद का तात्पर्य है,
قُل هُو اللّهُ أَحَدٌ
(क़ुल होवल्लाहो आहद)[3] जिस नाम मे ये सारी विशेषताए मिलती है वह बड़ा नाम है।
ईरानी सूफ़ी एवं कवि फ़ैज़ काशानी ने जो कविता कही उसका सारांश है किः धन्य है वह व्यक्ति जिसने तुझ से कोई इच्छा की, जब कोई प्रेमी तथा आशिक तुझे देखता है तो स्वर्गीय दूत एंव आकाश हसरत करते है, मेरा हृदय एवं बुद्धि तुझ से मिलने की इच्छा करते है, तथा तेरे अलावा किसी के सामने मेरा शीर्ष झुकने के लिए तैयार नही है, मेरा हृदय तुझ से मिलने के लिए इस प्रकार तडप रहा है जिस प्रकार समुद्र के तट पर पडी मच्छली जल के लिए तडपती है, तथा जिस हृदय मे तेरा स्थान है क्या उसको किसी और का बना दू, तुझ से वार्ता करना किस प्रकार त्याग दूँ जबकी फ़ैज़ पर तेरे प्रेम का जुनून है।