इस्लाम चाहता है कि लोगों में क़बूल करने का माद्दा पैदा हो इस लिये ऐब और कमियों के सुनने को तोहफ़े देने की तरह कहा गया है। जो लोग अख़लाक़ी सिफ़ात रखते हैं और लोगों को उनके ऐबों की तरफ़ मुजवज्जे करते हैं, उन्हें बेहतरीन भाईयों से ताबीर किया गया है।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं:
خير اخواني من اهدي الي عيوبي
मेरे बेहतरीन ईमानी भाई वह हैं जो मुझे मेरी कमियों और बुराईयों का तोहफ़ा दें।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम से नक़्ल हुआ है कि आपने अपने कुछ दोस्तों से फ़रमाया एक शख़्स को आपने तौबीख़ की और कहा उससे कह दो: ان الله اذا ارد بعبد خيرا اذا عوتب قبلअल्लाह जब अपने बंदों पर लुत्फ़ व करम करता है तो जब कोई उसे उसकी कमियों की तरफ़ तवज्जो दिलाता है तो वह उसे क़बूल कर लेता है।
इस बहस के आख़िर में इस नुक्ते की तरफ़ भी तवज्जो देनी चाहिये कि इंसानों की हिदायत व रहनुमाई एक ऐसा अमल है जिसकी बराबरी कोई भी अमल नही कर सकता।
سمعت ابا عبد الله (ع) يقول عليك بالنصح لله في خلقه فلن تلقاه بعمل افضل منه
मैंने हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से सुना कि आप फ़रमा रहे थे: जहाँ तक हो सके लोगों की हिदायत व रहनुमाई की कोशिश करते रहो, क्योंकि अल्लाह के नज़दीक इससे ज़्यादा बेहतर कोई अमल नही है।
इस हदीस में जिस ज़रीफ़ व दक़ीक़ नुक्ते की तरफ़ इशारा किया गया है वह यह है कि लोगों की हिदायत और नसीहत हर तरह की शख़्सी और नफ़सानी ग़रज़ से ख़ाली होनी चाहिये ताकि इसकी अहमियत के अलावा लोगों के दिलों पर भी उसका असर हो और वह उन्हे बदल सके।