पुस्तक का नामः कुमैल की प्रार्थना का वर्णन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारियान
यह ईश्वर की व्यापक दया और सार्वजनिक फ़ैज़ है जिसके आशीष (बरकत) से सभी वस्तुए नीसती (तहस) के अंधकार से निकल कर प्रकाशीय अस्तित्व की ओर रवाँ दवाँ (दौड़ रही) है जिसके कारण सब कुछ अपने स्थान पर स्थिर है। तथा रूश्द और विकास एंव ऊंचाई के सभी भौतिक एवं आध्यात्मिक मुद्दो ने क्रमशः अपनी अपनी योग्यता प्रतिस्पर्धा एवं क्षमता के अनुसार बिना किसी लोभ के उनको प्रदान कर दी गई है।
महान पुस्तक अनीसुल लैल[1] मे कहा गया है कि ईश्वर के सार्वजनिक फ़ैज़ की कहानी एवं उदाहरण चमकते हुए सूर्य के समान है जो उदय होकर सभी चीज़ो को प्रकाश पहुँचाने मे बिलकुल भी लालच नही करता तथा अपनी किरणो से लाभार्थी करने मे कण के समान भी परहेज़ नही करता तथा जिस समय इसका प्रकाश प्राणीयो पर पड़ता है तो प्रत्येक वस्तु एंव प्राणी अपनी अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार उस से लाभ उठाती है।
इसी प्रकार सभी बड़ी से बड़ी अथवा छोटी से छोटी गुप्त एंव प्रकट प्राणी सब ईश्वर की दया की छाया मे है, यदी छोटी से छोटी वस्तु जो कि एक बड़ी सूक्ष्मदर्शी के माध्यम से नही देखी जा सकती तब भी वह वस्तु ईश्वर की दया के घेरे से बाहर नही है, तथा वह सभी चीज़े अपनी अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार ईश्वर की दया से लाभ उठाती रहती है, तथा इसी की आलिंग्न मे पालन पोषण प्राप्त करके अपनी भौतिक एंव आध्यात्मिक कमाल तक पहुँचती रहती है।
ब्राह्मांड के एक छोर से दूसरे छोर तक उसके ग़ैब और शहूद, उसके गुप्त एंव प्रकट उद्देश्य और उसके उतार एलं चढ़ाव अपने अस्तित्व के अनुसार ईश्वर के बिनिहायत फ़ैज़ तथा व्यापक दया की छाया मे जीवित है तथा एक सेकंड के लिए भी भगवान की कृपा और फ़ैज़ से अलग नही है, सिर्फ़ येही नही बलकि अलग होने की शक्ति भी नही रखती है यदि अगर अलग हो भी जाऐ तो उनका अस्तित्व इस दुनिया से समाप्त हो जाएगा तथा उसकी पहचान का कोई चिन्ह भी शेष नही रहेगा।
जारी