पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारीयान
इसके पूर्व लेख मे हमने इस बात का स्पष्टीकरण करने का प्रयत्न किया था कि विशाल एंव व्यापक वन और बियाबानो मे बादल को झुरमट सभी स्थानो पर होते है, माद्दे (पदार्थ) के कण टकरा कर तत्पश्चात आपस मे मिल जाते है तथा प्रकंपनपूर्ण (मुतालातिम) समुद्र के समान मंडलाते हुए गैस मे परिवर्तित हो जाते है तथा इधर उधर दौड़ने लगते है, यह गैस और धुऐ का दरिया इस प्रकार चक्कर लगाते है तथा गरजते है, और यह लहरो का गुप्त प्रकंपनपूर्ण तथा गुप्त लहरो का टूटना जो कि उनमे से प्रत्येक बहुत बड़ा स्मारक होता है, उस समुद्र के भीतर एक तूफान खड़ा कर देता है लहरे आपस मे टकराती है तथा फिर मिल जाती है। इस प्रकंपनपूर्ण समुद्र के मध्यम ज्वार भाटा के समान एक चक्र (दायरा) उत्पन्न हुआ जिसके बीच एक उभार था उससे धीरे धीरे प्रकाश निकला यह सर्प की चाल के समान मार्ग जिसका नाम आकाशगंगा (कहकशा) है उसके निकट एक भाग मे सौरमंडल पाया जाता है। तथा इस लेख मे आप को ब्रह्मांड से समबंधित अधिक जानकारी प्राप्त होगी।
ईश्वर की कृपा की छाया तथा उसकी शक्ति के कारण सूर्य एंव सौर मंडल का जन्म कुछ इस प्रकार था कि आकाशगंगा के एक भाग मे एक तूफान उत्पन्न हुआ तथा गैस के तीव्र गति के कारण वह घूमने लगा जिस से वह एक बड़े पहिए के समान बन गया तथा उसके चारो ओर से प्रकाश निकलने लगा।
यह बड़ा चक्र उस आश्चर्यजनक आकाशगंगा मे इस प्रकार घूमता रहा, यहॉ तक कि धीरे धीरे उसकी गैस उसके केंद्र बिन्दु तक पहँच गई, तथा उस समय दायरे की शक्ल बन गई अंतः सूर्य की शक्ल मे प्रकट हो गया।
وَجَعَلَ الْقَمَرَ فيهِنَّ نوراً وَجَعَلَ الشَّمْسَ سِراجاً
वा जाआलल्क़मरा फ़ी हिन्ना नूरव वजाआलश्शमसा सेराजा[1]
चंद्रमा को उनके बीच प्रकाश देने वाला तथा सूर्य को प्रज्वलन दिया बनाया।
उसके उपरांत सूर्य के चारो ओर उपस्थित गैस तथा धूल ने एक कैंडिल की शक्ल का चयन किया तथा इस से अलग हो गए जिसका प्रत्येक भाग एक गढा की शक्ल मे परिवर्तित हो गया, जिन मे से प्रत्येक गढे का मार्ग अलग अलग था तथा वह सब सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाते रहते थे जिन मे से कुछ सूर्य के निकट तथा कुछ सूर्य से दूरी पर थे।
जारी