पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन
लेखकः आयतुल्लाह अनसारीयान
तीसरा चरणः अलक़ (जमा हुआ रक्त)
خَلَقَ الإنْسانَ مِنْ عَلَق
ख़लक़ल इंसाना मिन अलक़िन[1]
उसने इंसान की जमे हुए ख़ून से रचना की है।
शब्दकोष मे अलक़ का अर्थ एक कीड़े है जो गर्भाशय से चिपका रहता है तथा रक्त मे एक विशेष प्रकार के जोक के समान किटाणुओ को भी अलक़ कहा जाता है आज विज्ञान ने प्रगति की इस्प्रमैटोज़ाइड[2] spermatozoide को सूक्ष्मदर्शि (माइक्रोस्कोप) maicroscope के माध्यम से देखा तो उसमे बहुत सी ऐसी कोशिकाए देखी गई जो कि रक्त मे दौड़ते है तथा जिस समय यह कीड़े गर्भाश्य मे जाते है तो वह जोक के समान कीड़ा गर्भाश्य से चिमट जाता है।
इस्प्रमैटोज़ाइड spermatozoide लगभग चार सेंटी मीटर वर्गाकार होता है जिसके एक सेंटीमीटर मे 100 से 200 मिलयन (100,000,000 से 200,000,000) तक कीड़े होते है और यह आश्चर्यजनक कीड़े स्त्री के ओवल नामक मूल की ओर दौड़ते है।
एक किशोरी के गर्भाश्य मे लगभग तीन लाख कच्चे अंडे होते है परन्तु इन मे से लगभग चार अंडे पक्के होते है।
जिस समय स्त्री को मासिक धर्म आता है उस समय वह अंडे अपनी थैली से निकल जाते है और अंडो की थैली तथा बच्चेदानी के बीच जो नलि होती है उसमे दौड़ते हुए बच्चेदानी तक पहुँचते है तथा पुरुष के शुक्राणु को स्वीकार करने के लिए तैयार हो जाते है।