पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के अहलेबैत में से हर एक अपने समय में इल्म और कमाल व परिपूर्णता की निगाह से बेमिसाल था। वह अपने समय के लोगों की हिदायत, हिदायत, भलाई और कमाल व परिपूर्णता की ओर बुलाते थे। आज भी उन्ही महान हस्तियों में से एक का शुभ जन्म दिवस है जिसने अपनी ज़िंदगी के सत्रह साल, इलाही हिदायत में गुज़ारे और इस दौरान इस्लामी शिक्षाओं को आम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। १९५ हिजरी क़मरी बराबर ८१० ईसवी को आज ही के दिन अल्लाह तआला ने पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा के एक नवासे इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को एक बेटा दिया। इस बेटे की विलादत से इमाम रेज़ा अलैहिस्सलाम को बहुत ख़ुशी हुई जिसने अपने पूर्वजों की ही तरह लोगों की सही हिदायत की और उन्हें इस्लामी शिक्षाओं से अवगत करवाते हुए कमाल व परिपूर्णता का रास्ता दिखाया। इमाम रेज़ा अलैहिस्सलाम के इस बेटे का नाम मुहम्मद रखा गया और उनकी उपाधि जवाद थी। जवाद का मतलब होता है बहुत ज़्यादा दान-दक्षिणा करने वाला। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने इस दुनिया में केवल २५ साल ही गुज़ारे लेकिन इसी कम समय में उनके इल्म की शोहरत और उनका आध्यात्मिक आकर्षण ऐसा था जिसने विभिन्न मज़हबों के ज्ञानियों और विद्वानों को उनकी प्रशंसा के लिए मजबूर कर दिया था।
इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की प्रमुख विशेषता यह थी कि उन्होंने कमसिनी में ही इमामत की ज़िम्मेदारी संभाली थी। बचपन में ही वह इल्म के उच्च चरण पर थे और नैतिक विशेषताओं में अपने समय में सबसे आगे थे। वह सख्त से सख्त बातों को बड़ी ही आसानी से समझाया करते थे। पाक क़ुरआन के मशहूर मुफ़स्सिर (व्याख्याकार) अल्लामा तबरसी अपनी किताब “एलामुल वरा” में लिखते हैं कि इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम बचपन में ही नैतिक गुणों, इल्म और गहनता में इस चरण तक पहुंच गए थे कि उनके समय के बड़े-बड़े आलिम, उनके मुक़ाबले की क्षमता नहीं रखते थे। अली बिन अस्बात कहते हैं कि एक दिन मैंने इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को बहुत ही ध्यान से देखा ताकि बाद में उनकी विशेषताओं को मिस्र में रहने वाले अपने दोस्त को बताऊं। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को देखने के बाद मैंने मन ही मन सोचा कि यह कैसे संभव है कि इतनी कमसिनी में वह किस तरह जटिल सवालों के जवाब दे देते हैं और वैचारिक गुत्थियों को बड़ी आसानी से हल करते हैं। अभी मैं यह सोच ही रहा था कि इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम मेरे क़रीब आए और बैठकर कहने लगे। ऐ अली बिन अस्बात महान अल्लाह, जनता की हिदायत की इलाही ज़िम्मेदारी संभालने वालों के लिए उसी तरह से तर्क पेश करता है जिस तरह पैग़म्बरों की पैग़म्बरी के बारे में उसने तर्क पेश किये हैं। इसके बाद उन्होंने सूरए मरियम की १२वीं आयत पढ़ी जिसमें कमसिनी में हज़रत यहया की गहनता को बयान किया गया है। इस आयत में अल्लाह तआला कहता है कि हां संभव है कि अल्लाह तआला, किसी को बचपन में ही गहनता प्रदान करे और यह भी संभव है कि उसे चालीस साल की उम्र में दे।
इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का इल्म इतना व्यापक और विस्तृत था कि विभिन्न मज़हबों के गुरू और विद्वान उनके अथाह इल्म पर आश्चर्य किया करते थे। कभी-कभी लोग इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की परीक्षा के मक़सद से उनसे कठिन और जटिल विषयों के बारे में सवाल पूछा करते थे और इमाम बड़ी ही धैर्यता तथा धीरज के साथ उनके सारे सवालों के जवाब विस्तार से देते थे। इतिहास में मिलता है कि एक बार हज की यात्रा पर जाने वाले ८० सीनियर रिलीजियस लीडरों का एक दल पाक शहर मदीना में इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की सेवा में हाज़िर हुआ। इस दल में विभिन्न इलाक़ों के सीनियर रिलीजियस लीडर थे। इन सीनियर रिलीजियस लीडरों ने इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम से विभिन्न तरह के साइंसी सवाल पूछे और उनके संतोषजनक जवाब पाकर वह बहुत ही अचंभित हुए।
इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का एक कथन है कि तीन विशेषताएं इंसान को अल्लाह तआला से क़रीब करती हैं। पहले यह कि गुनाहों का बहुत ज़्यादा तौबा करना, दूसरे विनम्र रहना और लोगों के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करना तथा तीसरे बहुत ज़्यादा दान-दक्षिणा करना। लोगों के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करना और उनकी ज़रूरतों को पूरा करना, पैग़म्बरे इस्लाम के पाक अहलेबैत की विशेषता रही है। वह लोग दूसरे लोगों को भी इस तरह के कामों के लिए प्रेरित किया करते थे।
एक बार एक आदमी ने इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम को लेटर लिखकर उनसे अपने लिए अल्लाह तआला से दुआ करने की मांग की। अपने लेटर में उस आदमी ने इमाम से इस बात के लिए रहनुमाई चाही थी कि वह अपने पिता के साथ किस तरह का व्यवहार करे जो अशिष्ट तथा पैग़म्बरे इस्लाम के अहलेबैत का विरोधी था। इस ख़त के जवाब में इमाम ने लिखा कि मैं तुम्हारे लिए दुआ करता हूं और तुमको सलाह देता हूं कि तुम अपने पिता के साथ स्नेहपूर्ण व्यवहार करो तथा उनके दुखी होने का कारण न बनो। ख़त के जवाब में इमाम ने उसे ढांरस बंधाते हुए आगे लिखा था कि शिष्ट व्यवहार करो क्योंकि हर कठिनाई और मुश्किल के बाद आसानी आती है और अल्लाह तआला से ख़ौफ़ रखने वालों को कामयाबी ज़रूर मिलती है। उस आदमी ने इमाम की सलाह को माना। कुछ समय के बाद अपने बेटे के स्नेहपूर्ण व्यवहार के कारण उसके पिता का व्यवहार उसके प्रति बदल गया और इमाम की सलाह के कारण वह पैग़म्बरे इस्लाम के पाक अहलेबैत की लिस्ट में आ गया।
इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के अनुसार लोगों की सेवा, इंसान पर अल्लाह तआला की अनुकंपाओं का कारण बनती है। इस संबन्ध में यदि कोई आदमी काहेली से काम ले तो संभव है कि वह ईश्वरी अनुकंपाओं से वंचित हो जाए। यही कारण है कि इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम कहते हैं कि कोई भी आदमी अल्लाह तआला की बहुत ज़्यादा विभूतियों और अनुकंपाओं से लाभान्वित नहीं होता मगर यह कि उस आदमी से लोगों की ज़रूरतें बढ़ जाती हैं। हर वह आदमी जो इन ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कोशिश न करे और इस रास्ते में आने वाली कठिनाइयों को सहन न करे तो उसने इलाही अनुकंपाओं को ख़ुद से दूर किया है।
पैग़म्बरे इस्लाम स.अ. के पाक अहलेबैत के एक साथी, जो ईरान में रहते थे, इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के बारे में कहते हैं कि हज करने के मक़सद से मैं मक्का गया हुआ था। वहां पर मैं अपनी समस्या बताने तथा उनके व्यक्तित्व से फ़ायदा उठाने के मक़सद से इमाम की सेवा में हाज़िर हुआ। मैंने इमाम से कहा कि सरकार ने हमपर बहुत ज़्यादा कर लगा दिया है जिसके अदा करने की क्षमता मुझमे नहीं है। आपसे अनुरोध करता हूं कि आप सीस्तान प्रांत के गवर्नर को ख़त लिखकर उससे कहें कि वह लोगों के साथ विनम्रता के साथ पेश आए। इसके जवाब में इमाम ने कहा कि मैं उसको नहीं पहचानता। मैंने कहा कि वह तो आपके चाहने वालों में से हैं इसलिए मुझको पूरा यक़ीन है कि आपकी सिफ़ारिश ज़रूर ही लाभदायक साबित होगी। इसपर इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने उस गवर्नर को इस तरह ख़त लिखा। बिस्मिल्ला हिरर्रहमा निर्ररहीम। तुमपर और अल्लाह तआला के अच्छे बंदों पर भी मेरा सलाम हो। ऐ सीस्तान के गवर्नर, हुकूमत अल्लाह तआला की एक अमानत है जिसे उसने तेरे अधिकार में दे दिया है ताकि तुम उसके बंदों की सेवा कर सको। हुकूमत के माध्यम से तुम अपने दीनी भाईयों की सहायता करो। तुम्हारे बाद जो एक चीज़ बाक़ी रह जाएगी वह, वह अच्छाईयां हैं जो तुमने लोगों के साथ की हैं। होशियार रहो कि क़यामत के दिन अल्लाह तआला तुम्हारे सारे कामों का लेखाजोखा पूछेगा और तुम्हारा कोई भी काम उससे छिपा हुआ नहीं रहेगा चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो।
आदमी ने कहा कि मैं इमाम का ख़त लेकर अपने वतन सीस्तान गया। इमाम के ख़त की सूचना पहले ही सीस्तान के गवर्नर को मिल चुकी थी। क्योंकि वह इमाम जवाद के चाहने वालों में से था इसलिए इमाम का ख़त लेने के लिए वह मेरे स्वागत को आया। इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम का ख़त पढ़ने के बाद उसने मेरे कामों की जांच की और उसके बाद से वह न केवल मेरे साथ बल्कि सभी लोगों के साथ न्यायपूर्ण व्यवहार करने लगा।
इमाम जवाद या इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम, कठिनाइयों में फंसे हुए लोगों की मुश्किलें दूर करते थे। वह इतना ज़्यादा दान-दक्षिणा किया करते थे कि उन्हें “जवाद” की उपाधि दी गई जिसका मतलब होता है बहुत ज़्यादा दानी। लोगों के बीच इमाम की लोकप्रियता इतनी ज़्यादा थी कि जब भी इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम का नाम लिया जाता था, तो दिल उनसे मुलाक़ात करने के लिए बेचैन हो जाते थे। इमाम तक़ी अलैहिस्सलाम अपने समय में, ख़ास कर जब वह मदीना शहर में थे, लोगों की स्थिति पर विशेष निगाह रखते थे। इमाम द्वारा लोगों की समस्याओं के समाधान के संदर्भ में मुहम्मद बिन सहले क़ुम्मी कहते हैं कि एक बार की बात है मैं मक्के में रह रहा था, उस समय मेरी आर्थिक स्थिति बहुत ख़राब हो गई, ऐसे में मैंने मदीने जाकर इमाम से मुलाक़ात करने का फ़ैसला लिया ताकि वह मेरी सहायता करें। मेरी आर्थिक स्थिति इतनी ख़राब थी कि मैं अपने लिए कपड़े भी नहीं ख़रीद सकता था। मैंने सोचा कि इमाम से कपड़े मांगूं ताकि मेरी ज़रूरत पूरी हो जाए और उनके कपड़ों को मैं उपहार के रूप में अपने पास रखूं जब मैं इमाम की सेवा में हाज़िर हुआ तो शर्मिंदगी की वजह से मैं इमाम से अपनी बात नहीं कह सका मैंने सोचा कि अपनी बात को ख़त के माध्यम से इमाम तक पहुंचाऊं, इसी बीच मेरे मन में विचार आया कि मैं अपने ख़त को फाड़ दूं और उसे इमाम को न दूं, इस तरह मैं ख़ाली हाथ वापस मक्के की यात्रा पर निकल पड़ा। मैं अभी रास्ते में ही था कि किसी आदमी ने मुझको पुकारा, वह इमाम का सेवक था जिसके हाथ में एक थैला था वह मेरे क़रीब आया और उसने कहा कि यह थैला तुम्हारे लिए है जिसे इमाम ने तुम्हे भेजा है, यह सुनकर मुझको बहुत आश्चर्य हुआ। जब मैंने उस थैले को खोला तो उसमें वैसे ही कपड़े थे जिनकी मुझको ज़रूरत थी। उसे देखकर मैंने अल्लाह तआला का शुक्रिया अदा किया और पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पाक अहलेबैत पर सलाम भेजा। मैं ख़ुद से कहने लगा कि वास्तव में स्पष्ट तथा अस्पष्ट दोनो तरह का इल्म पैग़म्बरे इस्लाम के पाक अहलेबैत के पास है।
इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के कथन तथा उनसे संबन्धित एतिहासिक प्रमाण और इसी तरह से उनके मुक़ाबले में अब्बासी हुकूमत की प्रतिक्रियाएं, इस सच्चाई को बयान करती हैं कि वह अब्बासी हुकूमत की ग़लत पॉलीसी के विरोधी थे। हालांकि सरकार विरोधी गतिविधयां गोपनीय ढंग से ही की जाती थीं। बहुत ही कम उम्र में इमाम को शहीद करवाना, इमाम के प्रति अब्बासी शासन के द्वेष और दुश्मनी को दर्शाता है और साथ ही यह विषय लोगों के बीच इमाम की लोकप्रियता को भी बयान करता है।
source : abna.ir