पुस्तक का नामः दुआए कुमैल का वर्णन
लेखकः आयतुल्ला हुसैन अंसारीयान
इसके पूर्व के लेख मे यह बात स्पष्ट की गई कि जब जिब्राईल ने उसके दर्शन करने की इच्छा प्रकट की तो उनसे लौहे महफ़ूज़ मे उस व्यक्ति के नाम को खोजने का आदेश दिया जिसके बाद जिब्राईल ने उसके दर्शन करने को त्याग दिया। इस लेख मे आप इस बात का अध्यन करेंगे कि जिब्राईल को दर्शन करने को त्यागना कोई लाभ नही पहुचा पाया बल्कि उन्हे जमीन पर आना पड़ा ....।
जिब्राईल उसको सलाम करके कहते हैः हे तपस्वी स्वयं को कष्ट मे ना डालो क्योकि लौहे महफ़ूज़ मे तेरा नाम बदबख्तो की सूची मे पंजीकृत है।
जब उस तपस्वी ने यह सुना तो भोर की वायु के कारण वह पुष्प के समान खिल उठा (अर्थात प्रसन्न हुआ), हंसा और बुलबुल की मधुर आवाज़ के समान ज़बान से कहा “अलहमदोलिल्लाह”।
जिब्राईल ने उस समय उस से प्रश्न कियाः हे वृद्ध व्यक्ति! तुझे तो यह दर्दनाक ग़म की खबर सुनकर “इन्नालिल्लाह” कहना चाहिए था और तू है कि “अलहमदोलिल्लाह” कहता है?!! तेरे लिए तो यह दुख का मक़ाम था तू इस पर खुशी और प्रसन्नता प्रकट कर रहा है?!!
यह सुनकर उस तपस्वी ने उत्तर दियाः इन बातो को छोड़ो, मै बंदा और ग़ुलाम हूँ और वह आक़ा व मोला है, ग़ुलाम का मालिक की बातो से क्या तुलना, उसके विरूद्ध किसी की नही चलती, वह जो करना चाहता है कर सकता है, संसार की बागडोर उसी के हाथो मे है, हमे जिस स्थान पर रखना चाहे रख सकता है, सब कुच्छ उसी की मर्ज़ी के आधीन है जो चाहे करे, “अलहमदोलिल्लाह” यदि मै स्वर्ग मे जाने योग्य नही हूँ तो कोई बात नही मै नरक का ईंधन बनने के काम तो आ सकता हूँ।
जारी