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हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत

हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत

आज पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के पौत्र हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत का दुःखद अवसर है।

हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम के विभूतिपूर्ण जीवन में दो चीज़ें सदैव दूसरे विषयों के साथ सर्वोपरि रही हैं कि उनमें से हर एक दूसरे की पूरक थीं। एक अपने समय के अत्याचार व अत्याचारी से संघर्ष और दूसरे ईश्वरीय धर्म इस्लाम की विशुद्ध शिक्षाओं को बयान करना तथा उसके वास्तविक चेहरे को स्पष्ट करना। आज उस ईश्वरीय प्रतिनिधि की शहादत का दुःखद अवसर है जो सच्चाई व वास्तविकता का ध्वजावाहक, आकाश में चमकते तारे की भांति मार्गदर्शक और मुक्ति व कल्याण के मार्ग की खोज करने वालों का पथप्रदर्शक है। २५ शव्वाल १४८ हिजरी क़मरी को इस्लामी जगत पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के परिवार की एक महान हस्ती की शहादत के शोक में डूब गया। दूसरे अब्बासी शासक मंसूर दवानेक़ी के एक षडयंत्र में ६५ वर्ष की आयु में आज ही के दिन हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम शहीद हो गये। हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अपनी ३४ वर्षीय इमामत अर्थात लोगों के मार्गदर्शन के काल में एक ओर अत्याचार को नकार दिया और दूसरी ओर मनुष्य में सोच- विचार तथा चिंतन-मनन की सांस्कृतिक क्रांति उत्पन्न करके ईश्वरीय धर्म इस्लाम की अनउदाहरणीय शिक्षाओं व वास्तविकताओं को बयान किया। इस दुःखद अवसर पर हम आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना पेश करने के साथ हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के पावन जीवन के कुछ आयामों की चर्चा कर रहे हैं। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के जीवन काल की राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थिति इस प्रकार थी कि उससे हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की सांस्कृतिक एवं राजनीतिक गतिविधियों के लिए उपयुक्त अवसर उपलब्ध हो गया था। बनी उमय्या और बनी अब्बास के बीच विवाद से आपको अवसर मिला कि कुछ समय तक राजनीतिक दबावों से दूर रहकर विशुद्ध इस्लामी शिक्षाओं को बयान करें। आपका यह कार्य इस्लामी जगत के कोने से कोने से न्याय प्रेमियों के पवित्र नगर मदीना में एकत्रित होने का कारण बना और जिस तरह फूलों के पास भंवरे एकत्रित हो जाते हैं उसी तरह सत्य व ज्ञान के प्यासे अपनी प्यास बुझाने के लिए आपके पास एकत्रित हो गये। इस प्रकार से कि एकत्रित होने वालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी यहां तक कि उन लोगों की संख्या लगभग चार हज़ार तक पहुंच गयी। मार्गदर्शन व प्रचार करने में हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की शैली ने उस समय के समाज पर गहरा प्रभाव डाला। यद्यपि आपने अपने समय के अत्याचारी शासकों के विरुद्ध सशस्त्र आंदोलन नहीं किया परंतु क़लम, ज्ञान एवं बयान के हथियार से अत्याचार का डटकर मुक़ाबला किया। हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की प्रचार एवं पथप्रदर्शन की सक्रियतायें व गतिविधियां इस प्रकार थीं कि समय के शासक मंसूर ने एक वक्तव्य में इसे स्वीकार्य किया। वह कहता है" जाफ़र बिन मोहम्मद यद्यपि तलवार द्वारा संघर्ष नहीं कर रहे हैं परंतु उनकी गतिविधियां मेरे निकट आंदोलन से अधिक महत्वपूर्ण एवं कठिन हैं"यह एक वास्तविकता है कि शीया धर्म हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के अनथक व अनवरत प्रयासों से विस्तृत हुआ और इसी कारण यह "मज़हबे जाफ़री" के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह प्रसिद्धि ईश्वरीय धर्म की विशुद्ध शिक्षाओं के प्रचार- प्रसार में आपकी भूमिका की सूचिक है जो उस समय तक लिखित रूप में संकलित नहीं थी। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम आर्थिक, सांस्कृतिक, नैतिकता, प्रशिक्षण, शिष्टाचार, दर्शन और तर्कशास्त्र जैसे विभिन्न विषयों के बारे में बहस करते और इस महत्वपूर्ण कार्य को उन्होंने सर्वोत्तम शैली में पूरा किया। मिस्र के समकालीन सुन्नी विद्वान अबु ज़ोहरा हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शैक्षिक व सांस्कृतिक व्यक्तित्व के बारे में बड़ी रोचक बात कहते हैं"इस्लाम धर्म के विद्वान व धर्मगुरू अलग- अलग आस्था, दृष्टिकोण एवं मत होने के बावजूद इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के ज्ञान के बारे में समान दृष्टिकोण रखते हैं"इतिहासकारों ने भी अपनी ऐतेहासिक रचनाओं में हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की विस्तृत शैक्षिक महानता को स्वीकार किया है। प्रसिद्ध इतिहासकार इब्ने ख़लिकान इस संबंध में लिखता है" इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के पवित्र परिजनों में से थे। सदैव सच बोलने के कारण वह सादिक़ अर्थात सच बोलने वाले की उपाधि से प्रसिद्ध हो गये और उनका सदगुण व ज्ञान इससे कहीं अधिक प्रसिद्ध है कि उसे बयान करने की आवश्यकता हो"

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल में नास्तिकता पर आधारित मत भी अनेकेश्वरवादी मत के लोगों की भान्ति विनाशकारी एवं लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने वाली कार्यवाहियों में संलग्न थे और समाज के विभिन्न वर्गों विशेष कर युवा पीढ़ी के लिए वैचारिक ख़तरा बने हुए थे। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम इस मत से संबंधित लोगों से बहस व शास्त्रार्थ करते थे और उन लोगों को यद्यपि वे इस्लाम से द्वेष व शत्रुता रखते थे, अपने दृढ़ तर्कों के समक्ष नतमस्तक होने पर बाध्य कर दिया करते थे। समाज के लोगों में जागृति उत्पन्न करने तथा उनकी आस्था व सोचों के आधारों की मज़बूती में इन बहसों व शास्त्रार्थों का परिणाम बहुत प्रभावी था। इन बहसों के माध्यम से वह सभी संदेह समाप्त व दूर हो जाते थे जो अनेकेश्वरवादी लोगों में उत्पन्न कर देते थे। इब्ने मुक़अआ, अबु शाकिर दैसानी, इब्ने अबिल औजा और अब्दुल मलिक बसरी अनेकेश्वरवादी मत के लोग थे जो महान ईश्वर के अस्तित्व और नबुअअत अर्थात पैग़म्बरी एवं प्रलय के दिन का इंकार करते थे परंतु जब भी इनमें से कोई व्यक्ति इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से बहस करता था तो वह आपके अथाह ज्ञान एवं तर्कों का लोहा मानता था। इब्ने अबिल औजा इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम को समझदार, पुरुषार्थी और धैर्यवान समझता था और वह स्वीकार करता था कि इमाम सादिक़ अलैहिस्लाम थोड़ी सी बात- चीत के बाद ही हमारे तर्कों को रद्द कर देते हैं। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का ज्ञान/ धर्म शास्त्र, और धर्म से संबंधित दूसरे ज्ञान, नैतिकता एवं पवित्र क़ुरआन की व्याख्या तक सीमित नहीं था। इसके अतिरिक्त आप भौतिक शास्त्र, रसायन शास्त्र, नक्षत्र व खगोल शास्त्र और चिकित्सा आदि की पूर्ण जानकारी रखते थे। इस क्षेत्र में आपसे संबंधित पुस्तकों व रचनाओं का अस्तित्व इसका स्पष्ट प्रमाण है। एक चीज़, जो अब्बासी शासकों विशेषकर मंसूर के इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम पर पैनी दृष्टि रखने का कारण बनी, वह आप के ज्ञान की ख्याति और लोगों के विभिन्न गुटों द्वारा आपके ज्ञान एवं विचार का बड़े पैमाने पर स्वागत था। यही आपके ज्ञान का प्रकाश एवं लोगों का आपकी ओर रुझान अब्बासी शासकों की ईर्ष्या व शत्रुता का कारण बना। इस्लामी सरकार चलाने के संदर्भ में ईश्वरीय धर्म इस्लाम की शिक्षाएं और इन शिक्षाओं का आपके सदाचरण में प्रकट होना हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से अत्याचारी अब्बासी शासकों की शत्रुता एवं क्रोध का एक अन्य कारण था। अब्बासी ख़लीफ़ा मंसूर ने हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम को शहीद करके अपने क्रोध की ज्वाला को शांत किया परंतु इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का प्रकाश न केवल आपकी शहादत से बुझा नहीं वह उसका प्रकाश और तेज़ हो गया। हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के पवित्र परिजनों के अनुयाइयों की आस्थाओं व सोचों के आधारों को मज़बूत करने के अतिरिक्त नैतिक एवं प्रशिक्षा के मामलों पर भी विशेष ध्यान दिया। आप अपने अनुयाइयों से अपनी अपेक्षा को अपने एक शिष्य से इस प्रकार बयान करते हैं" जो भी मेरा अनुयाई हो, मेरे कथनों को सुने उस तक मेरा सलाम पहुंचा दो और उससे कह दो कि मैं तुमसे ईश्वर से डरने, धर्म में सदाचारिता, ईश्वर के मार्ग में प्रयास करने, सच बोलने, थाती व अमानतदारी और पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करने की अनुशंसा करता हूं क्योंकि जब तुममें से कोई हमारी अनुशंसाओं का पालन करे और लोग यह कहें कि वह जाफ़री धर्म का अनयाई है तो मैं तुम्हारे कार्यों से प्रसन्न हूंगा परंतु यदि कोई इसके विपरीत कार्य करे तो मैं तुम्हारे कार्यों से क्षुब्ध व दुःखी हूंगा"दूसरों की सहायता व परोपकार भी वह चीज़ है जिसकी अनुशंसा हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम अपने अनुयाइयों से करते हैं। यह वह कार्य है जो लोगों के हृदयों के एक दूसरे से निकट व मज़बूत होने का कारण बनता है। आपने अपने अनुयाइयों से लोगों की सेवा करने के बारे में कहा" जो अपने धार्मिक भाई की आवश्यकता की पूर्ति के लिए क़दम उठाये व प्रयास करे वह सफा और मरवा के बीच चलने वाले व्यक्ति की भांति है। अपने धार्मिक भाई की आवश्यकता की पूर्ति करने वाला उस व्यक्ति की भांति है जो बद्र और ओहद नामक युद्धक में ईश्वर के मार्ग में युद्धें करके अपने ख़ून में जाता है। ईश्वर ने किसी भी राष्ट्र व समुदाय पर प्रकोप नहीं किया किन्तु यह कि वह आवश्यकता रखने वाले अपने भाइयों की आवश्यकता की आपूर्ति में लापरवाही व उपेक्षा से काम ले"इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की अपने अनुयाइयों से एक अनुशंसा पवित्र क़ुरआन से प्रेम व लगाव है। पवित्र क़ुरआन मार्गदर्शक पुस्तक के रूप में लोक-परलोक में मनुष्य के कल्याण के लिए व्यापक कार्यक्रम लिये हुए है। इसी कारण हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की अपने अनुयाइयों से एक अपेक्षा यह है कि वे ईश्वरीय शिक्षाओं के अथाह व समाप्त न होने वाले स्रोत और महान ईश्वर तथा मनुष्य के मध्य वचनपत्र पर अधिक ध्यान दें। इसी कारण आप कहते हैं" कुरआन ईश्वर और उसकी रचना के मध्य एक वचनपत्र है मुसलमानों के लिए शोभनीय है कि वे इस वचनपत्र को देंखे और प्रतिदिन कम से कम उसकी पचास आयतों की तिलावत करें"निश्चित रूप से हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम का तात्पर्य केवल पवित्र क़ुरआन को पढ़ना नहीं है बल्कि मनुष्य को चाहिये कि पवित्र क़ुरआन को पढ़ने के साथ- साथ वह उसकी आयतों में चिंतन- मनन करे तथा उन पर कार्यबद्ध हो। जैसाकि आप एक अन्य स्थान पर कहते हैं" बेशक क़ुरआन मार्गदर्शन का प्रकाश और रात के अंधेरों का दीपक है तो कुशाग्र बुद्धि व्यक्ति को चाहिये कि वह उसमें विचार करे और उसके प्रकाश से लाभान्वित होने के लिए अच्छी तरह सोचे। क्योंकि चिंतन- मनन मनुष्य के हृदय का जीवन है"हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम पवित्र क़ुरआन की तिलावत करने की विभूतियों व लाभों के बारे में भी कहते हैं" जिस घर में क़ुरआन की तिलावत की जाती है और उसमें महान ईश्वर को याद किया जाता है उसकी विभूतियां बहुत अधिक हैं उस घर में फरिश्ते आते हैं और उससे शैतान दूर होते हैं। यह घर आसमान वालों को उस तरह चमकता दिखाई देता है जैसाकि ज़मीन वालों के लिए तारे प्रकाशमान होते हैं"हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर एक बार फिर आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करते हैं और इस प्रार्थना के साथ आज के कार्यक्रम को यहीं पर समाप्त करते हैं कि सर्वसमर्थ व महान ईश्वर हम सबको पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों का सच्चा अनुयाई बनने की शक्ति व सामर्थ्य प्रदान करे।


source : hindi.irib.ir
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