आज की चर्चा में हम आपको ईश्वरीय संदेशों के अन्य आयामों से परिचित करवाएंगे।
पवित्र क़ुरआन, ईश्वर पर ईमान रखने वालों को यह शुभ सूचना देता है कि उसने तुम लोगों पर रोज़ा अनिवार्य किया ताकि उसके द्वारा तुम लोग, पवित्रता तक पहुंच सको क्योंकि वास्तव में यदि देखा जाए तो रोज़े की भांति कोई भी उपासना मनुष्य को परिपूर्णता के उच्च चरणों तक पहुंचाने में सफल नहीं होती।
इस्लामी इतिहास में आया है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) के काल में एक महिला ने अपनी दासी को गाली दी। कुछ देर के बाद उसकी दासी बुढ़िया के लिए खाना लाई। खाना देखकर बुढ़िया ने कहा कि मैं तो रोज़े से हूं। जब यह पूरी घटना पैग़म्बरे इस्लाम (स) कों बताई गई तो आपने कहा कि यह कैसा रोज़ा है जिसके दौरान वह गाली भी देती है?
इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि रोज़ा रखने का अर्थ केवल यह नहीं है कि रोज़ा रखने वाला खाने-पीने से पूरी तरह से परहेज़ करे बल्कि ईश्वर ने रोज़े को हर प्रकार की बुराई से दूर रहने का साधन बनाया है।
रोज़े के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैं- पापों के बारे में विचार करने से मन का रोज़ा, खाने-पीने की चीज़ों से पेट के रोज़े से अधिक श्रेष्ठ होता है। शरीर का रोज़ा, स्वेच्छा से खाने-पीने से दूर रहना है जबकि मन का रोज़ा, समस्त इन्द्रियों को पाप से बचाता है।
इस प्रकार की हदीसों और महापुरूषों के कथनों से यह समझ में आता है कि वास्तविक रोज़ा, ईश्वर की पहचान प्राप्त करना और पापों से दूर रहना है। रोज़े से मन व आत्मा की शक्ति में वृद्धि होती है।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन हैः- आध्यात्मिक लोगों का मन, ईश्वर से भय व पवित्रता का स्रोत है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है कि ईश्वर से भय, धर्म का फल और विश्वास का चिन्ह है। इस प्रकार से यदि कोई यह जानना चाहता है कि उसका रोज़ा सही है और उसे ईश्वर ने स्वीकार किया है या नहीं तो उसे अपने मन की भावनाओं पर ध्यान देना चाहिए।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम ने रोज़ेदार के मन में विश्वास और ईश्वर से भय व पवित्रता उत्पन्न होने के बारे में इस प्रकार कहा है- दास उसी समय ईश्वर से भय रखने वाला होगा जब उस वस्तु को ईश्वर के मार्ग में त्याग दे जिसके लिए उसने अत्यधिक परिश्रम किया हो और जिसे बचाए रखने के लिए बहुत परिश्रम किया जाए। ईश्वर से वास्तविक रूप में भय रखने वाला वही है जो यदि किसी मामले में संदेशग्रस्त होता है तो उसमें वह धर्म के पक्ष को प्राथमिकता देता है।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम ने अपने एक साथी हज़रत अबूज़र से कहाः
हे अबूज़र, विश्वास रखने वालों में से वही है जो अपना हिसाब, दो भागीदारियों के मध्य होने वाले हिसाब से अधिक कड़ाई से ले और उसे यह पता हो कि उसका आहार और उसके वस्त्र कहां से प्राप्त होता है वैध रूप में या अवैध ढंग से।(एरिब डाट आई आर के धन्यवाद के साथ)
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