यज़ीद के दरबार में जब हज़रत ज़ैनब (स) की निगाह अपने भाई हुसैन के ख़ून से रंगे सर पर पड़ी तो उन्होंने दुख भरी आवाज़ में जो दिलों की दहला रही थी पुकाराः
«يا حُسَيْناهُ! يا حَبيبَ رَسُولِ اللهِ! يَابْنَ مَكَّةَ وَ مِنى، يَابْنَ فاطِمَةَ الزَّهْراءِ سَيِّدَةَ النِّساءِ، يَابْنَ بِنْتِ الْمُصْطَفى»
हे हुसैन, हे रसूलुल्लाह (स) के चहीते, हे मक्का और मिला के बेटे, हे सारे संसार की महिलाओं की मलिका फ़ातेमा ज़हरा (स) के बेटे हो मोहम्मद मुस्तफ़ा (स) की बेटी के बेटे।
रावी कहता हैः ईश्वर की सौगंध हज़रत ज़ैनब (स) की इस आवाज़ को सुनकर दरबार में उपस्थित हर व्यक्ति रोने लगा, और यज़ीद चुप था!!
यज़ीद ने आदेश दिया की उसकी छड़ी लाई जाए और वह उस छड़ी से इमाम हुसैन (अ) के होठों और पवित्र दांतो से मार रहा था।
अबू बरज़ा असलमी जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) के सहाबी और उस दरबार में उपस्थित थे, ने यज़ीद को संबोधित करके कहाः हे यहीं तू अपनी छड़ी से फ़ातेमा (स) के बेटे हुसैन (अ) को मार रहा है? मैंने अपनी आँखों से देखा है कि पैग़म्बरे अकरम (स) हसन (अ) और हुसैन (अ) के होठों और दांतों को चूमा करते थे और फ़रमाते थेः
:«أَنْتُما سَيِّدا شَبابِ أهْلِ الْجَنَّةِ، فَقَتَلَ اللهُ قاتِلَكُما وَلَعَنَهُ، وَأَعَدَّلَهُ جَهَنَّمَ َوساءَتْ مَصيراً»
तुम दोनों स्वर्ग के जवानों के सरदार हो, ईश्वर तुम्हारे हत्यारे को मारे और उसपर लानत करे और उसके लिए नर्क तैयार करे और वह सबरे बुरा स्थान है।
यज़ीद ने जब असलमी की इन बातों को सुना तो क्रोधित हो गया और उसने आदेश दिया कि उनको दरबार से बाहर निकाल दिया जाए।
यज़ीद जो घमंड और अहंकार से चूर था, यह समझ रहा था कि उनसे कर्बला पर विजय प्राप्त कर ली है, उसने इन शेरों को पढ़ा जो उसके और बनी उमय्या के इस्लाम से दूर होने और इस्लामी शिक्षाओं को स्वीकार न करने का प्रमाण हैं:
لَيْتَ أَشْياخي بِبَدْر شَهِدُوا *** جَزِعَ الْخَزْرَجُ مِنْ وَقْعِ الاَْسَلْ
فَأَهَلُّوا وَ اسْتَهَلُّوا فَرَحاً *** ثُمَّ قالُوا يايَزيدُ لاتَشَلْ
لَسْتُ مِنْ خِنْدَفَ إِنْ لَمْ أَنْتَقِمْ *** مِنْ بَني أَحْمَدَ، ما كـانَ فَعَلْ(1)
काश मेरे वह पूर्वज जो बद्र के युद्ध में मारे गए थे आज देखते कि ख़ज़रज क़बीला किस प्रकार भालों के वार से रो रहा है।
वह लोग शुख़ी से चिल्लाह रहे थे और कह रहे थेः यज़ीद तेरे हाथ सलामत रहें!
मैं ख़िनदफ़ (2) की संतान नहीं हूँ अगर मैं अहमद (अल्लाह के रसूल (स)) के परिवार से इंतेक़ाम न लूँ
यज़ीद यह शेर पढ़ता जा रहा था और अपनी इस्लाम से दूरी और शत्रुता को दिखाता जा रहा था, और यही वह समय था कि जब अली (अ) की शेरदिल बेटी ज़ैनब (स) उठती है और वह एतिहासिक ख़ुत्बा पढ़ती हैं जिसे इतिहास कभी भुला न सकेगा। आप फ़रमाती हैं
«أَلْحَمْدُللهِِ رَبِّ الْعالَمينَ، وَصَلَّى اللهُ عَلى رَسُولِهِ وَآلِهِ أجْمَعينَ، صَدَقَ اللهُ كَذلِكَ يَقُولُ: ثُمَّ كَانَ عَاقِبَةَ الَّذِينَ أَسَاءُوا السُّوأَى أَنْ كَذَّبُوا بِآيَاتِ اللهِ وَكَانُوا بِهَا يَسْتَهْزِئُون. (3)
أَظَنَنْتَ يا يَزِيدُ حَيْثُ أَخَذْتَ عَلَيْنا أَقْطارَ الاَْرْضِ وَآفاقَ السَّماءِ، فَأَصْبَحْنا نُساقُ كَما تسُاقُ الأُسارى أَنَّ بِنا عَلَى اللهِ هَواناً، وَبِكَ عَلَيْهِ كَرامَةً وَأَنَّ ذلِكَ لِعِظَمِ خَطَرِكَ عِنْدَهُ، فَشَمَخْتَ بِأَنْفِكَ، وَنَظَرْتَ فِي عِطْفِكَ جَذْلانَ مَسْرُوراً حِينَ رَأَيْتَ الدُّنْيا لَكَ مُسْتَوْثِقَةٌ وَالاُْمُورَ مُتَّسِقَةٌ وَحِينَ صَفا لَكَ مُلْكُنا وَسُلْطانُنا، فَمَهْلاً مَهْلاً، أَنَسِيتَ قَوْلَ اللهِ عَزَّوَجَلَّ: وَ لاَ يَحْسَبَنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا أَنَّمَا نُمْلِى لَهُمْ خَيْرٌ لاَِّنْفُسِهِمْ إِنَّمَا نُمْلِي لَهُمْ لِيَزْدَادُوا إِثْماً وَ لَهُمْ عَذَابٌ مُهِينٌ». (4)
प्रशंसा विशेष है उस ईश्वर के लिये जो संसारों का पालने वाला है, और ईश्वर की सलवात उसके दूत पर और उसके परिवार पर। ईश्वर ने सत्य कहा जब फ़रमायाः “वह लोग जिन्होंने पाप और कुकर्म किये उनका अंत (परिणाम) इस स्थान तक पहुँच गया कि उन्होंने ईश्वरीय आयतों को झुठलाना दिया और उनका उपहास किया”
हे यज़ीद! क्या अब जब कि ज़मीन और आसमान तो (विभन्न दिशाओं से) हम पर तंग कर दिया और और क़ैदियों की भाति हम को हर दिशा में घुमाया, तू समझता है कि हम ईश्वर के नज़दीक अपमानित हो गए और तू उसके नज़दीक सम्मानित हो जाएगा? और तूने समझा कि यह ईश्वर के नज़दीक तेरी शक्ति और सम्मान की निशानी है? इसलिये तूने अहंकार की हवा को नाक में भर लिया और स्वंय पर गर्व किया और प्रसन्न हो गया, यह देख कर कि दुनिया तेरी झोली में आ गई कार्य तुझ से व्यवस्थित हो गए और हमारी हुकूमत और ख़िलाफ़त तेरे हाथ में आ गई, तो थोड़ा ठहर! क्या तूने ईश्वर का यह कथन भुला दिया कि उसने फ़रमायाः “जो लोग काफ़िर हो गए वह यह न समझें कि अगर हम उनको मोहलत दे रहे हैं, तो यह उनके लाभ में है। हम उनको छूट देते हैं ताकि वह अपने पापों को बढ़ाएं और उनके लिये अपमानित करने वाला अज़ाब (तैयार) है”
आपने अली (अ) के लहजे में यज़ीद और दरबार में बैठे सारे लोगों को यह जता दिया कि देख अगर तू यह समझता है कि तूने हमारे मर्दों की हत्या करके और हम लोगों को बंदी बना कर अपमानित कर दिया है तो यह तेरी समझ का फेर है जान ले कि इज़्ज़त और सम्मान ईश्वर के हाथ में है, वह जिसको चाहता है उसकों सम्मान देता है और जिसको चाहता है अपमानित कर देता है।
इसी ख़ुत्बे में आपने एक स्थान पर फ़रमायाः
«أَ مِنَ الْعَدْلِ يَابْنَ الطُّلَقاءِ! تَخْدِيرُكَ حَرائِرَكَ وَ إِمائَكَ، وَ سَوْقُكَ بَناتِ رَسُولِ اللهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَ سَلَّم سَبايا، قَدْ هَتَكْتَ سُتُورَهُنَّ، وَ أَبْدَيْتَ وُجُوهَهُنَّ، تَحْدُو بِهِنَّ الاَْعداءُ مِنْ بَلد اِلى بَلد، يَسْتَشْرِفُهُنَّ أَهْلُ الْمَناهِلِ وَ الْمَناقِلِ، وَ يَتَصَفَّحُ وُجُوهَهُنَّ الْقَرِيبُ وَ الْبَعِيدُ، وَ الدَّنِيُّ وَ الشَّرِيفُ، لَيْسَ مَعَهُنَّ مِنْ رِجالِهِنَّ وَلِيُّ، وَ لا مِنْ حُماتِهِنَّ حَمِيٌّ، وَ كَيْفَ يُرْتَجى مُراقَبَةُ مَنْ لَفَظَ فُوهُ أَكْبادَ الاَْزْكِياءِ، وَ نَبَتَ لَحْمُهُ مِنْ دِماءِ الشُّهَداءِ، وَ كَيْفَ يَسْتَبْطِأُ فِي بُغْضِنا أَهْلَ الْبَيْتِ مَنْ نَظَرَ إِلَيْنا بِالشَّنَفِ وَ الشَّنَآنِ وَ الاِْحَنِ وَ الاَْضْغانِ، ثُمَّ تَقُولُ غَيْرَ مُتَّأَثِّم وَ لا مُسْتَعْظِم:
لاََهَلُّوا و اسْتَهَلُّوا فَرَحاً *** ثُمَّ قالُوا يا يَزيدُ لا تَشَلْ
مُنْتَحِياً عَلى ثَنايا أَبِي عَبْدِاللهِ سَيِّدِ شَبابِ أَهْلِ الجَنَّةِ، تَنْكُتُها بِمِخْصَرَتِكَ، وَ كَيْفَ لا تَقُولُ ذلِكَ وَ قَدْ نَكَأْتَ الْقَرْحَةَ، وَ اسْتَأْصَلْتَ الشَّأْفَةَ بِإِراقَتِكَ دِماءَ ذُرّيَةِ مُحَمَّد صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَسَلَّمَ، وَ نُجُومِ الاَْرْضِ مِنْ آلِ عَبْدِالمُطَّلِبِ، وَ تَهْتِفُ بِأَشْياخِكَ، زَعَمْتَ أَنَّكَ تُنادِيهِمْ، فَلَتَرِدَنَّ وَ شِيكاً مَوْرِدَهُمْ وَ لَتَوَدَّنَّ أَنَّكَ شَلَلْتَ وَ بَكِمْتَ، وَ لَمْ تَكُنْ قُلْتَ ما قُلْتَ وَ فَعَلْتَ ما فَعَلْتَ».
हे स्वतंत्र किये गए काफ़िरों के बेटे! (5) क्या यह न्याय है कि तू अपनी महिलाओं और दासियों को तो पर्दे में रखे, लेकिन अल्लाह के रसूल (स) की बेटियों को बंदी बनाकर इधर उधर घुमाता फिरे, जब कि तूने उनके सम्मान को ठेस पहुँचाई और उनको चेहरों के लोगों के सामने रख दिया, उनको शत्रुओं के माध्यम से विभिन्न शहरों में घुमाए ताकि हर शहर और गली के लोग उनका तमाशा देखें, और क़रीब, दूर शरीफ़ और तुच्छ लोग उनके चेहरों को देखें, जब कि उनके साथ मर्द और सुरक्षा करने वाले नहीं थे (लेकिन इन बातों का क्या लाभ, क्योंकि) कैसे उस व्यक्ति की सुरक्षा और समर्थन की आशा की जा सकती है कि (जिसकी माँ ने) पवित्र लोगों का जिगर खाया हो (आपने यज़ीद की माँ हिन्द की कहानी की तरफ़ इशारा किया है) और जिसका गोश्त शहीदों को रक्त से बना है?! और किस प्रकार वह हम अहलेबैत (अ) से शत्रुता में तेज़ी न दिखाए जो हम को अहंकार, नफ़रत, क्रोधित और प्रतिशोधात्मक नज़र से देखता है और फिर (बिना अपराध बोध और अपने अत्याचारों को देखे अहंकार के साथ) कहता हैः
काश मेरे पूर्वज होते और इस दृश्य को देखते और शुख़ी एवं प्रसंन्ता से कहतेः यज़ीद तेरे हाथ सलामत रहें।
इन शब्दों को उस समय कहता है कि जब अबा अब्दिल्लाह (अ) जो स्वर्ग के जवानों के सरदार हैं के होठ और पवित्र दांतों पर मारता है!
हां तू क्यों ऐसा नहीं कहेगा, जब कि तूने अल्लाह के रसूल के बेटों और अब्दुल मुत्तलिब के ख़ानदान के ज़मीनी सितारों का ख़ून बहाकर, हमारे दिलों के घवों को खोल दिया है, और तू हमारे ख़ानदान की जड़ ख़तरा बन गया है, तू अपने पूर्वजों को पुकारता है और समझता है कि वह तेरी आवाज़ को सुन रहे हैं?! (जल्दी न कर) बहुत जल्द तू भी उनके पास चला जाएगा, और उस दिन तू आशा करेगा कि काश तेरा हाथ शल होता और तेरी ज़बान गूँगी होती और तू यह बात न कहता और इन कुकर्मों को न करता)
फ़िर आप फ़रमाती हैं:
«أَللّهُمَّ خُذْ بِحَقِّنا، وَ انْتَقِمْ مِنْ ظالِمِنا، وَ أَحْلِلْ غَضَبَكَ بِمَنْ سَفَكَ دِماءَنا، وَ قَتَلَ حُماتَنا، فَوَاللهِ ما فَرَيْتَ إِلاّ جِلْدَكَ، وَلا حَزَزْتَ إِلاّ لَحْمَكَ، وَ لَتَرِدَنَّ عَلى رَسُولِ اللهِ بِما تَحَمَّلْتَ مِنْ سَفْكِ دِماءِ ذُرِّيَّتِهِ، وَ انْتَهَكْتَ مِنْ حُرْمَتِهِ فِي عَتْرَتِهِ وَ لُحْمَتِهِ، حَيْثُ يَجْمَعُ اللهُ شَمْلَهُمْ، وَ يَلُمُّ شَعْثَهُمْ، وَ يَأْخُذُ بِحَقِّهِمْ وَ لاَ تَحْسَبَنَّ الَّذِينَ قُتِلُوا فِى سَبِيلِ اللهِ أَمْوَاتاً بَلْ أَحْيَاءٌ عِنْدَ رَبِّهِمْ يُرْزَقُونَ. (6) وَ حَسْبُكَ بِاللهِ حاكِماً، وَ بِمُحَمَّد صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَآلِهِ وَ سَلَّمَ خَصِيماً، وَ بِجَبْرَئِيلَ ظَهِيراً، وَ سَيَعْلَمُ مَنْ سَوّى لَكَ وَ مَكَّنَكَ مِنْ رِقابِ المُسْلِمِينَ، بِئْسَ لِلظّالِمِينَ بَدَلاً، وَ أَيُّكُمْ شَرٌّ مَكاناً، وَ أَضْعَفُ جُنْداً».
हे ईश्वर! हमारे अधिकार को ले, और हम पर अत्याचार कनरे वालों से इंतेक़ाम ले, और जिसने हमारे ख़ून को ज़मीन पर बहाया और हमारी साथियों की हत्या की उस पर अपना क्रोध उतार।
हे यज़ीद! ईश्वर की सौगंध (इस अपराध से) तूने केवल अपनी खाल उतारी है, और अपना गोश्त काटा है, और वास्तव में तूने स्वंय को बरबाद किया है, निःसंदेह वह बोझ – अल्लाह के रसूल (स) के बेटे की हत्या करके और उनके ख़ानदान और चहीतों का अपमान करके- अपने कांधे पर डाला है, तू पैग़म्बर के सामने जाएगा, वहां ईश्वर उन सबको इकट्ठा करेगा और उनकी परेशानी को दूर करेगा और उनके दिलों की आग को ठंडा करेगा, (हां) “यह न समझ कि जो लोग ईश्वर की राह में मार दिये गए, वह मर गए हैं, बल्कि वह जीवित है और ईश्वर से रोज़ी पाते हैं” यही काफ़ी है कि तू उस न्यायालय में हाज़िर होगा जिसका न्याय करने वाला ईश्वर है और अल्लाह का रसूल (स) तेरे मुक़ाबले में है और जिब्रईल गवाह और उनके साथे हैं।
बहुत जल्द जिसने हुकूमत को तेरे लिये निर्विघ्न किया और तुझे मुसलमानों की गर्दनों पर सवार कर दिया, जान जाएगा कि कितना बुरा अज़ाब अत्याचारियों के हिस्से में आएगा, और समझ जाएगा कि किसके ठहरे का स्थान बुरा है और किसकी सेना अधिक कमज़ोर और शक्तिविहीन है।
उसके बाद आपने अपने ख़ुत्बे के इस चरण में यज़ीद की धज्जियाँ उड़ा दीं:
«وَ لَئِنْ جَرَّتْ عَلَيَّ الدَّواهِي مُخاطَبَتَكَ، إِنِّي لاََسْتَصْغِرُ قَدْرَكَ، وَ أَسْتَعْظِمُ تَقْرِيعَكَ، وَ أَسْتَكْثِرُ تَوْبِيخَكَ، لكِنَّ العُيُونَ عَبْرى، وَ الصُّدُورَ حَرّى، أَلا فَالْعَجَبُ كُلُّ الْعَجَبِ لِقَتْلِ حِزْبِ اللهِ النُّجَباءِ بِحِزْبِ الشَّيْطانِ الطُّلَقاءِ، فَهذِهِ الاَْيْدِي تَنْطِفُ مِنْ دِمائِنا، وَ الأَفْواهُ تَتَحَلَّبُ مِنْ لُحُومِنا، وَ تِلْكَ الجُثَثُ الطَّواهِرُ الزَّواكِي تَنْتابُها العَواسِلُ، وَ تُعَفِّرُها اُمَّهاتُ الْفَراعِلِ.
وَ لَئِنِ اتَّخَذْتَنا مَغْنَماً لَتَجِدَ بِنا وَ شِيكاً مَغْرَماً حِيْنَ لا تَجِدُ إلاّ ما قَدَّمَتْ يَداكَ، وَ ما رَبُّكَ بِظَلاَّم لِلْعَبِيدِ، وَ إِلَى اللهِ الْمُشْتَكى، وَ عَلَيْهِ الْمُعَوَّلُ، فَكِدْ كَيْدَكَ، وَ اسْعَ سَعْيَكَ، وَ ناصِبْ جُهْدَكَ، فَوَاللهِ لا تَمْحُو ذِكْرَنا، وَ لا تُمِيتُ وَحْيَنا، وَ لا تُدْرِكُ أَمَدَنا، وَ لا تَرْحَضُ عَنْكَ عارَها، وَ هَلْ رَأيُكَ إِلاّ فَنَدٌ، وَ أَيّامُكَ إِلاّ عَدَدٌ، وَ جَمْعُكَ إِلاّ بَدَدٌ؟ يَوْمَ يُنادِي الْمُنادِي: أَلا لَعْنَةُ اللهِ عَلَى الظّالِمِينَ.
وَ الْحَمْدُ للهِ رَبِّ الْعالَمِينَ، أَلَّذِي خَتَمَ لاَِوَّلِنا بِالسَّعادَةِ وَ الْمَغْفِرَةِ، وَ لاِخِرِنا بِالشَّهادَةِ وَ الرَّحْمَةِ. وَ نَسْأَلُ اللهَ أَنْ يُكْمِلَ لَهُمُ الثَّوابَ، وَ يُوجِبَ لَهُمُ الْمَزيدَ، وَ يُحْسِنَ عَلَيْنَا الْخِلافَةَ، إِنَّهُ رَحيمٌ وَدُودٌ، وَ حَسْبُنَا اللهُ وَ نِعْمَ الْوَكيلُ».
अगर बुरे समय ने मुझे इस मक़ाम पर ला खड़ा किया है कि मैं तुझ से बात करूँ, लेकिन (जान ले) मैं निःसंदेह तेरी शक्ति को कम और तेरे दोष को बड़ा समझती हूँ और बहुत तेरी निंदा करती हूँ, लेकिन मैं क्या करूँ कि आख़े रोती और सीने जले हुए हैं।
बहुत आश्चर्य का स्थान है कि एक ईश्वरीय और चुना हुआ गुट, शैतान के चेलों और स्वतंत्र किये हुए दासों के हाथों क़त्ल कर दिया जाए और हमारा रक्त इन (अपवित्र) पंजों से टपके और हमारे गोश्त के टुकड़े तुम्हारे (अपवित्र) मुंह से बाहर गिरें, और तुम जंगली भेड़िये सदैव उन पवित्र शरीरों के पास आओ और उनके मिट्टी में मिलाओ!
अगर आज (हम पर विजय) को अपने लिये ग़नीमत समझता है, अतिशीघ्र उसके अपनी हानि और नुक़सान पाएगा, उस दिन अपने कुकर्मों के अतिरिक्त कुछ और नहीं पाएगा। और कदापि परवरदिगार अपने बंदों पर अत्याचार नहीं करेगा। मैं केवल ईश्वर से शिकायत करती हूँ और केवल उस पर विश्वास करती हूँ।
हे यज़ीद! जितनी भी मक्कारियां है उनका उपयोग कर ले, और अपनी सारी कोशिश कर ले और जितना प्रयत्न कर सकता है कर ले, लेकिन ईश्वर की सौगंध (इन सारी कोशिशों के बाद भी) हमारी यादों को (दिलों से) न मिटा सकेगा और वही (ईश्वरीय कथन) के (चिराग़ को) बुझा न सकेगा, और हमारे सम्मान और इज़्ज़ात को ठेस न पहुँचा सकेगा। इस घिनौने कार्य का धब्बा, तेरे दामन से कभी न मिट सकेगा। तेरी राय क्षीण और तेरी सत्ता का ज़माना कम है, और तेरी एकता का अंत अनेकता होगा जिस दिन आवाज़ देने वाला आवाज़ लगाएगाः “अत्याचारियों पर ईश्वर की लानत हो”
प्रशंसा और तारीफ़ विशेष है उस ईश्वर के लिये जो संसारों का परवरदिगार है। वही जिसने हमरे आरम्भ को सौभाग्य और मग़फ़िरत और अंत को शहादत और रहमत बनाया। ईश्वर से मैं उन शहीदों के लिये पूर्ण इन्आम और, इन्आमों पर अधिक चाहती हूँ (और उससे चाहती हूँ कि) हमको उनका अच्छा उत्तराधिकारी बनाए, वह दयालू और मोहब्बत करने वाला है, और ईश्वर हमारे लिये काफ़ी है और वह हमारा बेहतरीन समर्थक है। (7)
हज़रत ज़ैनब (स) का यह ख़ुत्बा इस्लामी इतिहास का सबसे बेहतरीन और मुह तोड़ ख़ुत्बा है, ऐसा लगता है कि यह सारा ख़ुत्बा इमाम अली (अ) की पवित्र आत्मा और उनकी वीरता की बूंदों से भीगकर उनकी महान बेटी के ज़बान से जारी हुआ है, कि सुनने वालों ने कहा कि ऐसा लगता है कि अली बोल रहे हैं।
शारांश
हज़रत ज़ैनब (स) ने अपने इस ख़ुत्बे में बहुत सी बातें कहीं है जिनको इस संक्षिप्त से लेख में बयान करना संभव नहीं है और न ही हम इस स्थान पर हैं कि इन सारी बातों को बयान कर सके, लेकिन संक्षेप में इस ख़ुत्बे के सारांश को बयान किया जाए तो कुछ इस प्रकार होगा
1. इस्लामी इतिहास की इस वीर महिला ने सबसे पहले यज़ीद के अहंकार को चकनाचूर किया और क़ुरआन की तिलावत करके उसको बता दिया कि उसका स्थान ईश्वर के नज़दीन क्या है और बता दिया कि हे यज़ीदः तू हुकूमत दौलन, महल आदि को अपने लिये बड़ा न समझ तो उन लोगों में से है जिसे ईश्वर ने मोहलत दी है ताकि वह अपने पापों का बोझ बढ़ाते रहें और उसके बाद वह उन्हें नर्क के हलावे कर दे।
2. उसके बाद आपने यज़ीद के पूर्वजों के साथ मक्के की विजय के समय पैग़म्बरे इस्लाम (स) के व्यवहार के बारे में बयान किया है और बताया है कि जिस नबी ने उसके पूर्वजों को क्षमा कर के स्वतंत्र कर दिया था उसकी के बेटे ने पैग़म्बर (स) की औलाद की हत्या की उस परिवार की महिलाओं को एक शहर से दूसरे शहर फिराया और इस प्रकार आपने यज़ीद के माथे पर अपमान की मोहर लगा दी।
3. उसके बाद आप यज़ीद के कुफ़्र भरे शब्दों के बारे में बयान करती है और बताती है कि यज़ीद का इस्लाम या मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है, और आपने बता दिया की यज़ीद भी बहुत जल्द अपने पूर्वजों की भाति नर्क पहुंच जाएगा।
4. फिर आपने शहीदों विशेष कर पैगम़्बर (स) के ख़ानदान के शहीदों के महान स्थान के बारे में बयान किया है और बताया है कि इनकी शहादत इस ख़ानदान के लिये सम्मान की बात है।
5. उसके बाद आप यज़ीद के सामने ईश्वर के न्याय की तरफ़ इशारा करती हैं और कहती है कि सोंच उस समय क्या होगा कि जब न्याय करने वाला ईश्वर होगा तेरा विरोध अल्लाह का रसूल (स) होगा औऱ गवाह अल्लाह के फ़रिश्ते होंगे।
6. उसके बाद आपने यज़ीद का अदिर्तीय अपमान किया और कहाः हे यज़ीद अगर ज़माने ने मुझ पर अत्याचार किया और मुझे बंदी बनाकर देते सामने पेश कर दिया तो तू यह न समझ कि मैंने तुझे सम्मान दे दिया, मैं तो तुझे बात करने के लायक़ भी नहीं समझती हूँ, और अगर इस समय बोल रही हूँ तो यह केवल मजबूरी है और बस।
7. सबसे अंत में हज़रत ज़ैनब (स) ने पैगम़्बर (स) के ख़ानदान पर ईश्वर की बेशुमान अनुकम्पाओं पर उसका धन्यवाद और प्रशंसा की है और फ़रमाया है उस ईश्वर ने हमारा आरम्भ सौभाग्य और अंत शहादत के सम्मान पर किया है।
*********
(1) इस शेर का दूसरा मिसरा पैग़म्बरे इस्लाम से बहुत बड़े शत्रु अब्दुल्लाह बिन ज़बअरी का है जिसने इस शेक को ओहद की जंग में पैगम़्बर के साथियों की शाहादत के बार कहा था और आशा की थी कि काश बद्र के युद्ध में हमारे मारे जाने वाले लोग होते और देखते कि किस प्रकार ख़ज़रज (मदीना का एक मुसलमान) क़बीले वाले रोते हैं, यज़ीद ने इस शेर को मिलाया और बाक़ी शेर स्वंय कहे हैं।
(2) ख़ुनदफ़ क़ुरैश और यज़ीद के सबसे बड़ा पूर्वज था (तारीख़े तबरी, जिल्द 1, पेज 24-25)
(3) सूरा रूम आयत 10
(4) सूरा आले इमरान आयत 178
(5) आपने मक्के की विजय की तरफ़ ईशारा किया है कि जब पैगम़्बर ने अबू सुफ़ियान, मोआविया और क़ुरैश के दूसरे सरदारों को क्षमा कर दिया और फ़रमाया «إذْهَبُوا فَأَنتُمُ الطُّلَقاءُ»؛ जाओ तुम स्वतंत्र हो (बिहारुल अनवार जिल्द 21, पेज 106, तारीख़े तबरी, जिल्द 2, पेज 337)
(6) सूरा आले इमरान आयत 169
(7) मक़तलुल हुसैन मक़रम, पेज 357-359, बिहारुल अनवार जिल्द 45, पेज 132-135,
सैय्यद ताजदार हुसैन ज़ैदी