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इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म दिवस

 

हिजरी क़मरी वर्ष के बारहवें महीने ज़िलहिज्जा की 15 तारीख़ पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम का जन्मदिन है। हम ईश्वर के आभारी हैं कि उसने हमें यह अवसर प्रदान किया कि इस महान हस्ती के शुभ जन्म दिवस पर उनके ज्ञान व अध्यात्म की पाठशाला की सैर करें तथा इस दिन के हर्षोउल्लास को इस ज्ञान के सागर से प्राप्त होने वाले मोतियों से चार चांद लगाएं।

 

ईश्वरीय दूत वह महान और महत्वपूर्ण हस्तियां हैं जिनके कथन, शिष्टाचार और व्यवहार पवित्र व महान मानवीय जीवन का दर्पण है। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम अपने एक बयान में ईश्वरीय दूतों का इस प्रकार परिचय कराते हैं, वे कृपा के स्रोत, ज्ञान के ख़ज़ाने, प्रतिष्ठा एवं गौरव के आधार, सत्य का मार्ग दिखाने वाले और सदाचारी होते हैं।

 

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम का जन्म 15 ज़िलहिज्जा वर्ष 212 हिजरी क़मरी को पवित्र नगर मदीना के निकट स्थित सरिया नामक स्थान पर हुआ। उनके पिता नवें इमाम हज़रत इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम थे तथा उनकी माता एक महान महिला हज़रत समाना थीं। सन 220 हिजरी क़मरी में इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम शहीद कर दिए। अतः बाल्यकाल से ही इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की इमामत का दौर शुरू हो गया जो वर्ष 254 हिजरी क़मरी तक जारी रहा। लोगों के बीच इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को अनेक उपाधियों से ख्याति मिली इनमें हादी और नक़ी जैसी उपाधियां प्रमुख हैं, हादी का अर्थ है मार्गदर्शन करने वाला और नक़ी का अर्थ है पवित्र। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की 33वर्षीय इमामत के दौरान 6 अब्बासी शासकों का दौर गुज़रा। यह शासक मोअतसिम, वासिक़, मुतवक्किल, मुन्तसिर, मुस्तईन और मोअतज़्ज़ थे जिनमें पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों का सबसे बड़ा दुशमन मुतवक्किल था।

 

ज्ञान और अध्यात्म की दृष्टि से मुसलमानों के बीच इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के उच्च स्थान और विशेष सम्मान के कारण अब्बासी शासक उनसे गहरा द्वेष रखते थे अतः उन्हें बहुत अधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की इमामत का काल ज्ञान एवं वैचारिक दृष्टि से एक नवीन काल था। अन्य समाजों की आस्थाओं और विचारों से संबंधित पुस्तकों के अरबी भाषा में अनुवाद से यह विचार, इस्लामी समाज में आए, साथ ही बहुत से भ्रामक विचार भी फैलने लगे थे और इस्लामी समाज नए वैचारिक एवं सांस्कृतिक चरण में प्रवेश कर रहा था। अतः यह बिल्कुल नया वातावरण था। विभिन्न समुदाय और मत अपनी अपनी विचारधारा के आधार पर अपने दृष्टकोण पेश कर रहे थे तथा इस्लामी जगत में एक प्रकार की वैचारिक उथल पुथल मची हुई थी। किंतु पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से जुड़ा हुआ मत सरकारी दबाव और यातनाओं के बावजूद इमामों के अस्तित्व की बरकत से सुदृढ़ और ठोस वैचारिक व तार्किक आधारों पर खड़ा था अतः जब भी इस्लाम को लेकर कोई भ्रांति उत्पन्न करने का प्रयास किया जाता तो इसका उचित उत्तर पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों की ओर से ही दिया जाता था। इस महत्वपूर्ण कालखंड में जो इस्लाम के लिए विशेष महत्व रखता था इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने यह दायित्व संभाला कि धर्म के विचारों, दृष्टिकोणों और सिद्धांतों को सही रूप में समाज के सामने पेश करें तथा उनकी रक्षा करते रहें ताकि भावी पीढ़ियों तक यह ख़ज़ाना सुरक्षित रूप में पहुंचे।

 

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम का यह महत्वपूर्ण काम था कि वे इस्लाम संबंधी आस्थाओं को सही रूप में बयान करते थे। उस काल में एकेश्वरवाद जैसे विषयों के बारे में इस्लामी समाज में बड़ी भ्रांतियां फैलाई जा रही थीं और लोगों की आस्थाएं ख़तरे में पड़ गई थीं। इन भ्रांतियों से समूचे इस्लामी जगत का मार्ग बदल सकता था तथा वह पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा निर्धारित लक्ष्य से दूर हो सकता था। क्योंकि एकेश्वरवाद तथा ईश्वर की पहिचान इस्लाम धर्म और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के मत में मूल स्तंभ का स्थान रखता है। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने ईश्वरीय मार्गदर्शक के रूप में लोगों को इस तथ्य से परिचित कराने का प्रयास किया कि अनन्य ईश्वर पर आस्था का मनुष्य के जीवन के सभी आयामों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इंसान की आस्था सही हो तो वह ईश्वर की उपासन के मार्ग पर अग्रसर रहता है तथा एकेश्वरवादी जीवन जीता है। यहां एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि एकेश्वरवादी जीवन के लिए हमेशा ईश्वरीय मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है। यह मार्गदर्शन पैग़म्बरे तथा इमामों के माध्यम से होता है। अतः पैग़म्बरे और इमाम के संबंध में आस्था एकेश्वरवादी आस्था से जुड़ी हुई है।

 

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम इस बात पर बहुत आग्रह करते थे कि इस्लाम चिंतन और मंथन का का धर्म है। हर बात और हर कथन का तार्किक पैमाने पर पूरा उतरना आवश्यक है, उसका हर प्रकार की ख़ुराफ़ात और अंध विश्वास से दूर होना ज़रूरी है। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने दक्षिण पश्चिमी ईरान के अहवाज़ क्षेत्र के रहने वालों के बीच आस्था संबंधी कुछ भ्रांतियों को दूर करने के लिए एक छोटी पुस्तक लिखी थी जिसमें आस्था संबंधी भ्रांतियों से बचने और संदेहों से मुक्ति पाने के लिए वास्तविक इस्लामी आस्थाओं का उल्लेख किया गया है। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के काल में कुछ लोग यह मानने लगे थे कि ईश्वर का भी एक शरीर है इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने इस विचार को ख़ारिज करते हुए कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम और उनके परिजनों के धर्म का अनुपालन करने वाले ईश्वर को निराकार मानते हैं। क्योंकि यदि यह मान लिया जाए कि ईश्वर का शरीर है तो यह भी मानना आवश्यक होगा कि शरीर को अस्तित्व में लाने वाला कोई कारक भी है। शरीर होने का यह अर्थ भी है कि ईश्वर किसी विशेष स्थान पर सीमित है। जबकि ईश्वर इन सारी बातों से ऊपर है।

 

जिस प्रकार एकेश्वरवादी आस्था के बारे में जो ईश्वरीय दूतों का सबसे महत्वपूर्ण संदेश और शिक्षा थी, भ्रांतियां उत्पन्न की उसी प्रकार क़ुरआन के बारे भी बहुत सी भ्रांतियां और संदेह फैलाए गए। एक समय यह कहा जाने लगा कि क़ुरआन में फेरबदल हुआ है तथा कुछ लोग कुरआन की मान्यता पर ही सवालिया निशान लगाने के प्रयास में लग गए। अतः आज इस बारे में एक समूह कुछ दूसरे लोगों पर आरोप लगाता है। जब इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के काल में यह भ्रांति फैलाई जाने लगी तो उन्होंने बड़ी मेहनत और सफलता के साथ इसका मुक़ाबलाप किया तथा क़ुरआन की आयतों के माध्यम से यह तर्क दिया कि क़ुरआन में कोई फेरबदल नहीं हुआ है।

 

उस काल में एक विचार यह भी प्रचारित किया जा रहा था कि इंसान अपने हर कर्म में मजबूर है वह कोई भी काम अपनी इच्छा और शक्ति से नहीं करता बल्कि जो ईश्वर चाहता है वही होता है। यह विचार अब्बासी शासकों ने समाज में जान बूझ कर फैलाया था ताकि लोग इन शासकों के अत्याचारों को ईश्वर की मर्ज़ी मान कर ख़ामोश रहें उस पर कोई आपत्ति न करें। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने इस ग़लत विचार का मुक़ाबला किया और इसे रद्द करने के लिए कहा कि इंसान न तो अपने हर काम में विवश है और न ही उसे निरंकुश अख़तियार दिया गया है। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम का कहना था कि इंसान सामाजिक, और राजनैतिक मामलों में तथा अपने भविष्य का निर्धारण करने के संबंध में ख़ुद फ़ैसला करता है। इस विचार को पेश करके इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने लोगों को शासकों के अत्याचारों पर आपत्ति करने के लिए प्रोत्साहित किया।

 

स्वयं इमामत से संबंधित आस्था को भी हमलों का निशाना बनाया गया। इमामत से संबंधित आस्था यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम के बाद उनके परिजनों में से 12 इमाम एक एक करके मार्गदर्शन की ज़िम्मेदारी संभालेंगे तथा पैग़म्बरे इस्लाम द्वारा लाए गए धर्म की रक्षा करेंगे। इमामत की आस्था को अनेक कालों में हमलों का निशाना बनाकर उसे समाप्त करने का प्रयास किया गया। इस्लाम में अनेक मतों के अस्तित्व में आने का एक महत्वपूर्ण कारण यही है कि सारे लोग इमाम के महत्व और स्थान से सही प्रकार अवगत नहीं हो सके। यही समस्या आज भी इस्लामी जगत की अनगिनत कठिनाइयों का कारण बनी हुई है। आज इस्लामी जगत में जो कठिनाइयां और भ्रांतियां उत्पन्न हो रही हैं उनका एक कारण यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने जो दो यादगारें अर्थात क़ुरआन और अपने परिजन  लोगों के बीच में छोड़ीं हैं, इस्लाम को समझने के लिए उन दोनों का भरपूर सहारा नहीं लिया जाता जिसके कारण लोग मार्गदर्शन से वंचित रह जाते हैं।

 

इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने अपने काल में इमाम के स्थान और महत्व को समझाने के लिए प्रभावी क़दम उठाए किंतु साथ ही एकेश्वरवाद पर विशेष बल दिया जिससे यह समझ में आता है कि पैगम्बरी और इमामत, एकेश्वरवाद से संबंधित आस्था की ही एक कड़ी है क्योंकि पैग़म्बर और इमाम ईश्वर को वह सदाचारी बंदे हैं जो मनुष्य को ईश्वर के निकट पहुंचाने और परिपूर्ण इंसान बनाने के लिए अपने कथनों और व्यवहार के माध्यम से मार्दर्शन करते हैं।

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