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Friday 29th of November 2024
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आदर्श जीवन शैली-८

 

जीवन में परिश्रम के क्षेत्र में संतुलन का अर्थ, आलस्य से दूरी और इसी प्रकार सीमा से अधिक परिश्रम करना है। क्योंकि इन दोनों दशाओं क शरीर और मन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस्लाम, संतुलन का धर्म है और अपने अनुयाइयों को सांसारिक सुखों से लाभ उठाने में संतुलन का आदेश देता है।

खेद की बात है कि अधिकांश लोग, अपने जीवन में संतुलन पर ध्यान नहीं देते और इसी लिए वे या तो निर्धारित सीमा से पीछे रह जाते हैं या फिर उससे आगे बढ़ जाते हैं। संतुलन न होने के कारण स्वंय मनुष्य उसके परिवार बल्कि पूरे समाज के लिए समस्याएं पैदा हो जाती हैं इसी लिए यह कहना चाहिए कि संतुलन, मनुष्य के भौतिक व आध्यात्मिक विकास की भूमिका प्रशस्त करता है।

 

मनुष्य की परिपूर्णता के मार्ग की सब से बड़ी बाधा मन व शरीर को सांसारिक मामलों में आवश्यकता से अधिक व्यस्त करना हैं यदि मनुष्य सीमा से अधिक सांसारिक मामलों में व्यस्त हो जाए तो वह ईश्वर की कृपा से वंचित हो जाता है। इमाम जाफरे सादिक अलैहिस्सलाम इस संदर्भ में कहते हैं कि जो सदैव संसार की चिंता में व्यस्त रहता है उस पर ईश्वर की कृपा नहीं होती।  इमाम जाफरे सादिक़ अलैहिस्सलाम इसी संदर्भ में आगे कहते हैं कि एसा व्यक्ति सदैव दुखी रहता है और सदैव संसारिक वस्तुओं के बारे में सोचता रहता है और उसमें निर्धनता की भावना पैदा होती है और जो भी उसे प्राप्त होता है उसे कम ही लगता है। मनुष्य यदि लोभ के साथ काम करता है तो वह अधिकता में ग्रस्त हो जाता है और सीमा आगे बढ़ जाने के अत्यन्त भयानक परिणाम सामने आते हैं जिनमें से कुछ की ओर हम आज की चर्चा में संकेत कर रहे हैं।

 

जीवन में काम और व्यवसाय अत्याधिक महत्वपूर्ण होता है किंतु काम के साथ ही साथ मनोरंजन और आध्यात्म पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि इसका प्रभाव व्यवसाय पर भी पड़ता है। इस्लाम में जो व्यवसाय और काम काज को इतना महत्व दिया गया है और उसे पवित्र कहा गया है उसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि मनुष्य इतना काम करे कि उसके पास उपासना और सही रूप से मनोरंजन का समय ही न बचे। पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम कहते हैं कि अपने समय को चार हिस्सों में बांटने का प्रयास करो, एक भाग, ईश्वर की उपासना के लिए, एक भाग व्यवयाय और काम काज के लिए, एक भाग अपने भाइयों और विश्वस्त लोगों के साथ उठने बैठने के लिए और एक अन्य भाग, उचित और कानूनी मनोरंजन व सुखभोग के लिए। यहां पर इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के कथन में यह बिन्दु ध्यान योग्य है कि मनोरंजन भी मनुष्य के कामों में शामिल है। अर्थात मनुष्य को अपने जीवन में कुछ समय मनोरंजन में भी व्यतीत करना चाहिए किंतु मनोरंजन कानूनी और सही मार्गों से होना चाहिए।    

 

निश्चित रूप से निरंतरता के साथ और बहुत अधिक काम करने से शारीरिक और मानसिक रूप से थकन होती है और यह प्रभाव कुछ विशेष प्रकार के कामों में अधिक विनाशाकारी होता है। विश्व के अधिकांश देशों में काम काज के लिए आठ घंटों का समय रखा गया है किंतु बहुत से लोग प्रतिदित आठ घंटों से अधिक काम करते हैं। शोधों से पता चला है कि अधिक काम करने से मनुष्य में तनाव बढ़ता है और तनाव से अनिद्रा तथा अन्य समस्याएं पैदा होती हैं और इससे ह्रदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है और कभी कभी तो इससे मृत्यु भी हो जाती है। जो लोग ग्यारह घंटों से अधिक काम करते हैं उन्हें सात से आठ घंटों तक काम करने वालों की तुलना में ह्रदय रोगों का अधिक खतरा होता है। इसके साथ ही पर्याप्त नींद न मिलना भी एक समस्या है। क्योंकि जो लोग अधिक काम करते हैं वह प्रायः प्रतिदिन ६ घंटों से कम ही सो पाते हैं।  इस प्रकार का शोध करने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि डाक्टरों को रोगियों को देखते समय उनसे उनके काम के बारे में भी पूछना चाहिए क्योंकि अधिक काम से पड़ने वाला दबाव, उच्च रक्तचाप बल्कि पाचनतंत्र के विभिन्न रोगों का भी कारण बनता है।

 

इस प्रकार से हम यह कह सकते हैं कि यद्यपि इस्लाम में काम और मेहनत करने की अत्याधिक सराहना की गयी है किंतु उसकी शिक्षाओं में अधिक काम करने की भी मनाही है किंतु यह भी एक तथ्य है कि कुछ लोग जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं के कारण अधिक काम करने पर विवश होते हैं किंतु इस्लामी शिक्षाओं और कुरआने मजीद में तथा इसी प्रकार ईश्वरीय मार्गदर्शकों के कथनों में भी सासांरिक सुखों के लिए धन दौलत एकत्रित करने की मनाही की गयी है और इसे लोग का परिणाम बताया गया है। इन कथनों में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि मनुष्य को उतना ही काम करना चाहिए जिससे उसकी आवश्यकताओं की पूर्ति हो सके और उनकी मानसिक व शारीरिक दशा अच्छी रहे। पैगम्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैही व आलेही व सल्लम कहते हैं कि जीवन में संतुलित शैली, अधिक सुख के लिए अत्याधिक परिश्रम करने से अधिक सरल है। इमाम जाफरे सादिक अलैहिस्सलाम का भी कथन है कि वह हम में से नहीं है जो अपने संसार के लिए अपनी परलोक की अनदेखी करे।

 

काम व व्यवसाय में अत्याधिक परिश्रम का एक अन्य परिणाम यह है कि मनुष्य अपने परिवार के साथ कम समय व्यतीत करता है जिससे पारिवारिक संबंध भी प्रभावित होते हैं। जिन परिवारों में माता पिता या दोनों अपना अधिक समय आफिस या काम के लिए बाहर व्यतीत करते हैं वहां परिवार के अन्य सदस्यों विशेष कर बच्चों पर अधिक दबाव पड़ता है। प्रशिक्षण विशेषज्ञ मुजतबा हूराई, आवश्यकता से अधिक काम करने के परिणामों पर चर्चा करते हुए कहते हैं कि कुछ लोग अपने व्यवसाय से इतना अधिक जुड़ जाते हैं कि जीवन की अन्य प्राथमिकताएं बहुत पीछे छूट जाती हैं। इन लोगों के जीवन में ज्ञान व जानकारी प्राप्त करने का कोई स्थान नहीं होता और इसी प्रकार वे अपनी पत्नी और बच्चों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दे पाते। इस प्रकार के लोग, पारिवारिक संबंधों और मित्रों से मेलजोल को बिल्कुल महत्व नहीं देते। व्यवयास पर आवश्यकता से अधिक ध्यान इस सीमा तक बढ़ जाता है कि उन्हें स्वंय अपने स्वास्थ्य की भी परवाह नहीं रहती। निश्चित रूप से आलस्य और काम से भागना एक बहुत बड़ी बुराई है किंतु आवश्यकता से अधिक काम करना भी व्यक्तिगत और सामाजिक समस्याओं का कारण बनता है। इस प्रकार के लोग, अधिक काम करने को अपने परिश्रमी होने का चिन्ह बताते हैं और उस पर गर्व करते हैं जबकि एसा कुछ नहीं है।

 

यहां पर यह स्पष्ट करना भी आवश्यक है कि मनुष्य के जीवन में आराम करना भी अत्यन्त आवश्यक है किंतु अधिक आराम भी मनुष्य को बहुत से आध्यात्मिक व सांसारिक लाभों से वंचित रखता है इस आधार पर हर दशा में संतुलन को ध्यान में रखना चाहिए, काम करने में भी और आराम करने में भी। पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम जाफरे सादिक अलैहिस्सलाम इस संदर्भ में कहते हैं कि काम और व्यवसाय में अतिश्योक्ति से बचो और इसी प्रकार सुस्ती और आलस्य से भी दूर रहो क्योंकि आवश्यकता से अधिक या कम काम हर प्रकार के विनाश की कुंजी है। जो आलसी और लापरवाह होता है वह किसी भी काम को सही रूप से नहीं कर पाता।

 

जिस प्रकार काम और प्रयास सफलता की चोटियों तक पहुंचने की  कुंजी है उसी प्रकार आलस मनुष्य की क्षमताओं का विनाश कर देता है। संतुलन के लिए सब से अच्छा मार्ग यह है कि मनुष्य अपने और व्यवसाय के लिए एक सीमा का निर्धारण करे और बचे हुए समय को उपासना मनोरंजन सगे संबंधियों और मित्रों से मेल जोल के लिए विशेष करे।

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