संभव है कि किसी के दिमाग़ में यह सवाल उठे कि आख़िर क्यों चेहलुम के दिन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारत को इतना अधिक महत्व दिया गया है? आख़िर क्यों हमें इस दिन को इतने सम्मान और जोश के साथ मनाना चाहिये
इस सवाल के जवाब के लिये हम आपके सामने इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम से एक रिवायत प्रस्तुत कर रहे हैं जिसमें इन सवालों का जवाब बहुत ही विस्तार से मौजूद है।
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम पदयात्रा करते हुए इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के सवाब के बारे में फ़रमाते हैं:
जो भी पैदल चलकर इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत को जाये ईश्वर उसके द्वारा उठाये गये हर क़दम के बदले में उसको एक नेकी लिखता है और एक गुनाहमिटा देता है और उसके क़दम को एक श्रेणी उच्च करता है, जब वह ज़ियारत को जाता है तो ईश्वर उसके लिये दो फ़रिश्तों को लगाता है और फ़रमाता है जो भी नेकी उसके मुंह से निकले (यानी जो भी अच्छी बात कहे) उसको लिखो और जो भी बुराई है उसको न लिखो और जब वह पलट कर आता है (फ़रिश्ते) उससे विदा लेते हैं और उससे कहते हैं: हे अल्लाह के वली! तेरे गुनाह माफ़ कर दिये गये और तुम ईश्वर, पैग़म्बर और अल्लाह के रसूल की पार्टी वाले हो, ईश्वर की सौगंध! कदापि तुम (नर्क की) अग्नि को अपनी आँखों से न देखोगे और अग्नि भी तुमको न देखेगी और तुम्हें अपने अंदर समाहित नहीं करेगी। (1)
यह रिवायत हमको बता रही है कि चेहलुम के दिन का क्या महत्व है और जो लोग इस दिन इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत करने के लिये पैदल उनके रौज़े पर जाते हैं उनका क्या महत्व है, इस रिवायत के अनुसार इमाम हुसैन (अ) की पैदल ज़ियारत पर जाना एक प्रकार से इन्सान के सारे पापों का प्राश्चित है, और इन्सान जब इस जियारत से वापस आता है तो ऐसा ही हो जाता है कि जैसे वह अभी अभी अपनी माँ के गर्भ से पैदा हुआ हो और पूर्णरूप से पापो से दूर और उसकी आत्मा पवित्र हो,
महान आध्यात्मिक गुरु आयतुल्लाह बहजत चेहलुम के दिन के बारे में फ़रमाते हैं:
रिवायत में है कि जब इमाम ज़माना (अ) ज़हूर करेंगे तो दुनिया वालों को संबोधित करके पाँच बार कहेंगें
، اَلا یا اَهلَ العالَم اِنَّ جَدِی الحُسَین قَتَلُوهُ عَطشاناً، اَلا یا اَهلَ العالَم اِنَّ جَدِی الحُسَین سحقوه عدوانا، (2)
हे संसार वालों जान लो कि मेरे दादा हुसैन को प्यासा शहीद किया गया, मेरे दादा हुसैन को शत्रुता के साथ पमाल किया गया,
इमाम ज़माना (अ) संसार में अपने आप को इमाम हुसैन के माध्यम से पहचनवाएंगे,इसलिये आवश्यक है कि आपके ज़ोहूर के समय तक सारी दुनिया ने हुसैन को पहचान लिया हो.... और चेहलुम के दिन की पैदल ज़ियारत संसार वालों को हुसैन को पहचनवाने का बेहतरीन माध्यम है।
इसलिये हर शिया बल्कि हर इन्सान को कोशिश करनी चाहिये कि वह इस दिन इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत को अवश्य जाये और अगर किसी कारणवश नहीं पहुंच सकता है तब भी इस दिन के महत्व को कम नहीं समझना चाहिये बल्कि जिस स्थान पर भी हो वहीं से इन्सानी दुनिया के सबसे बड़े उपकारी और इस्लाम को बचाने वाले हुसैन (अ) की ज़ियारत पढ़नी चाहिये और इस प्रकार हुसैन की "हल मिन नासिर यनसोरोनी" की आवाज़ पर लब्बैक कहना चाहिये।
चेहलुम के बारे में ईरानी क्रांति की लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई फ़रमाते हैं: चेहलुम का दिन हुसैनी चुंबक है जो जाबिर को मदीने से उठा कर कर्बला पहुँचा देता है, आज भी यहीं चुंबक काम कर रहा है जो लाखों हुसैनियों को दुनिया के कोने कोने से उठा कर चेहलुम के दिन कर्बला की तरफ़ खींच लाता है
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