इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम जानते थे कि किसी भी समाज के लिए न्याय और स्वतंत्रता का महत्व वैसा ही है जैसे फेफड़ों के लिए वायु अतः वे लोग जो समाज में न्याय स्थापित करने के लिए उसमें गतिशीलता लाते हैं वे मानवता पर बहुत बड़ा उपकार करते हैं। मानवता के ध्वजवाहक इमाम हुसैन ऐसे ही थे। पैग़म्बरे इस्लाम (स) को सूचित किया गया कि उम्मे ऐमन, जो एक समय उनकी देखभाल किया करती थीं, दिन-रात रोती रहती हैं। उम्मे ऐमन को आपकी सेवा में लाया गया। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने उनसे पूछा, आप क्यों रो रही हैं? उन्होंने कहा कि मैंने एक भयानक सपना देखा है। पैग़म्बर (स) ने कहा कैसा सपना ? उम्मे ऐमन ने कहा कि मेरे लिए यह बताना बहुत कठिन है। इसपर पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने कहा कि आप चिंता न करें मैं आपके सपने की व्याख्या करूंगाउम्मे ऐमन ने कहा कि हे पैग़म्बर, एक रात मैंने सपना देखा कि आपके पवित्र शरीर का एक टुकड़ा आपके शरीर से अलग होकर मेरे घर में आ गिरा। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि घबराओ नहीं। मेरी बेटी फ़ातेमा (सअ) एक पुत्र को जन्म देगी जिसका तुम पालन-पोषण करोगी। इस प्रकार मेरे शरीर का टुकड़ा तुम्हारे घर में होगा।पैग़म्बरे इस्लाम (स) मस्जिद में प्रविष्ट हुए। वे इमाम हुसैन को अपने कंधों पर सवार किये हुए थे। आपने कहा, लोगो, यह हुसैन इब्ने अली वह है जिसके पूर्वज सर्वोत्तम हैं। इनके नाना मुहम्मद (स) हैं जो पैग़म्बरों में सर्वेश्रेष्ठ हैं। इनकी नानी ख़दीजा हैं जो ख़ुवैलिद की पुत्री है और वे ऐसी पहली महिला हैं जो ईश्वर और उसके रसूल पर ईमान लाईं। इस बच्चे अर्थात हुसैन की माता, मुहम्मद की सुपुत्री और महिलाओं में सर्वश्रेष्ठ हैं। उसके पश्चात पैग़म्बरे इस्लाम ने बच्चे को अपने कांधों से उतारा और कहा, लोगो यह हुसैन है जिसके नाना और नानी, मामू और ख़ाला स्वर्ग में हैं। वह और उसके भाई भी स्वर्ग में जाएगें । इन समस्त विशेषताओं के स्वामी हुसैन, अब करबला में हैं। उन्होंने उस धरती पर पैर रखे हैं जहां इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण रक्तरंजित घटना घटने वाली है। ऐसी धरती जिसमें बहुत सी यादें छिपी हुई हैं। वह घरती जिसकी याद से हृदय दुखी हो जाता है और आंसू निकल आते हैं। यह धरती मनुष्य के भीतर अत्याचार से संघर्ष, वीरता और सम्मान की भावना उत्पन्न करती है। करबला उस महापुरूष के दफ़न होने का स्थान है जो आत्मा की महानता, प्रेम और बलिदान का उत्कृष्ट नमूना है।जब कोई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के रौज़े में प्रविष्ट होता है तो उनका स्थान, और उनकी महानता मनुष्य को मंत्रमुग्ध कर देती है। श्रद्धालु बड़े ही आदर और सम्मान के साथ प्रार्थना व सम्मान प्रकट करने में व्यस्त हो जाते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के रौज़े से थोड़ी ही दूरी पर एक पतली सी गैलरी है जो एक छोटे से कमरे पर जाकर समाप्त होती है। वहां पर भी एक छोटा मज़ार है जिसमें लाल रंग का बल्ब जलता रहता है। यह वही स्थान है जहां पर कुछ क्रूर लोगों ने पैग़म्बरे इस्लाम के प्रिय नाती को शहीद किया था अर्थात वही स्थान जहां पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम शहीद हुए। दूसरे स्थानों की तुलना में थोड़ा नीचा यह स्थान क़त्लगाह या वधस्थल के नाम से प्रसिद्ध है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का रौज़ा षट्भुजी है। उसमे जो दो कोने बढ़े हुए हैं वहां पर इमाम हुसैन के पुत्र अली अकबर की क़ब्र है। इमाम हुसैन के रौज़े को इसीलिए षट्भुजी बनाया गया है ताकि हज़रत अली अकबर के दफ़न का स्थान स्पष्ट रहे।इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के रौज़े के निकट लोहे की एक बड़ी जाली है जिसपर करबला में शहीद होने वाले अन्य लोगों के नाम लिखे हुए हैं। इस स्थान पर इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने इमाम हुसैन के अन्य साथियों और परिजनों के पवित्र शवों को दफ़न किया था।इमाम हुसैन के रौ़जे के दर्शन के लिए जाना, एक प्रकार से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को यह वचन देना है कि उनका लक्ष्य और उनका मार्ग भुलाया नहीं जाएगा। श्रद्धालु उनके मज़ार का दर्शन करता है और कहता है कि हे पैग़म्बरे इस्लाम के पुत्र, मैं गवाही देता हूं कि आपने न्याय के साथ आदेश दिया। आप बिल्कुल सच्चे हैं। आपने लोगों को जो निमंत्रण दिया वह पूरी निष्ठा के साथ दिया। मैं इस बात की गवाही देता हूं कि आपने ईश्वर के मार्ग में संघर्ष किया और पूरी निष्ठा के साथ उसकी उपासना की। ईश्वर आपको सबसे अच्छा बदला दे।लोगों में इमाम हुसैन की याद और उनके प्रति लोगों की निष्ठा सदा ही रही है। अब्बासी शासक मुतवक्किल उन लोगों में से था जो पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से कट्टर शत्रुता रखता था। वह जब इमाम हुसैन के मज़ार पर लोगों को एकत्रित देखता तो क्रोधित हो उठता। इस दुष्ट अब्बासी शासक ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के रौज़े को ध्वस्त करने का आदेश दिया। साथ ही उसने इमाम के रौज़े के दर्शन पर भी प्रतिबंध लगा दिया। इन समस्त प्रतिबंधों के बावजूद कुछ ही समय के पश्चात इमाम हुसैन के चाहने वालों ने उनके रौज़े का पुनर्निर्माण किया और उनके रौज़े पर पहुंचना फिर आरंभ कर दिया। वास्तव में करबला एक चमकते हुए नगीने की भांति है जहां पर सदैव ही इमाम के श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है।इमाम के रौज़े पर एक धर्मगुरू लोगों के एक गुट को संबोधित करते हुए उनसे पूछते हैं कि हुसैन कौन थे? फिर उन्होंने स्वयं ही कहा, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम/ हज़रत अली और हज़रत फ़ातेमा के सुपुत्र थे। करबला की अमर घटना में इमाम हुसैन ने जिस महानता का परिचय दिया उसने सबको अचंभित कर दिया। इमाम हुसैन को निजी हितों और व्यक्तिगत मामलों की कोई चिंता नहीं थी। वे एक महान आत्मा थे। विनम्रता, महानता, न्याय, सच्चाई, निष्ठा और ईश्वरीय भय आदि वह विशेषताएं थीं जो उनमें स्पष्ट रूप से दिखाई देती थीं। उन्होंने समाज में स्वतंत्रता तथा न्याय को पुनर्जीवित करने के लिए अपने प्राणों तक की आहूति दे दी। यही कारण है कि उनका व्यापक व्यक्तित्व, एक व्यक्ति की सीमा से निकल कर मानवता के लिए एक समृद्ध संस्कृति के रूप में प्रकट हुआ है।थोड़ी ही दूरी पर एक अन्य धर्मगुरू इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के संबन्ध मे बता रहे थे कि अली के पुत्र हुसैन को पता था कि किसी भी समाज के लिए न्याय और स्वतंत्रता का महत्व उसी प्रकार है जैसे फेफड़े के लिए वायु की आवश्यकता। वे लोग जो समाज को न्याय की प्राप्ति के लिए प्रेरित करते हैं वे मानवता की बहुत बड़ी सेवा करते हैं। मानवता के ध्वजवाहक इमाम हुसैन ऐसे ही थे। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम/हज़रत इब्राहीम, हज़रत मूसा, हज़रत ईसा और हज़रत मुहम्मद (स) जैसे महापुरूषों के वारिस हैं। ईश्वर की ओर से भेजे गए दूत जो अच्छे आचरण के स्वामी होते थे ज्ञान और अंतरदृष्टि के हिसाब से भी अद्वितीय थे। जिस प्रकार से इन ईश्वरीय दूतों ने अपने अथक संघर्ष से संसार में शांति स्थापित की उसी प्रकार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम, वर्चस्ववाद से मुक़ाबले और स्वतंत्रता प्राप्ति के आदर्श हैं। उन्होंने सच्चाई को अपने उच्च विचारों का आधार बनाकर ईश्वरीय एवं महान आन्दोलन का आरंभ किया। वे महानता के प्रतीक हैं।इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के संबन्ध में विख्यात विचारक शहीद मुतह्हरी कहते हैं, हुसैन इब्ने अली एक महान एवं पवित्र आत्मा हैं। मूल रूप से आत्मा महान होती है तो शरीर कष्ट में रहता है। । छोटी आत्मा सामान्यतः आंतरिक इच्छाओं की पूर्ति में लग जाती है। शरीर उसे जिस बात का भी आदेश देता है उसका अनुसरण करने लगती है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने सुपुत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम से कहते हैं, मेरे प्रिय पुत्र अपनी आत्मा का सम्मान करो। करबला की घटना में उमर इब्ने साद, इब्ने ज़ियाद और अन्य दुष्टों न
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