यह इमाम हुसैन के चेहलुम का दिन है और शेख़ैन के कथानुसार इमाम हुसैन के अहले हरम इसी दिन शाम से मदीने की तरफ़ चले थे, इसी दिन जाबिर बिन अबदुल्लाहे अंसारी इमाम हुसैन की ज़ियारत के लिए कर्बला पहुँचे और आप ही इमाम के पहले ज़ाएर हैं, आज के दिन इमाम हुसैन की ज़ियारत करना मुस्तहेब है।
इमाम हसन अस्करी (अ) से रिवायत हुआ है कि मोमिन की पाँच निशानियाँ है जिनमें से एक अरबईन की ज़ियारत पढ़ना है।
इसी प्रकार शेख़ तूसी ने तहज़ीब और मिस्बाह में इस दिन की विशेष ज़ियारत इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत की है।
इमाम हुसैन (अ) की जि़यारत का महत्व
स्पष्ट रहे कि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत की महानता के बयान नहीं किया जा सकता है और बहुत सी हदीसों में आया है कि शहीदे नैनवा की ज़ियारत हज, उमरे और जिहाद के बराबर है बल्कि इससे भी कई गुना अधिक महान है, इससे पाप क्षमा कर दिए जाते हैं, हिसाब एवं किबात में आसानी होती है, इन्सान के दर्जे बुलंद होते हैं दुआ स्वीकार होती है, आयु बढ़ती है, जान, माल और रोज़ी में बरकत होती है, हाजतों के पूरा होने और ग़मों के दूर होने का सबब है।
इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत का सबसे कम सवाब जो है वह यह है कि इन्सान के पाप क्षमा कर दिए जाते हैं। अल्लाह उसकी जान और माल की सुरक्षा उस समय तक फ़रमाता है जब तक वह अपने घर वापस न आ जाए और क़यामत में तो ख़ुदा दुनिया से भी अधिक अता करेगा।
बहुत सी रिवायतों में आया है कि आप की ज़ियारत ग़मों को दूर करती है, मरने के समय की सख़्ती और क़ब्र के ख़ौफ़ से बचाती है, ज़ियारत करने में जो माल इन्सान ख़र्च करता है उसके हर दिरहम (सिक्के) के बदले एक हज़ार बल्कि दस हज़ार दिरहम लिखे जाते हैं।
जब ज़ियारत करने वाला आपके रौज़े की तरफ़ चलता है तो चार हज़ार फ़रिश्ते उसका स्वागत के लिए आगे बढ़ते हैं और जब वह वापस जाता है तो इतने ही फ़रिश्ते उसे विदा करने के लिए आते हैं।
सारे नबी, वसी और इमाम, इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के लिए आते हैं और आपकी ज़ियारत करने वालों के लिए दुआ करते हैं और उन्हे शुभसमाचार देते हैं, ख़ुदा उन पर करम करने में मैदाने अरफ़ात में रहने वालों पर प्राथमिक्ता देता है, क़यामत के दिन उनके सम्मान और श्रेष्ठता को देख कर हर व्यक्ति यही तमन्ना करेगा कि काश मैं भी हुसैन के जाएरों में से होता।
इस बारे में बहुत सी रिवायतें आई हैं हम यहां पर एक रिवायत प्रस्तुत करते हैं
इब्ने क़ूलवैह , शेख़ कुलैनी, और सैय्यद इब्ने ताऊस आदि ने सम्मानित विश्वासयोग्य सहाबी मोआविया बिन वहब बिजिल्ली से रिवायत की है कि उन्होंने कहाः
एक स्थान पर मैं इमाम सादिक़ (अ) की ख़िदमत में हाज़िर हुआ तो आप को मुसल्ले पर इबादत करते हुए देखा, मैं वहां बैठा रहा यहा तक कि आप ने नमाज़ समाप्त कर ली तो मैं ने आपको ईश्वर से दुआ करते हुए सुना कि आप फ़रमाते हैं हे ईश्वर तू ने हमें अपनी तरफ़ से विशेष सम्मान दिया है और हमें यह वादा दिया है कि हम शिफ़ाअत करेंगे। हमें नबियों का ज्ञान दिया और पैग़म्बर का वारिस बनाया और हमारे आने पर पहले वाली उम्मतों का युग समाप्त कर दिया, तूने हमें पैग़म्बरे अकरम (स) का वसी बनाया और भूत एवं भविष्य का ज्ञान दिया और लोगों के दिलों को हमारी तरफ़ मोड़ दिया, मुझे मेरे भाइयों और इमाम हुसैन (अ) के ज़ाएरों को बख़्श दे और उन लोगों को भी क्षमा कर दे जो अपना माल ख़र्च करके और अपने शहरों को छोड़कर हज़रत की ज़ियारत को आए हैं और हमसे नेकी चाहने, तुझसे सवाब प्राप्त करने, हमसे मुत्तसिल होने, तेरे पैग़म्बर को ख़ुश करने और हमारे आदेशों का पालन करने के लिए आए हैं। जिसके कारण हमारे शत्रु उनके शत्रु हो गए हैं हालांकि वह अपने इस कार्य में तेरे पैग़म्बर को प्रसन्न और ख़ुश करना चाहते थे।
हे अल्लाह तू ही उसके बदले में उन्हे हमारी ख़ुशी अता कर दे, दिन और रात में उनकी रक्षा कर, उनके ख़ानदान और औलाद की देखभाल कर कि जिनको वह अपने वतन में छोड़ कर गए हैं, उनकी सहायता कर हर अत्याचारी एवं शत्रु हर शक्ति शाली और कमज़ोक और हर इन्सान एवं जिन्नात की बुराई से, उनको उससे कहीं अधिक दे जिसकी वह तुझसे आशा रखते हैं, जब वह अपने वतन अपने ख़ानदान और अपनी औलाद को हमारी ख़ातिर छोड़कर आ रहे थे तो हमारे शत्रु उनको बुरा भला कह रहे थे।
हे ईश्वर जब वह हमारी तरफ़ आ रहे थे तो उनको बुरा भला कहने पर वह हमारी तरफ़ आने से नहीं रुके।
हे ईश्वर उनके चेहरों पर रहम कर जिनको यात्रा में सूरज की गर्मी ने बदल दिया है, उन गालों पर रहम कर जो हुसैन की क़ब्र पर मिले जा रहे थे। उन आँखों पर रहम कर जो हमारे मसाएब पर रोई हैं, उन दिलों पर रहम कर जो हमारी मुसीबतों पर दुख प्रकट कर रहे हैं, और हमारे दुख में दुखी है, और उन आहों एवं चीख़ों पर रहम कर जो हमारी मुसीबतों पर उठती है।
हे ईश्वर मैं उनके शरीरों और जानों को तेरे हवाले कर रहा हूँ कि तू उन्हें हौज़े कौसर से सेराब करे जब लोग प्यासे होंगे,
आप बार बार यही दुआ सजदे की अवस्था में करते रहे। जब आपकी दुआ समाप्त हुआ तो मैं ने कहा कि जो दुआ आप मांग रहे थे अगर यह उस व्यक्ति के लिए भी की जाए जो अल्लाह को न जानता हो तो भी मेरा गुमान है कि नर्क की आग उसे छू न सकेगी।
ख़ुदा की क़सम उस समय मैंने आरज़ू की कि काश मैं ने भी इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत की होती और हज पर न आता उसपर आपने फ़रमाया कि तुम हज़रत के रौज़े के क़ीरब ही रहते हो। तुम्हें उनकी ज़ियारत करने में क्या रुकावट है, हे मोआविया बिन वहब, तुम उनकी ज़ियारत को न छोड़ा करो। तब मैंने कहा कि मैं आप पर क़ुर्बान हो जाऊँ मैं यह नहीं जानता था कि आप लोगों (अहलेबैत) की ज़ियारत का इतना महत्व है।
आपने फ़रमायाः हे मोआविया! जो लोग इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के लिए ज़मीन में दुआ करते हैं उनसे कहीं अधिक चीज़ें हैं हो आसमान में उनके लिए दुआ करती है।
हे मोआविया! हुसैन (अ) की ज़ियारत को किसी डर के कारण न छोड़ा करो, क्योंकि जो व्यक्ति किसी भय के कारण आपकी ज़ियारत को छोड़ेगा उसे इतना अफ़सोस और शर्मिंदगी होगी कि वह तम्मना करेगा कि काण मैं सदैव आपके रौज़े पर रहता और वहीं दफ़्न होता।
क्या तुझे यह बात अच्छी नहीं लगती कि अल्लाह तुझ को उन लोगों के बीच देखे जिन के लिए हज़रत रसूल (स) मौला अमीरुल मोमिनीनी (अ) सैय्यदा फ़ातेमा (स) और पवित्र इमाम दुआ कर रहे हैं।
क्या तुम नहीं चाहते कि तुम उन लोगों में से हो कि जिस से क़यामत के दिन फ़रिश्ते हाथ मिलाएंगे, क्या तुम नहीं चाहते कि तुम उन लोगों में से हो कि जो क़यामत में आएं तो उनके ज़िम्मे कोई पाप न होगा, क्या तुम नहीं चाहते कि तुम उन लोगों में से हो कि जिन से क़यामत के दिन रसूले इस्लाम (स) मुसाफ़ेहा करेंगे।
चेहलुम के दिन हर शिया और इमाम हुसैन (अ) के चाहने वाले का दायित्व है कि वह इस दिन आपकी ज़ियारत करे चाहे दूर से या जहां तक संभव हो नज़दीक से करे और इस दिन ज़ियारते अरबई पढ़े जिसको हमने इसी साइट पर हिन्दी अनुवाद के साथ "चेहलुम के दिन की ज़ियारत हिन्दी अनुवाद के साथ" के शीर्षक से डाली है वहां से ली जा सकती है।
और अंत में हुसैन के तमाम चाहने वालों की सेहत और सलामती के लिए ख़ुदा से दुआ करता हूँ और दुआ है कि हमे हुसैनी शिक्षा को सारे संसार में फैलाने की तौफ़ीक़ अता करे। और हमारी साइट देखने वालों से अनुरोध हैं कि इसका अधिक से अधिक प्रचार करें ताकि आप भी इस नेक कार्य में समिलित हो सकें और सवाब प्राप्त कर सकें।