हे हमारे पालनहार! आज रमज़ान महीने की नौ तारीख़ है हमें अधिक से अधिक पवित्र कुरआन की तिलावत करने और उसे समझने का सामर्थ्य प्रदान कर।
रमज़ान का पवित्र महीना, सूरे माएदा की ४८वीं आयत का प्रतिबिंबन है जिसमें महान ईश्वर कहता है” ईश्वर के अच्छे बंदो भले कार्यों में जल्दी करो।“
यह महीना महान ईश्वर की बंदगी और उसके प्रतिनिधि के स्थान तक पहुंचने का बेहतरीन अवसर है। इस महीने में हर समय से अधिक इस नश्वर संसार और उससे संबंधित चीज़ों से दूरी करनी चाहिये और नमाज़, रोज़ा, उपासना और पवित्र कुरआन की तिलावत करके महान ईश्वर का विशेष मेहमान बनने का प्रयास करना चाहिये ताकि ईश्वरीय दस्तरखान से, क्षमा, आत्म निर्माण और आध्यात्मिक नेअमतों से लाभ उठा सकें।
महान ईश्वर रमज़ान महीने की विशेषता बयान करते हुए पवित्र कुरआन के सूरे बक़रा की १८५वीं आयत में कहता है” रमज़ान का महीना वह महीना है जिसमें लोगों के मार्गदर्शन और सत्य व असत्य के मध्य अंतर के लिए कुरआन उतरा है।“ ,,,,,,
यह वह महीना है जिसमें महान ईश्वर ने क़द्र की रात क़रार दी है और इंसानों के मार्गदर्शन एवं उनकी मुक्ति व कल्याण के क़ानून भेजे हैं। इसी तरह महान ईश्वर ने सूरये क़द्र की पहली आयत में बयान किया है कि हमने इस क़ुरआन को क़द्र की रात में उतारा है।“
रोज़ा के अनिवार्य होने के रहस्य के बारे में कहा गया है कि रोज़े का एक रहस्य तक़वा है। तक़वा और सदाचारिता के चरण तक पहुंचने के लिए रोड मैप की आवश्यकता है। इंसान को सही दिशा में आगे बढ़ाने के लिए मार्गदर्शक की आवश्कता है। ऐसा मार्गदर्शक जो सत्य के मार्ग पर उसे स्थिर रख सके और उसे गुमराही की ओर न ले जाये।
महान व कृपालु ईश्वर ने स्वयं इंसानों को मार्गदर्शक दिया है। महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन उतार कर मार्गदर्शन का मार्ग स्पष्ट कर दिया है और वह सदाचारियों के चरम शिखर पर पहुंचने का कारण है। महान ईश्वर सूरे बक़रा की दूसरी आयत में कहत है यह वह किताब है जिसमें कोई संदेह नहीं है और यह सदाचारियों के मार्गदर्शन का माध्यम है।“
इस महीने में पवित्र कुरआन की तिलावत पर बहुत बल दिया गया है। क्योंकि पवित्र कुरआन का हर शब्द प्रकाश है और वह ईश्वरीय मार्ग की ओर इंसान का मार्गदर्शन करता है। जब इंसान पवित्र कुरआन की तिलावत करता है तो मुर्दा दिल पर एक प्रकाश चमकता है और दिल परिवर्तित हो जाता है। इस प्रकार आध्यात्मिक आजीविका प्राप्त करने की भूमि प्रशस्त हो जाती है। इस आधार पर रमाज़ के महीने और पवित्र कुरआन में विशेष संबंध है। जिस तरह से बहार के मौसम में प्रकृति हरी- भरी हो जाती है और वह इंसान को विशेष खुशी व प्रफुल्लता प्रदान करती है उसी तरह पवित्र कुरआन दिलों की बहार है और इंसान उसकी आयतों की तिलावत करके अपने भीतर विशेष प्रकार की प्रसन्नता का आभास करता है । इंसान जितना अधिक पवित्र कुरआन की तिलावत करता है और उसकी शिक्षाओं पर अमल करता है उतना ही उसका मन आध्यात्मिक पवित्रता व शांति का आभास करता है। दूसरे शब्दों में वह परिपूर्णता के मार्गों को तय करने लगता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” ईश्वर की किताब को सीखो क्योंकि वह सबसे सुन्दर कथन, सबसे स्पष्ट व दिल को छू जाने वाली नसीहत है। कुरआन को समझने की कोशिश करो क्योंकि वह दिलों की बहार है।“
ईश्वर का भय रखने वाले और सदाचारी लोग पवित्र कुरआन की शिक्षाओं को अपनी जीवन शैली करार देते हैं और उसके आदेशों का अनुसरण करते हैं। सदाचारी लोगों के दिलों को पवित्र कुरआन की तिलावत से आराम मिलता है और वे हर कठिनाई में पवित्र कुरआन की सहातया लेते हैं।
पवित्र कुरआन वह जारी सोता है जो पैग़म्बरे इस्लाम पर २३ वर्षों के दौरान नाज़िल हुआ। पवित्र कुरआन उस महान हस्ती पर उतरा जो हर प्रकार के पापों से दूर थी और आध्यात्म के चरम शिखर पर थी। पैग़म्बरे इस्लाम (स) और दूसरे ईश्वरीय दूतों के मार्गदर्शन से यह निष्कर्ष निकाला जाता है कि कुरआन की पवित्रता की रक्षा की जानी चाहिये और उसके साथ शिष्टाचारिक एवं सम्मान जनक व्यवहार किया जाना चाहिये और पवित्र कुरआन की तिलावत के समय इस बात को ध्यान में रखा जाना चाहिये कि इंसान महान ईश्वर की बारगाह में है।
इस महान ईश्वरीय किताब के पढ़ने के कुछ शिष्टाचार हैं। इस किताब के पढ़ने का एक शिष्टाचार पवित्रता है यानी जो इंसान इस किताब की तिलावत करता है उसे पवित्र होना चाहिये। क्योंकि महान ईश्वर ने इस किताब से लाभ उठाए जाने की पहली शर्त पवित्रता को करार दिया है और उसने पवित्र कुरआन में कहा है कि पवित्र लोगों के अतिरिक्त इसका सही अर्थ कोई और नहीं समझ पायेगा।
पवित्र कुरआन की तिलावत करने के लिए मुंह की पवित्रता पर भी बल दिया गया है। अगर तिलावत करने वाले इंसान का मुंह पवित्र होगा तो वह पवित्र कुरआन से बेहतर ढंग से लाभ उठा सकता है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फरमाया है कि कुरआन के मार्ग को पवित्र रखो।“ जब उनसे यह पूछा गया कि कुरआन का रास्ता क्या है? तो आपने फरमाया मुंह! फिर पूछा गया कि उसे किस चीज़ से पवित्र करें? तो जवाद दिया गया दातून करके।
पवित्र कुरआन की ओर देखना भी उपासना है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि तीन चीज़ों की ओर देखना उपासना है उनमें से एक कुरआन है।“ तो इस किताब को खोलना और उसके प्रकाशमयी पृष्ठों को देखना उसकी तिलावत के विदित शिष्टाचार हैं।
पवित्र कुरआन की तिलावत का एक शिष्टाचार यह है कि जब कुरआन पढ़ा जाये तो चुप रहना चाहिये और यह वह बात है जिसका महान ईश्वर ने आदेश दिया है। पवित्र क़ुरआन में आया है कि जब कुरआन पढ़ा जाये तो उसे सुनो और चुप रहो।“
हज़रत इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” जब तुम्हारे पास कुरआन पढ़ा जाये तो तुम पर चुप रहना और उस पर ध्यान देना अनिवार्य है।“
पवित्र कुरआन की आयतों में चिंतन- मनन करना तिलावत के शिष्टाचारों में से है। इस बारे में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” कुरआन की आयतें ज्ञान का खज़ाना हैं और बुद्धिमान व्यक्ति अपना दायित्व समझता है कि जब वह कोई ख़ज़ाना खोले तो उसके अंदर देखे और उसकी अद्भुत सुन्दरता से लाभ उठाये और उसकी आयतों में सोच- विचार करके अपने दिल को प्रकाशित बनाये और उसके बाद वह कुरआन की दूसरी आयत की तिलावत करे।“
स्वयं पवित्र कुरआन ने कहा है कि उसके उतरने का एक उद्देश्य चिंतन- मनन है। स्वयं महान ईश्वर पवित्र कुरआन में कहता है” इस महान किताब को हमने आप पर उतारा है ताकि लोग उसकी आयतों में सोच- विचार करें और बुद्धिमान लोग उसकी वास्तविकताओं को समझ जाएं।“
पवित्र कुरआन की तिलावत का एक शिष्टाचार दिल और नियत को बुरी चीज़ों से पवित्र बनाना है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने एक अनुयाई से पवित्र कुरआन की तिलावत के बारे में कहते हैं” कुरआन की तिलावत से कुछ लोगों का उद्देश्य ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करना है और कुछ लोग सांसारिक चीज़ों को प्राप्त करने और कुछ दूसरों से बहस करने के लिए उसकी तिलावत करते हैं। तुम अगर कर सको तो उनमें से बनने का प्रयास करो जो कुरआन की तिलावत ईश्वर की प्रसन्नता के लिए करते हैं।“
रोज़ेदारों को इफ्तार करवाना यानी रोज़ा खुलवाने का बहुत पुण्य है। ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली खामनेई साधारण इफ्तारी के बारे में कहते हैं “आप देखें कि सौभाग्य से कितने लोगों ने ख्याति की इच्छा के बिना मस्जिदों यहां तक कि सड़कों को ईश्वरीय मेहमानों के स्वागत का केन्द्र बना दिया है। उन्होंने इफ्तारी का प्रबंध किया है और उन्होंने लोगों को अपने इफ्तारी के दस्तरखान पर आमंत्रित किया। यह भलाई की भावना लोगों के लिए बहुत मूल्यवान चीज़ है। यह ऐसी मूल्यवान चीज़ है जिसका इंसान की आंतरिक पवित्रता से संबंध होता है।
रमज़ान के पवित्र महीने में एक दूसरे की सहायता की भावना लोगों में प्रचलित होती है। इस महीने में स्वार्थ की भावना पर परोपकार की भावना हावी होती है। पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं” जो भी रमज़ान के महीने में ईश्वर के मार्ग में इफ़्तारी दे वह उस व्यक्ति की भांति है जिसने किसी दास को स्वतंत्र किया है और उसके अतीत के पाप भी क्षमा कर दिये जाते हैं।“ उस समय पैग़म्बरे इस्लाम के कुछ अनुयाइयों ने कहा हे ईश्वर के दूत हमारे
पास इस कार्य की क्षमता नहीं है। तो आपने फरमाया “एक या आधी खजूर से भी इफ्तारी दे सकते हो और अगर वह भी न हो तो रोज़ेदार को पानी ही दे दो।“
पैग़म्बरे इस्लाम के कुछ अनुयाई दूसरे पलायनकर्ताओं के साथ मदीना गए थे। निर्धनता के कारण मदीना में रहने के लिए उनके पास कोई स्थान नहीं था इसी कारण मस्जिद के उत्तरी भाग में उनके रहने के लिए एक स्थान बनाया गया जो सुफ्फा के नाम से प्रसिद्ध है। वहां पर रहने वालों को अहले सुफ्फा कहा जाने लगा। अहले सुफ़्फ़ा के पास कुछ नहीं था और वे बहुत ग़रीब थे परंतु वे बहुत ईमानदार और महान ईश्वर के निष्ठावान उपासक थे। इसी तरह वे युद्ध के समय पैग़म्बरे इस्लाम के बेहतरीन सैनिक समझे जाते थे। मदीनावासी उन्हें पहचानते थे और उनमें से कुछ को कभी दोपहर या शाम के भोज पर आमंत्रित भी करते थे। पैग़म्बरे इस्लाम भी उनसे बहुत प्रेम करते थे और वे बराबर उन लोगों का हाल- चाल पूछने जाया करते थे और उनके लिए खाना ले जाते थे।
रमज़ान के पवित्र महीने की एक रात को मदीनावासियों ने अहले सुफ्फा के लगभग ४० लोगों को निमंत्रित किया था परंतु उनमें से ३० अन्य को किसी ने निमंत्रित नहीं किया। वे लोग अपनी नमाज़ पढ़ चुके थे और सुफ्फा के किनारे एक कोने में बैठे हुए थे। उनमें से कुछ दीवार पर टेक लगाये बैठे थे। उन वे लोगों ने अभी अपना रोज़ा भी नहीं खोला था। इसी मध्य पैग़म्बरे इस्लाम अपनी विशेष मुस्कान के साथ अहले सुफ्फा के पास पहुंचे। उनके हाथ में एक बड़ा बर्तन था जो ढ़का हुआ था। अहले सुफ्फा खुशी से उठ कर और वे पैग़म्बरे इस्लाम की ओर गए। पैग़म्बरे इस्लाम बैठ गए। अहले सुफ़्फ़ा ने तुरंत अपना संयुक्त दस्तरखान खोला और सब लोग बैठ गये। पैग़म्बरे इस्लाम ने ढ़के हुए बर्तन से ढ़क्कन हटाया और खाने की सुगंध पूरे सुफ़्फ़ा में फैल गयी। पैग़म्बरे इस्लाम ने बड़े ही कृपा भाव से सबके लिए खाना निकाला और अंत में थोड़ा सा अपने लिए निकाला। पैग़म्बरे इस्लाम ने भी अहले सुफ़्फ़ा की भांति अभी तक अपना रोज़ा नहीं खोला था। उस समय रमज़ान महीने का चांद पूरे मदीना को प्रकाशित किये हुए था और पैग़म्बरे इस्लाम का तेजस्वी मुख का प्रकाश अहले सुफ्फा को प्रकाशित किये हुए था। (MM)
source : irib.ir